चित्र गूगल साभार
तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है
दिल के जख्मों को तुम्हें दिखाना है।
कुछ इस कदर बिखरा है वजूद मेरा
न कहीं ठौर और न कहीं ठिकाना है।
ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी
खंजर की नोक पे खड़ा आज जमाना है।
रिश्तों की अहमियत को वो क्या जाने ‘अमित’
दिलों से खेलना जिनका शौक पुराना है।
वाह!!! बहुत
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी
ReplyDeleteखंजर की नोक पे खड़ा आज जमाना है।
achchha laga ye sher..
तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है
ReplyDeleteदिल के जख्मों को तुम्हें दिखाना है।
वाह... बहुत खूबसूरत...
दर्द का बहता लहू लेखनी से छलक रहा है
ReplyDeleteआपका आशीक मिजाज झलक रहा है।
कुछ इस कदर बिखरा है वजूद मेरा
ReplyDeleteन कहीं ठौर और न कहीं ठिकाना है।
ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी
खंजर की नोक पे खड़ा आज जमाना है।
बहुत ही उम्दा, लाजबाब ! बहुत सही जा रहे हो अमित जी , ढेर सारी शुभकामनाये !
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
Bahut hi sundar rachna aapne likhi hai.
ReplyDeleteKabhi mere blog par bhi aaya kijiye.
http://www.alahindipoems.blogspot.in/
बहुत ही अच्छी रचना, काफी सारे लिंक्स भी देखने -पढ़ने को मिले।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
बहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति...
उम्दा प्रस्तुति......
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब लिखा है आपने!
ReplyDeleteरिश्तों की अहमियत को वो क्या जाने ‘अमित’
ReplyDeleteदिलों से खेलना जिनका शौक पुराना है ...
बहुत खूब अमित जी ... सच है की जो दिलों से खेलता है वो रिश्तों का दर्द नहीं समझ पाता ...
बहुत ही लाजबाब शेर कहे आपने.. सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteकलेंडर
ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी
ReplyDeleteखंजर की नोक पे खड़ा आज जमाना है।
...लाज़वाब! बेहतरीन गज़ल..
बेहतरीन.
ReplyDeleteरिश्तों की अहमियत को वो क्या जाने ‘अमित’
ReplyDeleteदिलों से खेलना जिनका शौक पुराना है।
Bahut Khoob.
शानदार लिखा है अमित जी।
ReplyDeleteचित्र बड़ा भयानक है !!
सुभानाल्लाह....हर शेर उम्दा और बेहतरीन.....दाद कबूल करें|
ReplyDeleteमिलना भी ज़ख्म दिखाने के लिए? हद है!
ReplyDeleteतुमसे मिलना तो बस एक बहाना है
ReplyDeleteदिल के जख्मों को तुम्हें दिखाना है।
बहाना कामयाब रहा .....???