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Thursday, December 29, 2011

दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता...........




जिस्म तो  बहुत  मिलते  है  पर  यहॉं प्यार नही  मिलता
हथेली पर लिए दिल खड़ा हूँ  कोई खरीदार नही मिलता।

कोई तो बताए पता मुझे उस दुकान का 
जो बेचता हो वफा वो दुकानदार नही मिलता।

कैसे करू यकीं तेरी वफा पर तु ही बता
इस बेवफा दुनिया में कोई वफादार नही मिलता।

सुना है वक्त ने भी फेर ली है मुझसे ऑखें
उससे बेहतर कोई राजदार नही मिलता।

अपने ही सब कर्मो का असर है ये ‘अमित’
दैर ‘ओ’ हरम में भी परवरदिगार नही मिलता।

Sunday, December 18, 2011

दरख्त........


चित्र गूगल साभार




जरा देखो तो
इस दरख्त को।
कभी
इसके साथ भी
बहार थी।
उसका साथ क्या मिला
हर लम्हा
गर्व से सीना ताने
हर किसी से
लड़ता रहा।
चाहे धुप हो
या फिर
मुसलाधार बारिश
या फिर
पर्वतों का भी
सीना चीरने वाली
तेज हवाएँ।
न जाने कितने
अनगिनत परिन्दों का
बसेरा था ये।
जो भी इसके
करीब आया
उन सबको इसने
अपने सीने से लगाया।
फिर एक दिन
ना जाने
इससे क्या खता हुई
कि बहार ने
इसका साथ छोड़ दिया।
वो परिन्दे भी
जो कभी इसकी शाखों पर
रक्स किया करते थे
अपना मुँह मोड़ लिया।
अब कोई भी
इसके करीब नही आता।
सारे जमाने का
दर्द सहते हुए
ये अब भी खड़ा है
शायद
इस इतंजार में
कि कभी तो
बहार वापस आएगी
और उसके
पुराने दिन फिर से
वापस लौट आएगें।

Saturday, December 10, 2011

ये फूल........





सुबह सुबह देखो तो 
इन फूलों की
पंखुड़ियों पर 
पानी की चंद 
नन्ही नहीं बुँदे
पड़ी होती हैं ।
तो क्या 
ये फूल भी 
किसी की याद में 
सारी रात रोती है।

Saturday, December 3, 2011

तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया


चित्र गूगल साभार 


तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया 
इस कदर मैने चाहा तुम्हें के खुद फना हो गया।

दिल पे जख्मों के निशॉं अभी बाकी है
हाथ में जाम है और सामने साकी है
इतनी पी मैनें के होश से जुदा हो गया
इस कदर मैनें चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

इश्क वो सैलाब है जो हर दिल में उठती है
साहिल भी लहरों से मिलने को मचलती है
डुबा जो इसमें उसका निशॉ तक खो गया
इस कदर मैने चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

हम भी कभी खुद पे नाज किया करते थे
न फिक्र थी कोई बस अपनी धुन में रहते थे
मिला जो तुमसे मै तो दाना से नादॉं हो गया
इस कदर मैने चाहा तुझे के खुद फना हो गया।

तुमसे प्यार करना मेरा सबसे बड़ा गुनाह हो गया
इस कदर मैने चाहा तुम्हें के खुद फना हो गया।

Friday, November 25, 2011

कभी तो हमसे मिला किजिए।


चित्र गूगल साभार 


कब से खड़ा हुॅ राहों में बस एक इल्तिजा लिए
गैर बनकर ही सही कभी तो हमसे मिला किजिए।

अब बर्दाश्त नहीं होता ये ग़म ए जुदाई का एहसास
मेरे इंतजार का अब कोई तो सिला दीजिए
गैर बनकर ही सही कभी तो हमसे मिला किजिए।

यॅू तो लाखों है आपकी राहो में इश्क ए चराग जलाए हुए
नजर भर कर कभी हमें भी देखा किजिए
गैर बनकर ही सही कभी तो हमसे मिला किजिए।

हम तो जॉ भी लुटा दें अपनी खुशी से
बस एक नजर देखकर हमें मुस्कुरा दीजिए
गैर बनकर ही सही कभी तो हमसे मिला किजिए।

और कुछ न मॉगेंगे हम खुदा से
हमें अपना हमसफर बना लिजिए
गैर बन कर ही सही कभी तो हमसे मिला किजिए।

Thursday, November 10, 2011

आज फिर महका है गुलिस्तॉ.......


चित्र गूगल साभार 


आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।

कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
हम कितनी मुद्धत बाद मिले हैं।
आओ भुला दें हम सभी 
दिल में जितने शिकवे गिले है।

कुछ इस तरह रातें बिताई है मैनें
जागती ऑखों से सपने बुने हैं।
चॉदनी रातों में जाग कर हमनें
ना जाने कितने तारे गिने है।


आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।



Wednesday, November 2, 2011

मैं और मेरी कवितायेँ

चित्र गूगल साभार 



तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ
और मेरे बिना तुम ।
एक तुम ही तो हो
जो हर वक्त मेरे साथ रहती हो ।
मेरी तनहाइयों में भी
तुम्हारा वजूद इतनी मजबूती के साथ
अपना आभास करता है कि
मैं चाहकर भी तुम्हे नकार नहीं सकता ।
अपने हर सुख और दुःख को
ना जाने कब से मैं
तुम्हारे साथ साझा करता आ रहा हूँ ।
तुमने हर कदम
मेरा हौसला बढाया है ।
जब भी गिरा हूँ मैं
या फिर दुनिया वालों ने
जब सताया है
तुम्हारे पास ही तो
आया हूँ मैं ।
अपनी आगोश में लेकर
ना जाने कितनी बार
तुमने मुझे टूटने से
बचाया है ।
पहले लगता था
कि शायद
तुम मेरी सोच तक ही सीमित हो ।
लेकिन अब एहसास होता है कि
तुम्हारे बिना मेरा वजूद
हो ही नहीं सकता ।
हम दोनों आपस में
कुछ इस तरह से जुड़े हैं
जैसे शरीर के साथ
सांसों कि डोर ।
अक्सर कुछ इसी तरह की
बातें किया करते है
जब साथ होते हैं
मैं और मेरी कवितायेँ ।

Thursday, October 20, 2011

उनका ख़्याल तो आया


एक लंबे अतंराल के बाद एक बार फिर से आप सभी लोगों के साथ आना अच्छा लग रहा है। कुछ व्यस्तता थी जिसकी वजह से लगभग डेढ़ महीने नेट चलाया ही नही। अब एक बार फिर से आप सभी के पास आ गया हुं। आशा है आप सभी लोगों का स्नेह और प्यार पहले की तरह ही हमें मिलता रहेगा।



किसी से सुना था मैंने 
इस बार छुटि्टयों में
कुछ दिनों के लिए ही सही
तुम यहॉ आई थी।
सोए हुए ख्वाब
फिर से जाग गए।
दिल की गहराईयों में
फिर कहीं
एक आस की किरण
अपने पंख
फड़फड़ाने लगी।
इस ख़्याल से कि
कुछ पल के लिए ही सही
कम से कम
एकबार तो जरूर
मिलने आओगी।
प्यार के रिश्ते को ना सही
दोस्ती का रिश्ता तो
अवश्य निभाओगी।
निगाहें खुद ब खुद
उठ जाती थी
उन राहों पर
जिनसे तुम
गुजरा करती थी।
निगाहें
हर आने जाने वालों में
तुम्हारा चेहरा
तलाश करती थी।
दिन गुजरते गए
और हर गुजरते दिनों के साथ
मैं दिल को समझाता रहा
शायद अगले दिन
उससे मुलाकात हो।
अचानक तभी
उसने आकर बताया
तुम सबेरे वाली बस से
वापस चली गई।
मैंने  दिल को
तसल्ली दी (झुठी ही सही)
और खुद को बहलाया।
अरे क्या हुआ
जो वो नही आए
कम से कम उनका
ख़्याल तो आया।

Monday, August 29, 2011

जिंदगी की भी अजीब दास्तान होती है........


