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Wednesday, August 29, 2012

एक शायर इस जहॉं में गुमनाम रह गया......


चित्र गूगल साभार





मैं उसको ढुढॅंता उम्र-ए-तमाम रह गया
वो चला गया बस उसका नाम रह गया।

सोचता हु समेट लु हर शै को बॉहों में
कहीं अफसोस न हो बाकी कुछ काम रह गया।

जिदंगी को दॉव पर लगाता रहा मगर
हारता रहा मैं नाकाम रह गया।

ऐसा हुआ हश्र मेरी शायरी का बस
एक शायर इस जहॉं में गुमनाम रह गया।


Tuesday, August 21, 2012

साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है........


चित्र गूगल साभार






हमें मालुम न था लोग इतने बदल जाते है
दर्द देकर औरो को कुछ लोग मुस्कुराते है।

ग़म-ए-जिन्दगानी का फ़लसफ़ा बहुत लबां है
थोड़ा सब्र करो हर्फ-दर-हर्फ सुनाते है।

कैद कर लो ऑसुओं को अपनी ऑखों में
बारीशों में नाले भी दरिया बन जाते हैं।

दोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है।