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Saturday, December 25, 2010

पैसा

ये साल अपने साध्ंय बेला की ओर अग्रसर है और नया साल नई खुशियों के साथ उदय होने वाला है। इस साल के साथ साथ हम इस सदी का एक दशक भी पुरा कर लेगें। इन सालों में हमने बहुत कुछ खोया है तो बहुत कुछ पाया भी है। हॉ कुछ जख्म ऐसे जरूर लगे है जो शायद ही कभी भर पाये। उनकी टीस हमें आजन्म महसुस होती रहेगी। इस साल हमारे देश में जितने बड़े बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ है शायद ही कभी इससे पहले ये देखने में आया हो। आशा करते है कि आने वाला साल हमारे देश के शुभ हो एवं हमारा देश तरक्की के ओर अग्रसर रहे। आज की पोस्ट इससे पहले भी आ चुकी है पर इस इसकी कमी एक बार फिर से महसुस हो रही है। आशा है आपलोग का प्यार पहले की ही तरह मिलता रहेगा।  
आप सभी ब्लागरों को मेरी तरफ से नए साल की ढेर सारी शुभकामनाए।




पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाए।

पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तों से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।

पैसा,
गढ़ता है
रिश्तों की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झूठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।

पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगों को कुछ नजर नहीं आता।

पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते हैं।

पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि शायद हम बदल चुके हैं
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।

Tuesday, December 21, 2010

कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे


चित्र गुगल साभार

जिस्त टुकड़ों में हम बिताते रहे
कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे।


शमॉं भी बुझ गई तेरे इंतजार में
रौशनी के लिए दिल को जलाते रहे।


किसी ने कहा जो संगदिल तुझे
तेरी वफा के किस्से सुनाते रहे।


लोगों ने पुछा दैरो हरम का पता हमसे
तेरे घर की तरफ उगंलियॉं उठाते रहे।


वो जख्म दर जख्म देते रहे ‘अमित’
और हम रस्म-ए-मोहब्बत निभाते रहे।


Saturday, December 18, 2010

हमें गर्व है कि हम भारतीय है



बचपन में जब हम स्कुल जाया करते थे तो प्रार्थना के बाद ये लाइन हमेशा बोली जाती थी तब दिल में देशप्रेम का जज्बा भर उठता था। आज भी ये बाते सोलह आने सही है। क्योंकि हमारे पुर्वजों ने हमें गर्व करने लायक बहुत सारी चीजें दी। हमारे वो महान नेता जिन्हें याद करके आज भी हमारा सर श्रद्धा से झुक जाता है। या फिर वो दिलेर और साहसी क्रांतिकारी जिन्होने हसते हसते देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी। जिनकी वजह से आज हम आजाद भारत में सॉंस ले रहे है। उनलोगों ने जो भी किया भविष्य में आने वाली नस्लों के बारे में सोच कर किया। जिसकी वजह से आज हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का हिस्सा बने हुए है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए क्या कर रहे है और क्या वे ये गर्व से कह सकेगें कि हमें गर्व है कि हम भारतीय है। आखिर हम उन्हे विरासत में गर्व करने लायक क्या देने जा रहे है भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से लिप्त देश। अराजकता एवं असहिष्णुता से भरा हुआ समाज जिसमें आज सिर्फ मैं का बोलबाला है हम का नहीे। वो हमें अवश्य याद करेगें लेकिन सृजनकर्ता के तौर पर नहीं विनाशकर्ता के रूप में। क्या हमारी आने वाली नस्ल आज के नेताओं को (यदि कुछ को छोड़ दे तो जिनकी गिनती उगॅंलियों पर हो जाएगी) वो इज्जत बख्श पाएगी जिसके हकदार महात्मा गॉंधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू आदि थे। जिन्हें जन्म लेते ही मिलावटी खाद्य पदार्थो से सामना हुआ हो अच्छे स्कुल कालेज में दाखिले के लिए डोनेशन देना पड़ा हो नौकरी करने के लिए पैसे या पहुॅच का इस्तेमाल करना पड़ा हो वो क्योंकर हमें याद करेगें। हॉं वे हमें याद करेगें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए, आर्दश घोटाले के लिए, ताबुत घोटाले के लिए,  कॉमनवेल्थ घोटाले के लिए, चारा घोटाले के लिए, प्रदुषित जलवायु के लिए, सड़को पर भेड़ बकरियों की तरह बढ़ते ट्रैफिक के लिए, दंगे और फसाद के लिए। अभी भी वक्त है हम आने वाली नस्ल के लिए बहुत कुछ कर सकते है। उन्हे एक स्वस्थ और सहयोगात्मक समाज एवं हिसांरहित और भयमुक्त वातावरण में सॉंस लेने दे। उन्हे एक ऐसा देश सौपे जो प्रगति के पथ पर अग्रसर हो। जहॉं सभी के सर पर छत हो और एक इंसान भुखा नही सोता हो। 