चित्र गूगल साभार



जिन्दगी की भी अजीब दास्तान होती है
हर गुजरता लम्हा मौत का फरमान होती है।

वक्त भी गर दगा दे तो कोई क्या करे
बहारों में भी चमन वीरान होती है।

धोखा और फरेब ही फितरत है जिनकी
ऐसे लोगों पर ही जिन्दगी मेहरबान होती है।

कहते हैं लोग के हम हबीब है तेरे
बुरे वक्त में ही उनकी पहचान होती है।

क्योंकर भरोसा किया हमनें उनपर जिनके
हाथों में खंजर और चेहरे पे मुस्कान होती है।

Saturday, August 27, 2011

अतंतः लोकतंत्र जीत गया.............

चित्र गुगल साभार


और अतंतः लोकतंत्र जीत गया। आजादी के बाद ये पहली बार हुआ कि कोई क्रांति सफल हुई। इसके पहले हम बाबा रामदेव का हाल देख चुके थे। आजादी के बाद ये पहली क्रांति है जो बिना खुन खराबे के सफल हो गया और जनता की जीत हुई। हालाकि जेपी आंदोलन भी सफल हुआ था पर उसमें जो दमन चक्र चला वो किसी हैवानियत से कम नही था। शायद इसलिए ये सफलता और भी मायने रखती है। जैसा कि अन्ना हजारे ने कहा है कि ये जीत अभी अधुरी है। जाहिर है इस जीत के साथ हमें भी कसम उठानी होगी कि न तो हम भ्रष्टाचार करेगें और न ही किसी को करने देगें। वरना अन्ना हजारे जी का बारह दिनों का उपवास और असंख्य लोगो का दिन रात की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। कानुन अगर बनता है तो तोड़ने वाले भी पैदा होते है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पहले भी कानुन था उसके बावजुद भी हमारा देश उपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो गया। जिसको जैसे मिला वो बहती गंगा में हाथ धोता रहा। तो ये मान लेना भी मुर्खता होगी कि लोकपाल कानुन बन जाने के बाद भ्रष्टाचार पुरी तरह से समाप्त हो जाएगा। भ्रष्टाचार का दानव पुरी तरह से उस दिन अपने आप समाप्त हो जाएगा जिस दिन इस देश का प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वाहण पुरी इमानदारी से करेगा। 

चित्र गुगल साभार

Saturday, August 20, 2011

जन लोकपाल बिल ही सही है।



जब से अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन शुरू हुआ है ऐसा लगता है भारत दो टुकड़ों में बॅट गया है। एक टुकडे़ में रह रहे लोग मानते है कि जो हो रहा है सही हो रहा है और दुसरे वाले लोग उसे गलत मानते है। उनकी भी अपनी दलीलें हैं मसलन ये संसंद की अवमानना है, कोई एक इंसान किसी भी तरह का कानुन बनाने के लिए बाध्य नही कर सकता, कानुन बनाना संसंद का काम है इत्यादि, इत्यादि। कॉग्रेस के लोगों का भी कहना है कि जब जनता ने उन्हे चुन कर संसंद में भेजा है तो उन्हें अपना काम करने देना चाहिए और अगर किसी को ये गलत लगता है तो वो जनता के बीच जाय और चुनाव में जीत कर आए। मतलब ये कि अगर जनता ने आपकों चुन लिया तो आप पॉच सालों तक कुछ भी कर सकते हैं और जनता को कुछ भी कहने का हक नही है। ‘साहब’ ये जनतंत्र है और जनतंत्र में अगर जनता आपकों सर माथे पर रखती है तो आपको वहॉ से गिरा भी सकती है। जो लोग कुर्सी तक पहुॅच जाते है वो अपने आप को खुदा समझने लगते है। आपके खिलाफ वही लोग तो खड़े है जिन्होनें आपको संसंद में भेजा है। ये चुनाव ही तो है। फर्क सिर्फ इतना है कि चुनाव में लोगों का मत पेटियों या इलेक्ट्रानिक्स मशीनों में बंद होता है और यहॉ खुलेआम मत प्रयोग हो रहा है। संसंद जनता का ही प्रतिरूप है। जनता आपको अपना प्रतिनीधि बना कर भेजती है ताकि आप उसके परेशानियों और सहुलियतों का ख्याल रखें। आप ये हमेशा ख्याल रखें कि आप जो वहॉ बोलते है वो आप नही 125 करोड़ भारतीय जनता की आवाज होती है। अगर वही जनता खुलेआम अपना हक मॉग रही है तो आपकों तकलीफ क्यों हो रही है।

मैं भी मानता हुॅ कि भ्रष्टाचार को जड़ से नही मिटाया जा सकता है। लेकिन इसे कम तो किया जा सकता है और इसे कम करने के लिए एक सख्त कानुन की बेहद आवश्यकता है। अभी का कानुन या फिर सरकारी लोकपाल बिल इतना लचीला है कि कोई भी इसका माखौल उड़ाता नजर आता है। अगर ऐसा नही है तो जरा बताएॅ कि कितने ऐसे नेता है जिन्हें भ्रष्टाचार मामले में सजा हुई है। कानुन सबके लिए समान होता है आप भी इससे अछुते नही है। और फिर अगर आपका दामन पाक साफ है तो इससे डरते क्यों है। 
भ्रष्टाचार को काबु में करने के लिए जन लोकपाल बिल ही सही है सरकारी लोकपाल बिल नही। इसलिए सरकार को अन्ना हजारे टीम से बात करनी चाहिए और करोड़ों भारतीयों के आवाज का सम्मान करना चाहिए।


Thursday, August 18, 2011

तुम्हारी कमी सी है


चित्र गुगल साभार



सारा जहॉ साथ है मेरे
पर तुम्हारी कमी सी है
भीगा भीगा है समॉ
और ऑखों में नमी सी है।
खुशियों के बादल छॅट गए
गमों का खुला आसमान है
मिट गई जीने के ख्वाहिश
दिल की दुनिया वीरान है।
हैरॉ है मेरी ऑखे
और हम परेशान है
हम तुम्हें समझ न पाए
हम कितने नादान है।
जिन्दगी और मौत के
फासले सिमट गए
बस चंद सॉसे थमी सी है।
सारा जहॉ साथ है मेरे
पर तुम्हारी कमी सी है
भीगा भीगा है समॉ
और ऑखों में नमी सी है।

