इस ब्लाग की सभी रचनाओं का सर्वाधिकार सुरक्षित है। बिना आज्ञा के इसका इस्तेमाल कापीराईट एक्ट के तहत दडंनीय अपराध होगा।

Thursday, November 10, 2011

आज फिर महका है गुलिस्तॉ.......


चित्र गूगल साभार 


आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।

कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
हम कितनी मुद्धत बाद मिले हैं।
आओ भुला दें हम सभी 
दिल में जितने शिकवे गिले है।

कुछ इस तरह रातें बिताई है मैनें
जागती ऑखों से सपने बुने हैं।
चॉदनी रातों में जाग कर हमनें
ना जाने कितने तारे गिने है।


आज फिर महका है गुलिस्तॉ
और चमन में फुल खिले है।
ऑखें सबकुछ बोल रही है
हम दोनों के होठ सिले है।



13 comments:

  1. आज फिर महका है गुलिस्तॉ
    और चमन में फुल खिले है।
    ऑखें सबकुछ बोल रही है
    हम दोनों के होठ सिले है।

    वाह
    बेहतरीन जज्बात को पेश किया आपने अमित भाई
    शुभकामनाये

    ReplyDelete
  2. ऑखें सबकुछ बोल रही है
    हम दोनों के होठ सिले है।
    सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  3. bahut sundar....

    www.poeticprakash.com

    ReplyDelete
  4. सुंदर भावों से सजी भावमयी रचना... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  5. ऑखें सबकुछ बोल रही है
    हम दोनों के होठ सिले है।
    सुंदर भाव... सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  6. सही कहा आपने , कई बार ऐसा होता है कि जब हम एक लम्बे अरसे के बाद किसी से खासकर किसी अपने से मिलते है तो हमारे पास बातें तो बहुत सी होती है लेकिन शब्द कम पड जाते है और बात का स्थान मौन ले लेता है ....

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर अहसास...कभी कभी मौन ही सबसे बड़ी अभिव्यक्ति बन् जाता है...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  8. सुभानाल्लाह..........बहुत खूब......ये गुलिस्तां यूँ ही महकता रहे |

    ReplyDelete
  9. खूबसूरती से उकेरा है आपने

    ReplyDelete
  10. " अपनी ऑखों को समझाओ जान न जाए दुनियाँ सारी । बैन नैन से नैन न करे जल जाएगी दुनियाँ सारी ।"

    ReplyDelete