Tuesday, December 14, 2010

जिन्दगी

चित्र santabanta.com साभार

जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए
अभी उलझा हॅु मैं
अपनी उलझनें सुलझाने में।
जो छोड़ी है सिलवटें तुमने
मेरे चेहरे पर
उन सभी का बारी बारी
हिसाब करने।
जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए।
सुना है
तुम और वक्त मिलकर
खुब उधम मचाते हो।
क्या अमीर और क्या गरीब
सभी को एक समान सताते हो।
बालों की सफेदी और
झुकी हुई कमर
तेरी जुल्मतें बयॉं करती है।
तेरे साथ साथ अब
वक्त भी लोगों पर
हॅंसा करती है।
कोई तो आएगा
जो तुमसे
अपनी नजरें मिलाएगा
उस दिन मैं भी
तुम पर मुस्कुराउगॉं।
जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए
अभी उलझा हॅु मैं
अपनी कुछ उलझनें सुलझाने मे।

Monday, December 13, 2010

ससंद हमले की नौवी बरसी पर नेताओ ने दी शहीदो को श्रद्धाजंली


ससंद हमले की नौवी बरसी पर शहीदों को नेताओ द्वारा श्रद्धाजंली अर्पित कर इस नौटंकी की इति श्री कर दी गई। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसी लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर आज से नौ साल पहले हमला किया गया जिसमें लगभग नौ जवान शहीद हो गए। इन जवानों ने अपनी जान पर खेलकर जिन लोकतंत्र के पहरूओं की रक्षा की वही लोग आज उनके शहादत को दागदार कर रहे है। कितने शर्म की बात है कि ससंद भवन पर हमला करने वाला अफजल गुरू आज नौ साल बाद भी जिंदा है और शहीदों के परिजन उसकी फॉसी का इंतजार कर रहे है। एक खास तबके के लागों के कोपभाजन के शिकार से बचने के लिए ये लोग कितना घिनौना खेल खेल रहे है। आखिर जब हमारे देश की अदालत ने उसे फॉसी की सजा दे दी है तो क्या वजह है कि सरकार चुप है। माना कि हमारे देश में फॉसी की सजा पाए व्यक्ति को महामहीम के पास अपील करने की सहूलियत मिली हुई है लेकिन क्या ये उस लायक है कि इसकी फॉसी की सजा माफ कर दिया जाए। उसने हमारे देश की मर्यादा और उसकी अस्मिता पर हमला किया था। अगर इसे माफी मिल गई तो जरा सोचिए कि अराजक तत्वों के बीच क्या संदेश जाएगा और हमारे देश की क्या इज्जत रह जाएगी।  

Saturday, December 11, 2010

बलात्कार

चित्र गुगल साभार

एक औरत
बलात्कार की शिकार
खड़ी न्यायालय के कटघरे में
झेलने के लिए
सवालों की बौछार।

वकील ने पुछा
उससे एक सवाल
बताओ
कैसे किया उसने
तुम्हार शील भगं
कहॉं थे उसके हाथ
और कैसे उसने
तुम्हारे वस्त्र दिये थे उतार।

सुनकर ये सवाल
उस औरत के अंर्तमन में
मचा हाहाकार।

सोचा उसने
इनलोगों से बेहतर वो था
उसने जो भी किया
लोगों की निगाहों से
छुप कर किया।

पर यहॉं
लोगों की नजरों के सामने
खुलेआम
उसका हो रहा है
बलात्कार।

नितीश सरकार ने बढ़ाए एक और कदम

पॉच साल पहले बिहार में जो सुरज निकला था लगता है अब वो परवान चढ़ने लगा है। जिसका उदाहरण है नितीश सरकार के दूसरी बार सत्ता में आते ही भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने की शुरूआत करना। औरगांबाद के एमवीआई की संपत्ती जब्त होने के साथ ही बिहार के भ्रष्ट अधिकारियों एवं रिश्वतखोरों में हड़कम्प मचा हुआ है। आय से अधिक संपत्ति के मामलें में उनकी लगभग पैतालिस लाख रू0 की संपत्ति जब्त कर ली गई है और उनके मकान में स्कूल खोलने की तैयारी चल रही है। जरूरत है इसको आगे बढ़ाने की और उनके जैसे अन्य भ्रष्ट कर्मियों के उपर नकेल कसने की। सरकारी नौकरियों में जिस तरह से भ्रष्टाचार अपने चरम है अगर उसको खत्म करना है तो इस तरह के कानून को कठोरता पुर्वक लागू कर उस पर अमल करना जरूरी है। लोग सरकारी नौकरी इसलिए ही करना चाहते है कि वेतन के साथ साथ उपरी आय का एक जबरदस्त सिलसिला चल निकला है। इसलिए लोग येन केन प्राकरेण सरकारी नौकरी हासिल करना चाहते है। फिर चाहे वो अपनी योग्यता से मिल जाए या फिर पैसे के बल पर। क्योंकि लोग जानते है कि इसमें वेतन के साथ साथ हर महीने उपरी आय के तौर पर एक मोटी रकम हासिल होती है। सरकार ने जो कदम उठाए है उसके साथ साथ आम लोगो को भी समझना चाहिए कि सरकारी नौकरी और पावर जनता की सेवा करने के लिए मिलती है जिसका सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। इस मामले में बिहार ने कठोर कदम उठाकर कर देश की जनता एवं दूसरे राज्यों के सामने एक और मील का पत्थर खड़ा कर दिया है। आपका क्या कहना है।