Sunday, August 14, 2011

क्या सही मायने में हम आजाद है।


चित्र गुगल साभार


15 अगस्त यानि देश की आजादी का दिन। 15 अगस्त 1947 ही वो दिन था जब सही मायने में एक देश का उदय हुआ जिसका नाम भारत है। वरना इससे पहले तो ये कई टुकड़ो में बटॉ हुआ था। ये देश ना जाने कितने खुनी दास्तानों को अपने अदंर समेटे हुए है। कई सौ सालों की गुलामी के बाद यहॉ के लोगों ने आजादी की हवा में सॉस ली। बहुत अच्छा लगता है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले के प्राचीर पर झडोंत्तोलन के बाद राष्ट्र को संबोधित करते है। जगह जगह सरकारी महकमों में राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जाती है। हम आजादी के उन वीर सपुतों को याद करते है जिन लोगों ने अपने जान की परवाह नही करते हुए हमें इस मुकाम तक पहुॅचाया है। 

      लेकिन क्या हमें ऐसा नही लगता कि ये एक नाटक से ज्यादा कुछ नही है। माफ किजिएगा मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुॅचाना या किसी बहस को जन्म देना नही है। एक आजाद देश के नागरिक होने के नाते कुछ बातें दिल में आई है जिसे मैं यहॉ लिख रहा हुॅ। आजादी क्या है और इसके क्या मायने है? हमसे ज्यादा आप सभी बुद्धिजीवी लोग इस बात को बेहतर समझते होगें और आशा करता हुॅ कि हमें भी इससे अवगत कराने का कष्ट करेगें। लेकिन जहॉ तक मैं समझता हुॅ कि ये अभी भी एक विचारणीय प्रश्न हो सकता है कि क्या वास्तव में हम आजाद है? क्या सिर्फ देश की सीमाओं को सुरक्षित रखना आजादी है, क्या सिर्फ अपने तरीके से जीवन जीना आजादी है, या फिर आजादी का मतलब एक ऐसे राष्ट्र निर्माण से है जहॉ लोग खुशी से अपनी जिदंगी बसर कर रहे हो, जहॉ कोई भुखे पेट नही सोता हो, हरेक हाथ को काम हो, जहॉ सभी को बराबर का दर्जा दिया जाता हो। जरा याद करने की कोशीश किजिए भगत सिंह ने कहा था कि हमें एक ऐसे राष्ट्र को निर्माण करना है जहॉ सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हो, अमीर वर्ग गरीब वर्ग का शोषण नही करे। कहीं ऐसा न हो कि हम आजाद तो हो लेकिन सत्ता गोरे लोगों की हाथों से निकल कर भुरे लोगों के हाथों में आ जाए। 

       हम आजाद तो हो गए लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया हम आजादी के मुल्यों को नजरअदांज करते गए। आजादी के वो दिवाने किस्से कहानियों तक सीमित होकर रह गए। उनका अस्तित्व सिर्फ दुसरों को उपदेश देने के लिए रह गया उस पर अमल करने के लिए नही। अब 15 अगस्त का दिन हमारे अदंर कोई जोश पैदा नही करता बल्कि ये हमारे लिए एक सार्वजनिक छुट्टी का दिन होता है। इस दिन को हम तिरंगा फहरा कर एवं उसे सलामी देकर हम सिर्फ खानापूर्ति करते है। जहॉ तक मुझे लगता है कि 15 अगस्त हम इसलिए नही मनाते है कि हम इसके द्वारा उन वीर सपुतों के प्रति आभार प्रकट करते है या उनके विचारों को अमल करने की शपथ लेते है या फिर देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वोे के निर्वहन हेतू दृढ़ सकंल्प होते है बल्कि इसे हम एक रूटीन की तरह पुरा करते है।

       आज जो इंसान देशभक्ति, आजादी, सच्चाई और ईमानदारी की बातें करता है वो बेवकुफ कहलाता है और जो रिश्वत, भ्रष्टाचार एवं पैसे की बात करता है वो चालाक। आज के इस उपभोक्तावादी समाज में सभी ये जानते है कि देशभक्ति के जज्बे, ईमानदारी और सच्चाई से उनके यहॉ टेलिविजन, फ्रिज, लंबी-लंबी गाड़िया और एयरकंडीशन नही आ सकते। उसके लिए चाहिए पैसा और ईमानदारी से आप दो वक्त की रोटी जुटा सकते है ये सारी वस्तुए नहीं। कितने लोग है जो सही मायने में देश के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते है। आज लोगों की सच्ची श्रद्धा पैसों के प्रति है चाहे वो आम आदमी हो या फिर ससंद में बैठे नेता। वरना क्या वजह है कि आरक्षण जैसी फिल्म पर तो ये लोग हो हल्ला मचाते है और इसके प्रदर्शन पर रोक लगाते है पर जब बात काले धन की वापसी का हो तो सभी लोगों को सॉप सुंघ जाता है।

       गुलाम तो हम आज भी है अपनी ओछी मानसिकता के, अपने दब्बुपन के, लालच के। क्या फर्क है आज की आजादी और उस गुलामी में। देखा जाए तो ज्यादा कुछ नही। पहले अंग्रेजों ने इस देश को लूट कर खोखला किया और आज हम खुद ही इस देश को लुट रहे है। जिसकी जैसी सहुलियत वैसे ही लूटने में लगा हुआ है। पहले चंद गोरों ने इस देश पर राज किया आज चंद पैसे वाले इस देश पर राज कर रहे है। नियम, कायदा, कानुन पहले भी गरीबों के लिए थे और आज भी गरीबों के लिए ही है। अमीर और रसुख वाले लोग तो आज भी कानुन को अपने तरीके से ही इस्तेमाल करते है। जो रक्षक है वही भक्षक बना हुआ है। क्या हम अब भी यही कहेगें कि हम आजाद है।   

Friday, August 12, 2011

अपने हाथों युॅ न करों र्निवस्त्र मुझे......


चित्र गुगल साभार




रास्ते में मैने एक बुढ़िया को देखा बदहवास
ऑखों में था पानी और चेहरे से थी उदास।

पुछा कौन हो तुम और किसने किया तुम्हारा ये हाल
जिदंगी आगे और भी है जरा अपने आप को संभाल।

बोली - बेटा अपनी हालत तुमसे कैसे करू बयान
कैसे दिखाउॅ तुम्हे अपने बदन पे जख्मों के निशान।

मेरे चाहने वाले ही मेरी हालत के जिम्मेदार है
कैसे कहुॅ कि वो मेरे दुध के कर्जदार है।

मेरे बेटों ने ही मेरा ये हाल बनाया है
देखो किस तरह उन्होनें दुध का कर्ज चुकाया है।

मैने कहा चल मेरे साथ तेरा ये बेटा अभी जिदां है
पोछ ले तु ऑसु अपने क्यों खुद पे तु शर्मिदां है।

कहॉ ले जाओगे मुझे मैं एक लुटी हुई कारवॉ हुॅ
बेटा मै कोई और नही तेरी अपनी ही भारत मॉ हुॅ।

