चित्र गूगल साभार
ऐ खुदा, मुझे फिर से ये सजा न दे
कज़ा है मुकद्दर मेरा जिंदगी का पता न दे।
अश्कों से भर गया है दरिया-ए-मोहब्बत मेरा
फिर से चाहुँ मैं किसी को ऐसी दुआ न दे।
मुद्दतों बाद एक मुस्कान मेरे लबों पे आई है
देखना, फिर से कोई ज़ख्म मुझे रूला न दे।
ढुढँता रहा मैं तुझे दर-ब-दर इंसानों में
मुझे फिर से कोई दैर-ओ-हरम का पता न दे।