चित्र गूगल साभार
इतने ही शरीफ है तो हम्माम में नंगे क्यों हैं
इंसाँ बसते हैं इस बस्ती में तो फिर दंगे क्यों हैं।
वो कहता था, चेहरा इंसान का आईना होता हैं
फिर, इस महफिल में सबके चेहरे रंगे क्यों हैं।
हक बराबर का है सबका तेरी दुनिया में ऐ खुदा
दैर ‘ओ‘ हरम की सीढ़ियों पर इतने भूखे-नंगे क्यों हैं।
सागर भी तड़पता है साहिल से मिलने के लिए
वरना, उसके सीने में उठती इतनी तरंगें क्यों है।
दो गज जमीन है इख्तियार में सभी के ‘अमित‘
ना जाने फिर दुनिया में इतनी जंगें क्यों है।