बख्श दो अब और न करो युॅ त्रस्त मुझे
अपने हाथों युॅ न करों र्निवस्त्र मुझे।  

Saturday, August 6, 2011

सच और झुठ


चित्र गुगल साभार



बहुत अजीब लगता है
जब लोग
जिदंगी की बात करते है।
जबकि
हर गुजरता लम्हा
हमें मौत के करीब
ले जाता है।
आखिर लोग
सच से इतना
दुर क्यों भागते है।
या फिर
सच सुनने की
हमें आदत ही नही है।
क्यों हम ख्वाब को
हकीकत समझ
उसपर विश्वास करते है।
हम क्यों
उसके ही करीब
रहना चाहते है जो
एक न एक दिन
हमें छोड़कर चला जाएगा।
शायद इसलिए ही
लोग कहते है कि
सच बहुत ही
कड़वा होता है और
झुठ मीठा।

Monday, August 1, 2011


कुछ दिनों पहले ये ग़ज़ल मेरे मेल पर आया हुआ था। ये रचना किसकी है मुझे नही मालुम। मैं उसे हु ब हु यहॉ दे रहा हुॅ।



तु अगर मेरा नही तो फिर ऐसा क्यूॅ है
मेरी ऑखों से तेरे ख्वाब का रिश्ता क्यूॅ है।

रास क्यूॅ आता नही मुझको खुशी का मौसम
गम का बादल मेरी आखों से बरसता क्यूॅ है।

गम के दरिया के उस पार है खुशी का साहिल
इश्क करता है तो रूसवाई से डरता क्यूॅ है।

बेवफाई का हुनर भी है वफादारी में
इक चेहरे पे तेरे दुसरा चेहरा क्यॅू है।

उम्र भर जिसकी मोहब्बत पे मुझे नाज रहा
सोचता हु कि वही आज पराया क्यूॅ है।

Saturday, July 23, 2011

अब और क्या बचा है मेरे पास


चित्र गुगल साभार



सबकुछ तो दे दिया तुम्हें
अपनी नींद, चैन
भुख और प्यास
अब और क्या बचा है
मेरे पास।
कुछ भी तो नहीं है
सिवा चंद धुंधली यादों के।
उन यादगार लम्हों को ही
घूॅट घूटॅ कर पीता हॅु।
ख्वाबों को सिरहाने रख
एहसासों को बिछाता हुॅ।
जज्बातों को ओढ़कर
कोशीश करता हुॅ
गुजरे हुए लम्हों को
खींच कर उन्हें
अपने करीब लाने की।
पर क्या करू
पलकें भारी नहीं होती
और न ही
पहले की तरह चाॅद
बातें करता है।
रात गुजरती जा रही है
हाथ में पकड़े हुए
रेत की तरह
लम्हा - लम्हा।
बड़े मनुहार के बाद
चाॅद मुंडेर पर आकर
बैठता है।
मैने पुछा उससे
क्या हुआ
तुम मुझसे बात क्यों नही करते।
उसने कहा कि
क्या बात करू तुमसे
कुछ भी तो तुम्हारा नही रहा
बात करने को।
अपना अस्तित्व तक तुमने
उसे समर्पित कर दिया है।
मैं तो आज भी वही हुॅ
पर तुम!
अब तुम
तुम नही रहे।

Monday, July 18, 2011

एक आम आदमी की मौत........


चित्र गुगल साभार





आम इंसान कितना बेबस और नीरीह हो गया है। हर रोज तिल तिल कर मरता है। फिर भी जीने के लिए रोज नए नए समझौते करता है। चारो तरफ से गिद्ध दृष्टि उस पर पड़ी हुई है। डरता है, संभलता है फिर भी हर रोज चलता है। दिन आतंक के साये में गुजरता है और रात इस सोच में कि कल क्या होगा और उपर वाले का शुक्रिया अदा करता है आज किसी तरह निकल गया। पर बकरे की माॅ कब तक खैर मनाएगी। किसी न किसी रोज तो उॅट पहाड़ के नीचे आएगा ही। अगर आंतकी हमले से बच निकले तो सरकार जिंदा नही छोड़ेगी। इनके पास वैसे बहुत से हथियार है लोगों को मारने के लिए। पर अभी सरकार जिस हथियार का इस्तेमाल कर रही है वो है महगाॅई। ये ब्रह्मास्त्र है और इसका वार कभी खाली नही जाता। इसके जरिये सरकार आराम से धीरे धीरे लोगो का खुन चुस रही है।  अब चाहे कोई लाख चिल्लाए, चाहे कितना भी तड़फड़ाए क्या फर्क पड़ता है, मरना तो है ही।  वैसे देखा जाए तो हमें आतंकवादियों का शुक्रिया अदा करना चाहिए। कम से कम वो लोग हमें इतना तड़पाते तो नही है। बस एक धमाका और सबकुछ खत्म। परिवार वालों को भी आसानी होती है और पैसे बच जाते है। अब देखिए, अगर ऐसे मरे तो लाश को जलाओ, उसके लिए लकडि़याॅ खरीदो और भी तरह तरह के कर्मकांड। बम धमाके में मरने के बाद हमारे शरीर का ही पता नही चलता। सारे अगं अलग अलग और यहाॅ वहाॅ बिखरे हुए, तो जलाने का टेंशन खत्म। मीडिया में भी नाम आ जाता है। लोग मरने के बाद ही सही कम से कम जानते तो है कि इस नाम का कोई इंसान भी था। ऐसे मरने पर तो दस घर के बाद ग्यारहवाॅ घर जान भी नहीं पाता कि अमुक बाबु दुनिया में नही रहे। और तो और, वैसे मरने के बाद जहाॅ शरीर का कोई महत्व नही रहता। बम धमाके में मरने के बाद उसी मुर्दा शरीर का वैल्यु लाखों का हो जाता है। घर वाले भी खुश। सोचते हैं- चलो, जीते जी तो कुछ नहीं कर पाया मरने के बाद कुछ काम तो आया। वैसे भी हमारे रहनुमा ये खुलेआम कह चुके हैं कि हम आपकी सुरक्षा करने में असमर्थ है तो हम उनके द्वारा फैलाए चक्रव्युह में फॅस कर क्यों तिल तिल कर मरें। जब मरना ही है तो उस तरह क्यों न मरें जिससे कोई फायदा तो हो। तो जनाब, मैं भी बेकार और निठल्ला आदमी हुॅ। अब मैं भी कोई आतंकवादी खोज रहा हुॅ। अगर मिल गया तो पुछुगाॅ कि भाई अगली बार कहाॅ पर ब्लास्ट कर रहे हो, मुझे बता दो ताकि मेरा मरना कुछ काम तो आए। 

