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Friday, August 27, 2010

इन्तजार

सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,
सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।
यूं तो बहुत है गुल इस चमन में,
पर जिस पर नज़र गई,
वो किसी और का हमराज था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।
उनकी हाथों का खंजर जो,
भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
मेरे उस जिगर को,
कभी उनसे ही प्यार था।
़जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

Sunday, August 22, 2010

हसीन लम्हें












आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें
दिल पे इतने जख्म हैं उन्हें दिखाए कैसें ।
आज भी ये दिल धड़कता है आपके लिए
आपको हम बताएं तो बताएं कैसे
गुजर गया वो जमाना जब हम साथ थे,
गमों से दूर और खूशी के पास थे।
हाथों से हाथ छूट गए,
दिल के रिश्ते टूट गए।
छलक आते हैं आंसू इन आंखों में,
बेदर्द जमाने से उसे छुपाए कैसे।
आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें।
बीत गए दिन, महीने और साल,
पलट कर उन्होंने कभी पूछा न मेरा हाल।
गिला नहीं के वो भूल गए मेरा प्यार,
हम तो आखिरी सांस तक करेंगे आपका इन्तजार।
आप जान हो मेरी आपको इस दिल से मिटाए कैसे,
आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें!

Saturday, August 7, 2010

तन्हाईयॉं


जब कभी मैं
तन्हाईयों से घबरा कर
अपनी ऑंखें बन्द करता हंु।
अक्सर
तन्हा होते हुए भी
मैं तन्हा नही रह पाता हुंं।
पता नही कहॉं से वो
मुस्कुराती और इठलाती हुई आ जाती है।
थाम कर मेरा हाथ अपने हाथों में
दूर बहुत दूर ले जाती है।
ले कर मुझे अपनी आगोश में
प्यार से मेरे गालों को चुमती है।
पहरों इसी तरह बैठ कर हम
एक दूसरे को देखा करते है।
पता ही नहीं चलता
कब रात घिर आई और
कब सबेरा हो गया।
वास्तव में
उसने मेरा साथ छोड़ा है
उसकी यादों ने नही।
वो अब भी मुझसे मिलती है
कभी मेरी यादों में
तो कभी मेरी तन्हाईयों में।
और इस तरह
अक्सर
मैं तन्हा होते हुए भी
तन्हा नहीं रह पाता हंुं।