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Monday, July 11, 2011

कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी



कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।

कभी खुशियों के बादल पर उड़ाती है तो
कभी गम के सागर में डुबाती है जिन्दगी।

कभी अपनों को दुर करती है तो
कभी गैरों को अपना बनाती है जिन्दगी।

कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।

कहीं तन्हाई में खुद पर शर्माती है तो
कहीं महफिल में जाम टकराती है जिन्दगी।

कैसे कैसे रंग दिखाती है जिन्दगी
कभी हॅसाती तो कभी रूलाती है जिन्दगी।

16 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत रचना...

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  2. सही और बहुत खूब

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  3. जिन्दगी की अपनी ही धारा है ...जो बहती ही रहगी ......आभार

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  4. इसी को ज़िंदगी कहते है अमित जी , बहुत खूब ....

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  5. खुबसूरत रचना
    जिंदगी इसी का नाम है

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  6. बहुत बढ़िया सर.

    सादर

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  7. जिंदगी के रंगों को बखूबी उकेरा है........सब नज़रिए की बात है ......शानदार |
    पोस्ट के साथ की तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी|

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  8. कभी अपनों को दुर करती है तो
    कभी गैरों को अपना बनाती है जिन्दगी।

    कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
    कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।

    सटीक बात कहती गज़ल

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  9. बहुत खूब बाँधा है जिंदगी को आपने ... अपने ही अलफ़ाज़ में ...

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  10. कभी खुशियों के बादल पर उड़ाती है तो
    कभी गम के सागर में डुबाती है जिन्दगी।

    खूब ... यही तो उहापोह है ज़िन्दगी की....

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  11. कहीं मुफलिसी में बसर करती है तो
    कहीं दौलत में नहाती है जिन्दगी।

    कहीं तन्हाई में खुद पर शर्माती है तो
    कहीं महफिल में जाम टकराती है जिन्दगी।

    बहुत खूबसूरत....

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  12. बहुत खूबसूरत.... सटीक गज़ल

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  13. बहुत ख़ूबसूरत और सटीक गज़ल..

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  14. बहुत ही खुबसूरत रचना...

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