Wednesday, July 13, 2011

फिर से दहल उठी मुबंई



मुबंई में आज फिर धमाका हो गया। एक नही बल्कि तीन तीन जगहों पर। जाहिर है कई लोगों की जान गई और कितने ही लोग घायल हुए। हर बार की तरह इस बार भी कुछ सुने सुनाए जुमले दोहराए जाएगें। मसलन, ऐसी दुख की घड़ी में हम पीडि़त परिवारों के साथ है, हमें संयम बरतना चाहिए, ऐसे कृत्य करने वाले को बख्शा नही जाएगा, मरने वाले को इतना तथा घायलों को इतना मुआवजा दिया जाएगा। हमारे नेता ये सब कह कर इन जुमलों को फिर से सहेज कर रख देगें ताकि अगले बम धमाके में फिर से काम आ सके। हम कई सालों से आतंक झेलते आ रहे है। हम भारतीय भी संयम के मामले में कमाल के है। मेरे ख्याल से इसे गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में स्थान मिलना चाहिए। हम सभी जानते है कि सीमा पार के अलावे हमारे देश में भी कुछ ऐसे तत्व मौजुद है जो इस आतंक के खेल को बखुबी खेल रहे है। अब तो ये भी रोजमर्रा की बाते लगती है। जिन लोगों ने हमारे देश की अस्मिता यानि कि संसद भवन पर हमला किया जब उन्हें बचाने की कोशीश की जा रही है तो क्या हम ये आशा कर सकते हैं कि हमारे देश में ऐसी घटना दोबारा नहीं होगी। शायद ही इन सब बातों से किसी को कोई फर्क पड़ता होगा। ऐसी घटनाएॅ दो तीन दिनों तक चर्चा का विषय बनती है और हम फिर से अपने पुराने ढर्रे पर लौट आते है और इंतजार करते है अगले धमाके का। अमेरिका में ग्यारह सिंतबर के हमले के बाद अब तक कोई दुसरा आतंकवादी हमला नही हुआ। यही नही, उसने उन लोगों को नही बख्शा जिन्होंने इसकी साजिश रची थी। अब तो हमें समझ में आ जाना चाहिए कि अमेरिका क्यों नबंर वन है। हमने उनका भी क्या उखाड़ लिया जिन लोगों ने इससे पहले मुबंई को लहुलुहान किया था। कसाब महोदय अभी भी सरकारी मेहमान बने हुए है। आखिर हम भी अमेरिका की तरह क्यों नही बन सकते। क्यों हम इतने अक्षम और लाचार है कि आतंक के पहरूए हमें इस तरह की जलील मौत सौगात में दे जाते हैं। हमारी गुप्तचर संस्था क्या सिर्फ नाम के लिए है। आखिर क्यों हमे सारी चीजें घटना के बाद पता चलती हैं। या शायद हम सभी संवेदनहीनता की चरम सीमा तक पहुॅच गए है। हमारे नेता राजनीति अब देश के लिए नही अपने लिए करते है। नेता ही क्यों हमलोग भी अब देश के लिए नहीं अपने लिए ही जीते है। जिस देश की स्थिति ऐसी होगी उस देश में ये सब तो होगा ही। अराजकता अपना फन फैलाए है, भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और आतंकवाद के सामने हम बेबस है। ओशो रजनीश ने कहा था कि भारत देश में सिर्फ बुढ़े लोग रहते है। यहाॅ कोई युवा नही है। क्योंकि जिस देश में युवा होगा वो कभी गलत बर्दाश्त नहीं करेगा। वो आवाज उठाएगा, सिस्टम को बदल देगा क्योंकि युवाओं में ताकत होती है कुछ कर गुजरने की। बुढ़े लोग ऐसा नहीं कर सकते। तो हमें मान लेना चाहिए कि वास्तव में हमारा देश बुढ़ा हो गया है। अब यहाॅ कुछ नही हो सकता। अब हमें इंतजार करना चाहिए कि अगला धमाका कहाॅ होगा और उसमें कितने लोग मरेगें। 

Monday, July 11, 2011

कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी



कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।

कभी खुशियों के बादल पर उड़ाती है तो
कभी गम के सागर में डुबाती है जिन्दगी।

कभी अपनों को दुर करती है तो
कभी गैरों को अपना बनाती है जिन्दगी।

कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।

कहीं तन्हाई में खुद पर शर्माती है तो
कहीं महफिल में जाम टकराती है जिन्दगी।

कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।

Friday, July 1, 2011

पहली वर्षगॉठ


चित्र गुगल साभार


लिजिए बंधुओं! हमने भी अपनी वर्षगॉठ मना ली। हमारे भी ब्लॉगींग में पुरे एक साल हो गए। हालाकि ब्लॉग के बारे में मैं 2009 में जान पाया था। पर उस समय भी हमने इसे ज्यादा महत्व नही दिया। फिर जुन 2010 में हमारे एक ब्लॉगर साथी अरूण साथी जी के प्रयास से मैं इसमें शामिल हुआ। मैने अपने लेखन को कभी भी महत्व नही दिया। क्योंकि उस समय भी और आज भी गजल क्या है, कविता क्या है, नज्म क्या है मुझे इसके बारे में कुछ भी नही मालुम। बस दिल में जो आता है उसे कागज पर लिख देता हुॅ और आप सभी के सामने पेश कर देता हुॅ। जब मैं दसवीं क्लास में था तभी से मैने कुछ न कुछ लिखना शुरू किया था। जिसका उस वक्त कोई मतलब नही होता था। उस वक्त भी और आज भी चंद लोग ही है जो ये जानते है कि मैं कुछ वाहियात सा लिखता भी हुॅ। मैं आप सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हुॅ कि इतने दिनों तक आप सभी ने मुझे झेला और मेरी हौसला अफजाई की। जिसकी वजह से मैं कुछ लिखने की हिम्मत कर सका। आदरणीय कुॅवर कुशमेश जी, गिरीश पकंज जी, सुनील जी, अरविंद जॉगिड जी, दिपक सैनी जी, रूपचंद शास्त्री जी एवं दुसरे अन्य ब्लॉगरों को पढ़कर आगे लिखने की हिम्मत करता रहा। आप जैसे महानुभावों को पढ़ना हमेशा एक सुखद अनुभूति रहा है। जिसकी वजह से मैं बहुत कुछ सीख पाया। आगे भी मैं ये कोशीश करता रहुॅगा। आप सभी महानुभावों से यह विनम्र निवेदन है कि आप सब अपना प्यार इसी तरह से बनाए रखें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें। 
सबसे पहली बार मैनें एक गजल अखबार में देखी थी जो मुझे बेहद अच्छी लगी थी। उसे मैनें अपने पास बहुत दिनों तक रखा और अपनी डायरी में भी नोट कर लिया। आज मैं भुल गया हुॅ कि वास्तव में वो किनकी रचना थी। आज मैं अपनी उसी प्रेरणा को आप सभी के आगे प्र्रस्तुत कर रहा हुॅ। अगर आप सभी में से किन्ही को भी उस रचनाकार का नाम मालुम हो तो बताने की अवश्य कृपा करेगें ताकि मैं यहॉ पर उनका नाम डाल सकुॅ। धन्यवाद।


दोनो जहॉ तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब ए गम गुजार के।

वीरॉ है मयकद क्यों सागर उदास है
तुम क्या गए रूक गए साये बहार के।

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुमसे भी दिलफरेब है गम इंतजार के।

भुले से मुस्कुरा दिये थे वो आज शायद
मत पुछो कैसे भुले है वो लम्हें प्यार के।  

Monday, June 27, 2011

मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ






अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।

दिल की आरजु कि एक बार मिलुॅ तुमसे
जिदां हुॅ मैं, तुम्हें बताना चाहता हुॅ।

झड़ जाते हैं जिन दरख्तों के पत्ते पतझड़ में
आती है उनपर भी बहारें, तुम्हे दिखाना चाहता हुॅ।

टुटा था जो साज ‘ए’ दिल तेरे चले जाने से
उसमें बजती हुई जलतरंगों को तुम्हें सुनाना चाहता हुॅ।

अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।


Tuesday, June 21, 2011

दरिया-ए-अजाब



चित्र गुगल साभार



जब से तुम्हें चाहा मैनें
क्या कहे क्या हाल है।
जिंदगी अब जिंदगी नहीं
एक दरिया-ए-अजाब है।

तन्हाई में भी चैन नहीं
महफिल में भी दिल उदास है।
कहॉ जाउॅ क्या करू मैं
अब तिश्नगी बेहिसाब है।

दिल पर अब इख्तियार नहीं
मुश्किल हुआ इजहार है।
काश! तुम मेरे होते
कितना हॅसी ये ख्वाब है।

Thursday, June 9, 2011

कितने गम छुपे है तेरे खजाने में.........