Tuesday, December 7, 2010

बनारस में एक बार फिर लहुलुहान हुआ देश

चित्र  santabanta.com साभार

बनारस में एक बार फिर आतंकवादियों ने हमारी सुरक्षा प्रणाली को धत्ता बताते हुए एक हृदय विदारक घटना को अंजाम दिया। हर बार की तरह एक बार फिर से हमारे देश के नेताओं ने इस घटना पर अफसोस व्यक्त किया एवं इसकी घोर निदां की और जनता को आश्वासन दिया कि इस तरह की घटनाओ को अजांम देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।  इन नेताओं की मोटी चमड़ी पर कोई फर्क नही पड़ने वाला।  जब भी इस तरह का कोई वाक्या होता है तो ये लोग निन्दा करके एवं मुआवजा देकर अपना पिडं छुड़ा लेते है। इन्हे मरने वालों के परिजनों का एवं घायल लोगों के दर्द को कोई एहसास नहीं होता क्योंकि इनमें इनके अपने नहीं होते है। ये तो ‘शुक्र है भगवान का कि इस घटना में ज्यादा क्षति नहीं हुई एवं सिर्फ एक बच्ची की जान गई। ये बातें सुनकर हमारी सरकार खुश हो सकती है हमारे नेता खुश हो सकते है लेकिन जरा कोई उन घरों में झॉंक कर देखे जिस घर से एक जान चली गई। कल तक जहॉं उस घर में उस बच्ची की हसीं गुजॉं करती थी आज उसके ‘शव पर लोग विलाप कर रहे है। क्या सरकार के आश्वासनों एव मुआवजों से उस घर की खुशियॉं लौट आएगीर्षोर्षो मरना तो एक दिन सभी को है लेकिन ऐसे नही ।हम सरकार चुनते है ताकि वो हमारी हितों एवं हमारी जान माल की सुरक्षा कर सके। प्रत्येक साल इस तरह की दो तीन घटनाएंं हो जाती है। उस हम अफसोस जताते है। फिर कुछ दिनों के बाद सब भुल जाते है। ये हमारी सरकार का फर्ज बनता है कि उन इन्सानियत के दुश्मनों को पकड़ कर सजा दे। लेकिन होता क्या है ये सब कुछ हमारी ऑंखों के सामने है। ससन्द भवन हमले का आरोपी अभी भी जीवित है, मुम्बई हमले का आरोपी कसाब अभी तक जीवित है और उस पर प्रति महीने लाखों खर्च किये जा रहे है। पाकिस्तान में बैठे उनके आका आराम से घूम रहे है। पिछले दिनों मुम्बई हमले की बरसी पर सरकार द्वारा बयान आया था कि पाकिस्तान इन हमले मे आरोपित दोषियों को सजा दे। लेकिन हम सभी लोग जानते है कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। अमेरिका में हुए वल्र्ड ट्रेड सेटंर हमले के बाद वैसा हादसा कभी दुहराया नहीं गया। इस हमले को लगभग दस साल होने को है। तो हम क्यों बार बार इस त्रासदी को झेलते हैर्षोर्षो आखिर ये दोष किसका है, हमारी निक्कमी सरकार का जो आकठं भ्रष्टाचार में डुबी है या फिर हमारी सुरक्षा प्रणालियों का । वजह चाहे जो भी हो हर बार भुक्तभोगी बेचारी निरीह जनता ही बनती है। मुझे याद आ रहा है `ए वेडनसडे´ फिल्म का एक डायलाग जिसमें कहा जाता है कि हम तो तुम्हे ऐसे ही मारेगें तुम क्या कर लोगे।

Saturday, December 4, 2010

बाल मजदूर

कुछ दिनों पहले मैं अपने एक दोस्त से मिलने जा रहा था। सुबह का समय था मैनें देखा कि तीन छोटे छोटे बच्चे जिनकी उम्र लगभग बारह साल के आस पास होगी मिट्टी के ढेर को टोकरी में उठा कर दूसरी जगह रख रहे थे।तभी मेरे दोस्त ने बताया कि तीन दिनों के अन्दर इनलोगों ने लगभग चार ट्राली मिट्टी की ढुलाई कर दी है। इनकी ये अवस्था काफी कुछ बयान करती है।


कुदरत ने इसके साथ ये कैसा मजाक किया है
कलम की जगह इसने हाथों में कुदाल लिया है।

लड़ते हैं ये रोज दुनिया से रोटी के वास्ते
बड़े ही दुर्गम और कॉटों से भरे है इनके रास्ते।

कुछ तो पिज्जा और बर्गर से भी मुहं फेरते है
ये मासुम बच्चे सिर्फ दो रोटी को तरसते है।

सामने आ भी जाए तो हम इन्हें दुत्कारते है
बगल में बैठे कुत्ते को हम प्यार से पुचकारते है।

इनकी बेबसी हमें बहुत कुछ सोचने को मजबुर करती है
इन मासुमों की जिन्दगी क्या कुत्तों से भी गई गुजरी है।