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Tuesday, September 25, 2012

कॉग्रेस की दोरंगी नीति........

चित्र गूगल साभार





सुबह सुबह अखबार पढ़ते हुए एक खबर पर नजर जा कर टिक गई। लिखा था- अब गैस कनेक्शन लेने के लिए उपभोक्ताओं को एजेंसियों के चक्कर नही लगाने पड़ेगें। उपभोक्ता कनेक्शन के लिए सीधे कंपनी के पास ऑनलाईन आवेदन कर सकते है। पढ़कर खुशी हुई। नीचे लिखा था - फार्म में एक कॉलम बना रहेगा उनके लिए जिन्हें गैस पर सब्सीडी नही चाहिए वो यहॉं क्लिक कर बिना सब्सीडी के गैस सिलेंडर ले सकते है। बहुत अजीब लगा। अब आप ही बताईए ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जो सब्सीडी के तहत गैस लेना नही चाहेगा। हमारे देश में लगभग पचास प्रतिशत मध्यम वर्गीय परिवार होगें। ( मैं ऑकड़ों का सहारा नही ले रहा सिर्फ अनुमान है।) बाकी के पचास प्रतिशत में अमीर, गरीब एवं गरीबी रेखा से नीचे वाले लोग। हजार रूप्ये मध्यम वर्गीय परिवार के लिए काफी मायने रखता है। जहॉॅं पर कोई सामान अगर साढ़े चार सौ में मिल रहा है उसके लिए लगभग हजार रूप्ये कोई क्यों खर्च करना चाहेगा। मेरा मानना है कि सरकार ने जो तीन कड़े कदम उठाए है उनमें से सबसे ज्यादा जानलेवा सिलेंडर पर सब्सीडी को खत्म करने वाला है। सब्सीडी खत्म करने से बेहतर था कि सरकार प्रति सिलेंडर बीस से तीस रूप्ये दाम बढ़ा देती। डीजल मे पॉच रूप्ये की वृद्धी खतरनाक है। अगर सरकार इसे प्रति महीने के हिसाब से बढ़ाती तो शायद इसका असर उतना नहीं होता जितना की अभी हो रहा है। जबसे डीजल के दाम बढ़े है बस के किराये में बीस से पच्चीस फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई है। पॉच से दस किलोमीटर का सफर तय करने के लिए लोगों को प्रति किलोमीटर दुगुने रूप्ये देने पड़ रहे है। आम इंसान हलकान हो रहा है। जहॉ तक मैं समझता हुॅ एफ डी आई  के आने से बड़े शहरों में हो सकता है इसके व्यापक असर सामने आए पर छोटे शहरों, कस्बों और गॉवों में ये अपना असर नहीं छोड़ पाएगा। बिग बाजार, रिलायंस जैसी कंपनियॉ बड़े शहरों तक ही सीमित है। छोटे शहरो और गॉवों में लोगों का दुकानदार के पास उधार खाता चलता है जो बड़ी कंपनियों में संभव नही है। इसकी वजह से इन जगहों के लोग ऐसी कंपनियों को नकार देगें। रह गई बात सिलेडंरों पर सब्सीडी समाप्त करने की। तो सरकार एक और कड़े कदम उठाकर इसकी भरपाई कर सकती है और आम आदमी को राहत दे सकती है। सरकार एक ऐसा कानून बनाए जिसके तहत जितने भी केन्द्रीय और राज्य सरकार के मंत्री हैं उन्हें बिना सब्सीडी का सिलेडंर लेना होगा। इस दायरे में ‘‘ए‘‘ ग्रेड एवं ‘‘बी‘‘ ग्रेड के सरकारी नौकरशाहों और पुंजीपतियों को भी लाना होगा। जहॉ तक मैं समझता हु ऐसे लोगों की संख्या लगभग एक करोड़ के आसपास होगी। ये वो लोग हैं जो बाजार भाव में सिलेडंर लेने में सक्षम है। चार सौ रूप्ये के हिसाब से सरकार को लगभग चार सौ करोड़ रूप्ये की प्रति महीने सब्सीडी में बचत होगी। इन रूप्यों से उन लोगों को फायदा होगा जो सही मायने में इसके हकदार है। पर सरकार ऐसा करेगी नही। वो तो अभी से ही दोरंगी नीति अपना रही है। उसने तो अपने कानून के द्वारा भारत को दो टुकड़ों में बॉट दिया है। एक टुकड़ा वो जो कॉग्रेस शासित प्रदेश है और दुसरा टुकड़ा वो जो कॉग्रेस शासित प्रदेश नही है। हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए तो सिर्फ कॉग्रेस शासित राज्यों में ही भारतीय जनता रहती है। तभी तो उन्होनें उन राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए सब्सीडी वाले सिलेडंरों की संख्या छः से बढ़ाकर नौ कर दी है। बाकी राज्यों की जनता रोये या हॅसे इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता। ये कॉग्रेस सरकार का दोगलापन नही है तो और क्या है। क्या एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह का वर्ताव उचित है?  ये भारत देश की बदकिस्मती है कि ऐसे लोग हमारे नेता बने हुए है।

3 comments:

  1. "ये भारत देश की बदकिस्मती है कि ऐसे लोग हमारे नेता बने हुए है"

    कटु सत्य

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  2. कांग्रेस शासित प्रदेश ओर गैर कांग्रेस शासित प्रदेश ...अंग्रेजो ने भी इस तरह का विभाजन नहीं किया ...दुर्भाग्य है हमारा कि इनको सत्ता में बैठा रखा है ...........

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