चित्र गुगल साभार



तेरी परस्तिश में घर से आ गये मयखाने में
देखें और कितने गम छुपे है तेरे खजाने में।

न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।

न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।

कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
बीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।

Thursday, June 2, 2011


चित्र गुगल साभार



सजदे में जब उसने अपने हाथों को उठाया होगा
जेहन ‘ओ’ दिल में उसके मेरा ख्याल आया होगा।

तैर जाती है लबों पर उनकी हल्की तबस्सुम की लकीरें
हवाओं ने धीरे से जाकर मेरा हाल ‘ए’ दिल बताया होगा।

उनके रूखसारों पे आ गई जो लाली यक-ब-यक
उनकी महफिल में किसी ने मेरा जिक्र चलाया  होगा।

दिल ‘ए’ बेकरारी को वो किसे सुनाए मौला
कमरे में उसने एक आईना लगवाया होगा।

लोगों की नजरों से मुझे बचाने के लिए ‘अमित’
मेरे नाम को उसने हथेलियों में छुपाया होगा।




Wednesday, May 25, 2011

घरौंदा



चित्र गुगल साभार





कितनी खुबसुरती से
सजाया था हमनें
अपने सपनों का घरौंदा।
वक्त के थपेड़ों से लड़कर
एक एक तिनके को जोड़कर
बड़े अरमानों से
हमने इसे बनाया था।
याद है
तुम हमेशा कहती थी
उगते हुए सुर्य को देखकर
कि जब इसकी लालिमा
हमारे घरौदें पर पड़ती है
तो ये ताजमहल से भी
ज्यादा खुबसुरत
नजर आता है।
अब जबकि
तुम चली गई हो
कभी न आने के लिए
एक बार आकर देखो
तुम्हारे इस घरौंदे की
क्या हालत हो गई है।
जगह जगह से
इसकी छत टूट गई है।
बारिश के मौसम में
कई जगहों से पानी टपकता है।
एक निष्फल
कोशीश करता हुॅ मैं
उस टपकते हुए पानी से
तुम्हारे बनाए गए
उस रंगोली को बचाने की।
लेकिन उसकी रेखाएॅ भी
बिखर गई है
बिल्कुल मेरी तरह।
उस वीरान हो चुके
घरौंदे में
एक थका हारा बुढ़ा
अपने जीवन की
अंतिम सॉसे ले रहा है।
रह रहकर उसकी निगाहें
दरवाजे की ओर उठती है।
किसी को सामने न पाकर
वो अपनी आखें बदंकर
सोचता है कि
कौन है जो उसके बाद
इस घरौंदे को
आबाद रखेगा।
और एक गहरी सॉस लेते ही
उसका शरीर
निष्प्राण हो जाता है।
ऑखें खुली रहती है
जैसे अब भी
किसी का
इंतजार कर रही हो।
टूटे हुए छत से
पानी टपक रहा है।
सुरज की तेज धुप
अपने वजुद का
अहसास करा रही है।

Thursday, May 19, 2011

जाति आधारित जनगणना फायदा किसका..........


जाति आधारित जनगणना को केन्द्र सरकार ने मंजुरी दे दी। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इससे फायदा किसका है। मुझे नही लगता कि इससे आम जनता को कोई फायदा होने वाला है। ना तो उसे कमरतोड़ महगॉई से छुटकारा मिलेगा और ना ही रोज रोज होने वाली परेशानियों से। हॉ अगर सही मायने में किसी को फायदा होने वाला है तो वो हैं हमारे देश के नेता। कहॉ तो जातिगत राजनीति से उपर उठने की बात की जाती है पर इस जाति आधारित जनगणना के जरिये इसकी जड़ों को और मजबुत किया जा रहा है। इसके जरिये सभी को इस बात की जानकारी हो जाएगी कि किस इलाके में किन जातियों की बहुलता है। इसके बिना पर इनकी राजनीतिक रोटियॉ सेकी जाएगी। उससे संबंधित उम्मीदवार खडे़ किये जाएगें। लोगों के दिलों में जातिगत भावना को घटाने के बजाय उसे बढ़ाने का काम किया जाएगा। हो सकता है इससे सबंधित अन्य दलीलें भी हो मसलन जिस इलाके में वैसी जातियॉ जो समाज से कटी रह गई है उनकी हालत और रहन सहन का स्तर उपर उठाने में सरकार को मदद मिलेगी। पर ये प्रयास तो आजादी के बाद से ही शुरू हो गए थे। पर इसका असर कहॉ तक पहुॅचा ये हम सभी जानते है। वैसे भी हमारे समाज में जाति को लेकर दुर्भावना अब बहुत कम ही देखने को मिलती है। इसका असर उन क्षेत्रों में ज्यादा दिखता है जहॉ के लोग बेरोजगार है। क्योंकि उनके पास समय बिताने के लिए और कुछ नही मिलता। लोगों के पास अब वक्त ही कहॉ है इस तरह की बातों में समय जाया करने का। लोगों को तो अपने काम से ही वक्त नही मिलता। इन बेकार की बातों में अपना दिमाग क्यों खपाएगें कि किस क्षेत्र में कितनी जातियॉ है और उनकी संख्या क्या है। बेहतर होता सरकार इसके बदले कुछ ऐसे नियम बनाती जिससे लोगो का फायदा होता। लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब होती। महगॉई सुरसा के मुह की तरह विकराल रूप धारण किये हुए है। आम इंसान महगॉई के पाटो के बीच गेहुॅ की तरह पिस रहा है और सरकार जाति का जाप कर रही है। 
आपका क्या कहना है इस बारे में। अपनी राय से अवगत कराये।  

Saturday, May 14, 2011

इश्क और गुनाह..........


चित्र गुगल साभार



इश्क करना गर गुनाह है
तो बेशक मैं गुनहगार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।

तेरा प्यार जन्नत है मेरा
तेरे प्यार पर मैं दोनों जहाँ वार दूँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।

तलाश करती है जिसे तेरी निगाहें
गौर से देखो मैं वही बहार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।

तुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
तेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
आशिक हूँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।

Thursday, May 5, 2011

मेरी याद आती होगी..........







