चित्र गुगल साभार
कब ढली शाम और कब हुई सहर
मुझे अपना भी कोई होश नहीं
और न जमाने की फिकर
हर लम्हा तेरी यादों में खोये रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
तपते हुए सहरा में हम
नंगे पॉव मीलों चलते है
जख्मों का असर अब होता नही
दर्द में भी मुस्कुराते रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
अपने गिरेबॉं में झॉक कर देखो लोगों
जहॉ नफरतों के बीज पलते है
हाथ तो मिलते है सभी के यहॉ
पर लोगों के दिल कहॉ मिलते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।