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Wednesday, May 25, 2011

घरौंदा



चित्र गुगल साभार





कितनी खुबसुरती से
सजाया था हमनें
अपने सपनों का घरौंदा।
वक्त के थपेड़ों से लड़कर
एक एक तिनके को जोड़कर
बड़े अरमानों से
हमने इसे बनाया था।
याद है
तुम हमेशा कहती थी
उगते हुए सुर्य को देखकर
कि जब इसकी लालिमा
हमारे घरौदें पर पड़ती है
तो ये ताजमहल से भी
ज्यादा खुबसुरत
नजर आता है।
अब जबकि
तुम चली गई हो
कभी न आने के लिए
एक बार आकर देखो
तुम्हारे इस घरौंदे की
क्या हालत हो गई है।
जगह जगह से
इसकी छत टूट गई है।
बारिश के मौसम में
कई जगहों से पानी टपकता है।
एक निष्फल
कोशीश करता हुॅ मैं
उस टपकते हुए पानी से
तुम्हारे बनाए गए
उस रंगोली को बचाने की।
लेकिन उसकी रेखाएॅ भी
बिखर गई है
बिल्कुल मेरी तरह।
उस वीरान हो चुके
घरौंदे में
एक थका हारा बुढ़ा
अपने जीवन की
अंतिम सॉसे ले रहा है।
रह रहकर उसकी निगाहें
दरवाजे की ओर उठती है।
किसी को सामने न पाकर
वो अपनी आखें बदंकर
सोचता है कि
कौन है जो उसके बाद
इस घरौंदे को
आबाद रखेगा।
और एक गहरी सॉस लेते ही
उसका शरीर
निष्प्राण हो जाता है।
ऑखें खुली रहती है
जैसे अब भी
किसी का
इंतजार कर रही हो।
टूटे हुए छत से
पानी टपक रहा है।
सुरज की तेज धुप
अपने वजुद का
अहसास करा रही है।

Thursday, May 19, 2011

जाति आधारित जनगणना फायदा किसका..........


जाति आधारित जनगणना को केन्द्र सरकार ने मंजुरी दे दी। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इससे फायदा किसका है। मुझे नही लगता कि इससे आम जनता को कोई फायदा होने वाला है। ना तो उसे कमरतोड़ महगॉई से छुटकारा मिलेगा और ना ही रोज रोज होने वाली परेशानियों से। हॉ अगर सही मायने में किसी को फायदा होने वाला है तो वो हैं हमारे देश के नेता। कहॉ तो जातिगत राजनीति से उपर उठने की बात की जाती है पर इस जाति आधारित जनगणना के जरिये इसकी जड़ों को और मजबुत किया जा रहा है। इसके जरिये सभी को इस बात की जानकारी हो जाएगी कि किस इलाके में किन जातियों की बहुलता है। इसके बिना पर इनकी राजनीतिक रोटियॉ सेकी जाएगी। उससे संबंधित उम्मीदवार खडे़ किये जाएगें। लोगों के दिलों में जातिगत भावना को घटाने के बजाय उसे बढ़ाने का काम किया जाएगा। हो सकता है इससे सबंधित अन्य दलीलें भी हो मसलन जिस इलाके में वैसी जातियॉ जो समाज से कटी रह गई है उनकी हालत और रहन सहन का स्तर उपर उठाने में सरकार को मदद मिलेगी। पर ये प्रयास तो आजादी के बाद से ही शुरू हो गए थे। पर इसका असर कहॉ तक पहुॅचा ये हम सभी जानते है। वैसे भी हमारे समाज में जाति को लेकर दुर्भावना अब बहुत कम ही देखने को मिलती है। इसका असर उन क्षेत्रों में ज्यादा दिखता है जहॉ के लोग बेरोजगार है। क्योंकि उनके पास समय बिताने के लिए और कुछ नही मिलता। लोगों के पास अब वक्त ही कहॉ है इस तरह की बातों में समय जाया करने का। लोगों को तो अपने काम से ही वक्त नही मिलता। इन बेकार की बातों में अपना दिमाग क्यों खपाएगें कि किस क्षेत्र में कितनी जातियॉ है और उनकी संख्या क्या है। बेहतर होता सरकार इसके बदले कुछ ऐसे नियम बनाती जिससे लोगो का फायदा होता। लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब होती। महगॉई सुरसा के मुह की तरह विकराल रूप धारण किये हुए है। आम इंसान महगॉई के पाटो के बीच गेहुॅ की तरह पिस रहा है और सरकार जाति का जाप कर रही है। 
आपका क्या कहना है इस बारे में। अपनी राय से अवगत कराये।  

Saturday, May 14, 2011

इश्क और गुनाह..........


चित्र गुगल साभार



इश्क करना गर गुनाह है
तो बेशक मैं गुनहगार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।

तेरा प्यार जन्नत है मेरा
तेरे प्यार पर मैं दोनों जहाँ वार दूँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।

तलाश करती है जिसे तेरी निगाहें
गौर से देखो मैं वही बहार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।

तुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
तेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
आशिक हूँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।

Thursday, May 5, 2011

मेरी याद आती होगी..........







शाम के धुंधलके में
दुर क्षितिज पर
आसमॉ और जमीं को
मिलते हुए
जब तुम देखती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
स्याह रातों के सन्नाटे में
जब तन्हाई
दबे पॉव आकर
तुम्हारे घर का दरवाजा
खटखटाती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
पेड़ की झुरमुटों से छनकर
जब चॉद की
शीतल चॉदनी
तुम्हारे दिल को जलाती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।
कबतक बहलाओगी खुद को
इधर उधर की बातो से
जब बाग में किसी भवॅरे को देख
कोई कली मुस्काती होगी
तब तुम्हे भी
मेरी याद आती होगी।