ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
तेरी मदभरी आंखों से
तेरे कोमल हाथों के स्पर्श से
एक लहर दौड़ जाती है
मेरे नस-नस में शरारों सी।
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
एक अरसे से पहचानता हूं मैं।
मेरी दुनिया यूं तो सुनसान थी
मेरे दिल की बस्ती वीरान थी
तेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
तेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।
अचानक मेरी आंख खुली और
देखा ये तो एक ख्वाब था
चारों तरफ बिखरी थी कुछ यादें
अपने साथ लेकर फिर से चला मैं
जो कुछ भी मेरा अपना था।
फिर से देखा मैंने तुम्हें
एक शजर के साये में
यूं लगा जैसे
तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है।
आज तो दिल ही निकाल कर रख दिया
ReplyDeleteकिन शब्दो मे तारीफ करू इस लाजवाब कविता की
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
ReplyDeleteजीवन्त शब्दों से परिपूर्ण "सुन्दर कविता"
ReplyDeleteधन्यवाद.
सुन्दर भावाव्यक्ति
ReplyDeleteजानता हूं ख्वाबों की दुनिया लाख बेहतर है हकीकत से
न जाने फ़िर भी क्यों मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं
लिखते रहिये
sirji..dont worry.. ghutan to hogi dagabazon ko vafa ki hayon mein..
ReplyDeletesunder abhivayakti.........
ReplyDeleteतेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
ReplyDeleteतेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।
सुंदर पंक्तियां
http://veenakesur.blogspot.com/
beautiful lines and eligible for praise.
ReplyDeleteaapke panktiyo ke sambandh me do line kehna chahuga
bahut dard hota hai
jab koi apna
bewafa ho jata hai
karte hai chupane ki kosis
bahut
per kya kare yaaro
dard najmo me chalak jata hai.
bewafa ki yadon ko sahejkar rakhna
ReplyDeleteaur unke saath vafa nibhate rahna
badi himmat ka kaam hai !
waah kya kahna!
very nice..!! aapki kavita k bahut accha laga..!!
ReplyDeleteदुआ है ये ख्वाब हकीकत बने ......
ReplyDeleteमजनू जी आज के दौर में वफा की उम्मीद निरर्थक है .....
बहरहाल नज़्म इक मुकाम हासिल करती है .....
very nice..!!
ReplyDeleteअमित जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अच्छी भावनाप्रधान रचना है …
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है…
बंधु, ख़ुदा यही कहेगा -" वो अपना काम कर रहे हैं , आप अपना करो"
:)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
यूं लगा जैसे
ReplyDeleteतुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है।
Sach kaha bhai...
अच्छा है . . . !!
ReplyDeleteकैसे करूं वफा इनसे
ReplyDeleteजिनका नाम ही बेवफाई है।
very nice sir...........
dil ko chhuti rachna
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