मुबंई में आज फिर धमाका हो गया। एक नही बल्कि तीन तीन जगहों पर। जाहिर है कई लोगों की जान गई और कितने ही लोग घायल हुए। हर बार की तरह इस बार भी कुछ सुने सुनाए जुमले दोहराए जाएगें। मसलन, ऐसी दुख की घड़ी में हम पीडि़त परिवारों के साथ है, हमें संयम बरतना चाहिए, ऐसे कृत्य करने वाले को बख्शा नही जाएगा, मरने वाले को इतना तथा घायलों को इतना मुआवजा दिया जाएगा। हमारे नेता ये सब कह कर इन जुमलों को फिर से सहेज कर रख देगें ताकि अगले बम धमाके में फिर से काम आ सके। हम कई सालों से आतंक झेलते आ रहे है। हम भारतीय भी संयम के मामले में कमाल के है। मेरे ख्याल से इसे गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में स्थान मिलना चाहिए। हम सभी जानते है कि सीमा पार के अलावे हमारे देश में भी कुछ ऐसे तत्व मौजुद है जो इस आतंक के खेल को बखुबी खेल रहे है। अब तो ये भी रोजमर्रा की बाते लगती है। जिन लोगों ने हमारे देश की अस्मिता यानि कि संसद भवन पर हमला किया जब उन्हें बचाने की कोशीश की जा रही है तो क्या हम ये आशा कर सकते हैं कि हमारे देश में ऐसी घटना दोबारा नहीं होगी। शायद ही इन सब बातों से किसी को कोई फर्क पड़ता होगा। ऐसी घटनाएॅ दो तीन दिनों तक चर्चा का विषय बनती है और हम फिर से अपने पुराने ढर्रे पर लौट आते है और इंतजार करते है अगले धमाके का। अमेरिका में ग्यारह सिंतबर के हमले के बाद अब तक कोई दुसरा आतंकवादी हमला नही हुआ। यही नही, उसने उन लोगों को नही बख्शा जिन्होंने इसकी साजिश रची थी। अब तो हमें समझ में आ जाना चाहिए कि अमेरिका क्यों नबंर वन है। हमने उनका भी क्या उखाड़ लिया जिन लोगों ने इससे पहले मुबंई को लहुलुहान किया था। कसाब महोदय अभी भी सरकारी मेहमान बने हुए है। आखिर हम भी अमेरिका की तरह क्यों नही बन सकते। क्यों हम इतने अक्षम और लाचार है कि आतंक के पहरूए हमें इस तरह की जलील मौत सौगात में दे जाते हैं। हमारी गुप्तचर संस्था क्या सिर्फ नाम के लिए है। आखिर क्यों हमे सारी चीजें घटना के बाद पता चलती हैं। या शायद हम सभी संवेदनहीनता की चरम सीमा तक पहुॅच गए है। हमारे नेता राजनीति अब देश के लिए नही अपने लिए करते है। नेता ही क्यों हमलोग भी अब देश के लिए नहीं अपने लिए ही जीते है। जिस देश की स्थिति ऐसी होगी उस देश में ये सब तो होगा ही। अराजकता अपना फन फैलाए है, भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और आतंकवाद के सामने हम बेबस है। ओशो रजनीश ने कहा था कि भारत देश में सिर्फ बुढ़े लोग रहते है। यहाॅ कोई युवा नही है। क्योंकि जिस देश में युवा होगा वो कभी गलत बर्दाश्त नहीं करेगा। वो आवाज उठाएगा, सिस्टम को बदल देगा क्योंकि युवाओं में ताकत होती है कुछ कर गुजरने की। बुढ़े लोग ऐसा नहीं कर सकते। तो हमें मान लेना चाहिए कि वास्तव में हमारा देश बुढ़ा हो गया है। अब यहाॅ कुछ नही हो सकता। अब हमें इंतजार करना चाहिए कि अगला धमाका कहाॅ होगा और उसमें कितने लोग मरेगें।
बहुत सटीक कहा है पर यह बुढ़ा है कौन जरा इसपर सोंचिए। हम और आप?
ReplyDeleteसबसे पहले मुझे अपनी ओर देखना होगा और कहना नहीं करना होगा?
एक बढ़िया और विचारणीय लेख़
ReplyDeleteअमित भाई बहुत अच्चा और विचारणीय लेख लिखा है
ReplyDeleteसच में हम भारतीयों की बर्दास्त करने की क्षमता बहुत है
बहुत सवाल उठते हैं ...पर जवाब नहीं मिलते ..
ReplyDeleteये दुर्भाग्य की बात है की अब हम अपने देश में इन नेताओं के गुलाम हैं क्योंकि कुछ लोगों की भाव्नाओ को कांग्रेस में खरीद रक्खा है ... हम अगले धमाकों के इन्तेज़ार के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते ...
ReplyDeleteबहुत सही और सटीक लिखा .
ReplyDeleteबहुत सही विषय पर सार्थक और सटीक लेख|
ReplyDeleteवर्तमान दशा का सटीक आकलन....
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ReplyDeleteसमसामयिक घटना सही विषय पर .....सटीक लेख|
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteएकदम सही सोच है आपकी पूरी- की -पूरी व्यस्था को ही बदलने की जरुरत है
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