शाम के धुंधलके में
दुर क्षितिज पर
आसमॉ और जमीं को
मिलते हुए
जब तुम देखती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
स्याह रातों के सन्नाटे में
जब तन्हाई
दबे पॉव आकर
तुम्हारे घर का दरवाजा
खटखटाती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
पेड़ की झुरमुटों से छनकर
जब चॉद की
शीतल चॉदनी
तुम्हारे दिल को जलाती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
कबतक बहलाओगी खुद को
इधर उधर की बातो से
जब बाग में किसी भवॅरे को देख
कोई कली मुस्काती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।

Saturday, April 30, 2011

दिल का दर्द.............



चित्र गुगल साभार




दिल के दर्द को जब हम संभाल न पाए
अश्क बन कर ये मेरी आखों में उतर आए।

मुस्कुराते हैं हम जमाने के सामने
कहीं मेरा प्यार रूसवा न हो जाए।

रेत पर लिखी तहरीरों को मिटाने से क्या फायदा
हाथ में बनी लकीरों को किस तरह मिटाए।

आना मेरी मजार पर इजाजत है तुम्हें
जब जिस्म से मेरी रूह फना हो जाए।

Friday, April 22, 2011

एक तमन्ना..............



चित्र गुगल साभार





मेरी दुनिया में आकर मत जा
तेरे बिना मैं जी नही पाउगॉ।
तेरी जुदाई का एहसास रूलाती है मुझे
तुझसे बिछड़कर मैं तो मर जाउगॉ।
तेरे लिए शायद मैं कुछ भी नही
कैसे कहुॅ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
मेरी इबादत भी तुम हो
और तुम ही मेरे खुदा हो।
चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की
और ना ही कोई तमन्ना
कि मुझे गले से लगाओ।
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
अपनी नजरों से न हमें गिराओ।


Tuesday, April 12, 2011

क्या खत्म होगा भ्रष्टाचार ........

चित्र गुगल साभार

अन्ना हजारे का आंदोलन सफल रहा। सरकार झुक गई और सत्य की विजय हुई। जिस तरह से समस्त भारतवासियों ने उनका साथ दिया सचमुच देखने लायक था। इन सबों के बाद प्रश्न ये उठता है कि लोकपाल विधेयक को पारित करने के बाद क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ? हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। शायद नही। क्योकि इस भ्रष्टाचार के जन्मदाता ही हम है। हम ही उसे पालते पोसते है। आज देश का लगभग हर नागरिक भ्रष्ट है। भ्रष्टाचार का मतलब होता है भ्रष्ट आचरण। किसी भी गलत तरीके से सिर्फ धन अर्जित करना ही  भ्रष्टाचार नहीं कहलाता है बल्कि कानुन के विरूद्ध किया जाने वाला हर कार्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। क्या सिर्फ वे ही भ्रष्ट हैं जिन्होंने सियासत में रहते हुए लाखों करोड़ों का घपला किया। शायद नहीं। आज हम अपने चारो तरफ नजर दौड़ाए तो हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखाई पड़ेगा। पुलिस वालों की अवैध वसुली, पैसे लेकर किसी भी केस को कमजोर करना, राशन की दुकानों में मिलावट करना और कम तौलना, सरकारी कर्मियों द्वारा किसी भी काम के बदले पैसे लेना, गलत कामों को करवाने के लिए आम जनता द्वारा पैसे का भुगतान करना, आम जनता द्वारा टैक्स चोरी करना। कहॉ नही है भ्रष्टाचार। हम सभी लोग किसी न किसी तरह से भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डुबे हुए है। अगर लोकपाल विधेयक पारित हो भी गया तो क्या ये सब खत्म हो जायेगा। नही। क्योंकि हम कहते कुछ और हैं और कर कुछ और रहे है। हम भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्लाते तो है मगर उसे खत्म करने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। हमें दूसरों की गलतियॉ तो नजर आ जाती है पर अपनी खॉमियों को हम नजरअदंाज कर जाते है। हमारी सोच शायद इस आंदोलन के पहले भी वही थी और आज भी वही है कि हमारे बदलने से ही सिर्फ भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा या फिर एक के सही होने से देश में भला कौन सी क्रांति आ जाएगी। अन्ना हजारे जी के साथ अनशन करके या फिर इसके विरोध में मोमबत्तियॉ जलाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला जबतक हम अपने आप को पुरी तरह से नहीं बदलते। हमें किसी के विरूद्ध कुछ भी कहने का हक नहीं है जब तक हम पुरे पाक साफ न हो। हम में और उनमें फर्क सिर्फ इतना है कि कोई लाखों करोड़ो की हेरा फेरी कर रहा है और हम हजारों की। पर हेरा फेरी तो सभी कर रहे है। हमारा देश कई वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुआ। क्योंकि हमने पुरी इमानदारी और निष्ठा के साथ इसके विरूद्ध आवाज उठाई। लोगों के दिलों में बस एक ही जज्बा था आजादी। अगर वो लोग भी सिर्फ आजादी आजादी चिल्लाते और पुरी निष्ठा के साथ एक नहीं होते तो क्या हमें आजादी मिलती। शायद नही। इसी तरह से अगर हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति पानी है तो उसी निष्ठा और जज्बें के साथ हम सभी को बदलना होगा। तब जाकर हम एक भ्रष्ट मुक्त भारत की कल्पना कर सकते है और आने वाली पीढ़ी को एक भ्रष्ट मुक्त माहौल दे सकते है। अन्ना हजारे ने आवाज लगाई है एक रास्ता दिखाया है हमें ईमानदारी से उस रास्ते पर बढ़ना होगा। वरना कितने ही अन्ना हजारे क्यों न आ जाए भ्रष्टाचार कभी भी खत्म नहीं हो पाएगा। 

Friday, April 8, 2011

आज फिर एक गॉधी आया है........





ना चमकी तलवार कहीं
न उसने बंदुक चलाया है
भारत मॉ की लाज बचाने 
आज फिर एक गॉधी आया है।
चेहरे पर लेकर तेज वही
जन जन में विश्वास जगाया है
भारत मॉ की लाज बचाने 
आज फिर एक गॉधी आया है।
अनशन है हथियार उसका
अहिंसा की ज्योत जलाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।


उसकी एक पुकार पर देखो
जन सैलाब उमड़ कर आया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।
बहुत हुआ अब हम नही सहेगें
भ्रष्टाचार की जो काली छाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।
खत्म करेगें खेल भ्रष्टों का
अन्ना ने कसम उठाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है। 



Tuesday, April 5, 2011

इन्तजार

कुछ दिनों से बहुत व्यस्त हुॅ और शायद ये व्यस्तता कुछ दिन तक और रहेगी। इसलिए मै आप सभी की रचनाओं को समय नहीं दे पा रहा हुॅ। आशा है आपलोग अन्यथा नहीं लेगे और हमें माफ करेगें। जैसे ही व्यस्तता समाप्त होगी आपलोगों के समक्ष फिर से हाजिर हो जाउगॉं। तब तक के लिए एक पुरानी रचना जो पिछलें साल अगस्त महीनें में ब्लाग पर डाला था एक बार फिर वही दोबारा डाल रहा हुॅ। 





सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,

सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

यूं तो बहुत है गुल इस चमन में,
पर जिस पर नज़र गई,
वो किसी और का हमराज था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

उनकी हाथों का खंजर जो,
भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
मेरे उस जिगर को,
कभी उनसे ही प्यार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

