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Saturday, October 18, 2014

जिंदगी का पता न दे.........

चित्र गूगल साभार





ऐ खुदा, मुझे फिर से ये सजा न दे
कज़ा है मुकद्दर मेरा जिंदगी का पता न दे।

अश्कों से भर गया है दरिया-ए-मोहब्बत मेरा
फिर से चाहुँ मैं किसी को ऐसी दुआ न दे।

मुद्दतों बाद एक मुस्कान मेरे लबों पे आई है
देखना, फिर से कोई ज़ख्म मुझे रूला न दे।

ढुढँता रहा मैं तुझे दर-ब-दर इंसानों में
मुझे फिर से कोई दैर-ओ-हरम का पता न दे।

Wednesday, October 8, 2014

कुछ तो हकीकत है तेरे मेरे फसाने मे..........


चित्र गूगल साभार


जिंदगी आऊगाँ मैं तुमसे कभी मिलने के लिए
अभी उलझा हुँ मैं अपनी उलझनें सुलझानें में।

मैं हिन्दु, तुम मुस्लिम, ये सिख वो ईसाई है
मिलना हो गर इसाँ से तो चलो मयखाने में।

है कजा मंजिल तो है तु भी हमसफर मेरा
फिर क्यों अलग से रहते हैं हमलोग इस जमाने में।

उठता नहीं धुआँ कभी आग के जले बिना
कुछ तो हकीकत है तेरे मेरे फसाने मे।