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Thursday, October 28, 2010

कितने दूर, कितने पास



बैठा हूं शब के अंधेरे में
तेरी यादों को सीने से लगाए।
पहरों बीत गए
फलक पर निकल आया है चांद।
उसकी चांदनी कांटों की तरह चूभ रही है
मेरे दिल के किसी कोने में।
वो मुस्कुरा रहा है मेरी बेबसी पर
जैसे वो कह रहा हो मुझसे
छोड. दो जिद मुझे पाने की
क्या हुआ जो तुम मुझसे प्यार करते हो।
शाम होते ही तुम मेरा इन्तजार करते हो।
मेरा हमसाया तो ये आसमां है
इसके सिवा मुझे और जाना कहां है
मत देखो मुझे इन प्यार भरी नज़रों से
मेरे अक्स के सिवा
तुम कुछ और नहीं पाओगे
तड.पोगे तुम और
टूटकर बिखर जाओगे।
मुझे लगा
चांद और तुममें कितना फर्क है
वो दूर होते हुए भी
सबके कितने करीब है।
और हम
करीब होते हुए भी
कितने दूर हैं।

Monday, October 25, 2010

जुल्म की इन्तेहा

मैंने तुम्हे चाहा
ये मेरे इश्क की इब्तदा थी
अब देखना ये है कि
तेरे जुल्म की
इन्तेहा क्या है।

Saturday, October 23, 2010

लघु कथा

एक प्यारी सी खुबसुरत लड.की थी। वह बचपन से ही अंधी थी। उसे हमेशा दूसरों पर निर्भर रहना पड.ता था। हर काम में उसे दूसरों की सहायता लेनी पड.ती थी। एक लड.का था जो हमेशा उसकी मदद किया करता था तथा उसकी हर जरूरत के वक्त उसके साथ खड.ा रहता था। वो लड.की हमेशा उससे कहती थी कि अगर उसकी ऑंखें होती तो वह उससे शादी कर लेती। एक दिन की बात है कि किसी ने उस अंधी लड.की अपनी ऑंखें दान कर दी। उस लड.की को ऑपरेशन के द्वारा वो ऑंखें लगा दी गई। कुछ दिनों के बाद जब वो ठीक होकर अस्पताल से घर आई तो उस लड.के से मिली जो हमेशा उसकी मदद किया करता था। उसने देखा कि वो लड.का अंधा था। उस लड.के ने उस लड.की से पूछा- क्या अब वो उससे शादी करेगी। लड.की ने जवाब दिया - नही! मैं एक अंधे लड.के से कैसे शादी कर सकती हुं। मेरी तो पुरी जिन्दगी खराब हो जाएगी। वो लड.का मुस्कुराया और उसने लड.की को  एक कागज टुकड.ा दिया और हमेशा के लिए उसकी जिन्दगी से चला गया। उस कागज पर लिखा था `मेरी ऑंखों का ख्याल रखना´।

Tuesday, October 19, 2010

दिल के अरमान



मैनें लिख कर दी थी तुम्हे
अपनी चन्द कविताएं।
शब्दों की जगह
उकेरे थे मैनें
अपने जज्बात।
निकाल कर रख दिए थे मैनें
कागज के एक
छोटे से टुकडे. पर
अपने दिल के सारे अरमान।
इस ख्याल में कि
शायद
मेरी पाक मोहब्बत
तेरे दिल की गहराईयों तक
पैबस्त हो जाए।
पर मेरे सारे जज्बात
हर्फ-दर-हर्फ
बिखर गए।
जब मैंने ये जाना कि
तुम्हारी जिदंगी में
मेरी जगह
किसी और ने ले ली है।

Monday, October 18, 2010

निराशा



माना कि जिन्दगी को
घोर निराशाओं ने घेरा है।
दूर क्षितिज की ओर देखो
आने वाला एक नया सवेरा है।

फैलने दो आशा की किरण को
जिन्दगी रूपी जमीं पर
तुम्हारे आस-पास ही कहीं
तुम्हारी खुशियों का बसेरा है।

क्यों निराश होते हो तुम
ये तो माया जाल है
चन्द दिनों की है ये दुनिया
फिर क्या तेरा और क्या मेरा है।

Friday, October 15, 2010

अर्ज किया है......


(1)
जीते रहे हम जिनकी खुशी के लिए
वो रोने भी न आए मेरे मरने के बाद

(2)
ऐ खुदा किसी को ऐसी खुदाई ना दे
प्यार दे इस दिल में तो जुदाई ना दे

(3)
जो तड.पे ही नही किसी की याद में
वो क्या जाने इन्तजार क्या होता है।
जिसने महसुस ही नही किया दर्द को
वो क्या जाने प्यार क्या होता है।

Thursday, October 14, 2010


कल रात ना जाने क्या बात हुई
तेरी याद आई और बरसात हुई।

शुरू हुए अपने अत्फ के किस्से
जब आपकी और मेरी मुलाकात हुई।

तेरे ही हुस्न का जलाल है ये
विरां सी जिन्दगी भी गुलजार हुई।

तेरे ही अफसाने गुंजते हैं मेरे अंजुमन में
मेरी हर शाम अब तो जश्न-ए-बहार हुई।

Wednesday, October 13, 2010

जॉं लुटाने वाला

युं ही नही मिलता दुनिया में कोई
दिल को लगाने वाला
मुद्दतें बीत जाती हैं
तब जाकर मिलता है कोई
किसी पे अपनी जॉं लुटाने वाला।

Sunday, October 10, 2010

रिश्ता


कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।

एक अन्जाना सा रिश्ता

एक नाजुक सा बंधन

गर समझ जाते तुम तो

मोहब्बत की तासीर से

बच नहीं पाते।

ये कैसी तिश्नगी है

क्या कहंु तुमसे

तसब्बुर में भी तेरे बगैर

हम रह नहीं पाते।

जी रहे हैं हम

नदी के दो किनारों की तरह

जो साथ तो चलते हैं मगर

एक-दूसरे से कभी मिल नहीं पाते।

कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।