Wednesday, March 23, 2011

आखरी शाम


चित्र गुगल साभार




जानता हुॅ मैं
तुम मुझसे प्यार नहीं करती।
उस दिन से ही
जब तुम
मेरी जिदंगी में आई थी।
इशारों ही इशारों में
कई बार
तुमने कोशीश भी की
मुझे बताने की।
बावजुद इसके
मैं तुमसे बेइन्तहॉ
मोहब्बत करता हॅु।
उस परवाने की तरह
जो जानता है कि
शमॉ की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।

Wednesday, March 16, 2011

फागुन आयो रे



चित्र गुगल साभार




फागुन की फगुनाहट चढ़ी
दिल में मिलन की आस बढ़ी
आ जाओं अब साजन मेरे
आस का फुल मुरझायों रे
देखो फागुन आयो रे।

सुन कोयल की मीठी कूक
दिल में एक हुक सी उठती है
आकर इस सुखी धरती पर 
प्यार का रस बरसाओ रे
देखो फागुन आयो रे।

दिन तो किसी तरह गुजर जाता है
सूनी रातें नागीन जैसी डसती है
आओ कि तुम्हें समेट लुॅ बाहों में
अब ऐसे ना तरसाओ रे
देखो फागुन आयो रे।

Saturday, March 5, 2011

उन्हे अब और प्यार ना कर


चित्र गुगल साभार


ऐ दिल अब और उनका इन्तजार ना कर
वो नहीं आएगें उन्हे अब और प्यार ना कर।


मिटा दे वक्त के निशॉ जो उनके साथ गुजारे थे
उन लम्हों को याद करके खुद को बेजार ना कर।


जाती है जो गलियॉ उनके घरों तक
उन गलियों का दोबारा दीदार ना कर।


आ गया हुॅ लौट कर तेरे पास ऐ तन्हाई
मैं तुझसे प्यार करूॅ और तु मुझे प्यार कर।

Monday, February 28, 2011

दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है


चित्र गुगल साभार



कब ढली शाम और कब हुई सहर
मुझे अपना भी कोई होश नहीं
और न जमाने की फिकर
हर लम्हा तेरी यादों में खोये रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
तपते हुए सहरा में हम
नंगे पॉव मीलों चलते है
जख्मों का असर अब होता नही
दर्द में भी मुस्कुराते रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
अपने गिरेबॉं में झॉक कर देखो लोगों
जहॉ नफरतों के बीज पलते है
हाथ तो मिलते है सभी के यहॉ
पर लोगों के दिल कहॉ मिलते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।

Tuesday, February 22, 2011

जिदंगी के रास्ते




है पुरख़तर (मुश्किल) जिदंगी के रास्ते
जरा सभंल कर चला किजिए।

बॉटिए अमृत सभी को 
और खुद गरल पिया किजिए।

भरते हैं जो नफरत दिलों में
उनके लिए ही दुआ किजिए।

प्यार ही प्यार होगा हर दिल में
दुश्मनों को भी गले लगा लिजिए।

न सोचिए क्या होगा अंजाम ए मोहब्बत
हर दिल में चराग ए इश्क जला दिजिए।

मिल जाएगी सारे जहॉ की खुशियॉ
गैरों के लिए खुद को मिटा दिजिए।

Thursday, February 17, 2011

अलविदा





नई दुनिया और नए लोग मुबारक हो तुम्हे
खुशियों की नई सुबह मुबारक हो तुम्हे।
ऑंसुओं के रूप कई तरह के होते है
हम खुश हैं इसलिए तो रोते है।
अश्कों से अपना नाता पुराना है
भरी-भरी आँखों के साथ हमें मुस्कुराना है।
गम और मैं बचपन से साथी है
खुशियाँ क्या है बस आती और जाती है।
कभी गमों का साया तेरे करीब न आए,
हर वक्त खुश रहे तू और सदा मुस्कुराए।
और क्या लिखँू ज्यादा लिख नही पाऊगाँ
बहुत देर से रोके बैठा हूँ अश्कों को
अब और नहीं रोक पाऊगाँ।
अश्क गिरे पन्नों पर तो अक्षर बिखर जाएगें
रोते हुए हम आपको अलविदा भी न कह पाएगें।

Thursday, February 10, 2011

कब तक करू सब्र के तुम आओगे







कब तक करू सब्र के तुम आओगे
एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।

जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।

Sunday, February 6, 2011

अधुरी ख्वाहिशे








चलते-चलते यूॅ ही मैंने
पीछे मुड़कर देखा
दूर दूर तक तुम
कहीं नही थी।
नजर आए भी तो
कुछ अधुरी ख्वाहिशे
और
कुछ कुचले हुए जज्बात।
तेरी बेवफाई के
पॉवों से घायल
वफा की राहों में
यहॉ वहॉ बिखरे हुए।

Thursday, February 3, 2011

जज्बा


कल जब मैने ये रचना डाली थी तो कुछ यांत्रिक गड़बड़ी के कारण कुछ लोगों के कम्प्युटर पर आ रही थी और कुछ लोगों के कम्प्युटर पर नहीं। इसलिए आज मैंने इसे फिर से पोस्ट किया है।



वो इन्सॉ ही क्या जिसमें
मुश्किलो से लड़ने का जज्बा न हो
लहरें फिर से वापस आती है
पत्थरों से टकराने के बाद।

कबतक रोकेगी रास्ता सच का
ये झुठ और फरेब की दीवारें
बड़े शान से निकलता है सुरज
हर घने कोहरे के बाद।

मंजिले भी सर झुकाती है
बुलदं इरादों के आगे ‘अमित’
रस्सीयॉ भी छोड़ जाती है निशान
पत्थरों पर आने जाने के बाद।

Friday, January 28, 2011

शहर


आजकल कुछ ज्यादा व्यस्त हुॅ। यही वजह है कि आप लोगों की रचना नहीं पढ़ पा रहा हुॅ। कुछ दिनों के बाद आप लोगों के साथ फिर से जुड़ता हुॅ तब तक के लिए अपनी एक पुरानी पोस्ट को आप लोगों के पास छोड़े जा रहा हॅु। 



ऊँचे-ऊँचे बने हुए घरों और महलों के,
शहर में आकर न जाने कैसे खो गए हम।
मिल सका न हमसे एक घर,
इसलिए फुटपाथ पे ही सो गए हम।
आधी रात को एक गाड़ी आई और
उसमें से कुछ लोग निकल आए।
बोले हमसे, फुटपाथ पे सोते हो
कुछ ना कुछ तो लेंगे हम,
और वो सारा सामान लेकर चले गए
उन्हें खडे़ बस देखते रहे हम।
सुबह लोगांे की नजरों से बचता हुआ
चला जा रहा था स्टेशन की ओर,
कि कुछ पुलिस वाले आए और
पकड़ कर ले गए थाने।
बोले सर, आतंकवादी को
पकड़ कर ले आए हम।
इतना सब होने के बाद
बस एक ही है गम।
मैं क्यों गया उस ओर,
जहाँ कोई इन्सां रहता नहीं
चारों तरफ दहशतगर्दी और लूटमार है।
लोग गाँवों को कहते हैं,
मैं कहता हूँ ये शहर ही बेकार है।