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Tuesday, December 4, 2012

फिर तेरी कहानी याद आई.......


चित्र गूगल साभार




फिर तेरी कहानी याद आई
बीते मौसम की रवानी याद आई।

गुजारे थे हमने जो साथ मिलकर
वो शाम सुहानी याद आई।

तेरी ऑखों का सुरूर और वो मदहोश आलम
टुटी हुई चुड़ीयों की कहानी याद आई।

गुंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
वो नज्म पुरानी याद आई।

लहरों के साथ जो बह गया ‘अमित’ 
रेत पर बनी वो निशानी याद आई।

14 comments:

  1. very nice presentation of expression.

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  2. याद आई है फिर, तेरी मेरी वही कहानी |
    गुजरे हुए वो शाम सुहाने, रेत पे बनी निशानी ||

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

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  3. बहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति

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  4. बहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  5. बहुत प्यारी गज़ल...
    गूंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
    वो नज्म पुरानी याद आई।...
    बहुत सुन्दर..

    अनु

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  6. गूंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
    वो नज्म पुरानी याद आई।...
    यादें कहाँ भुलाई जा सकती हैं, मन में बस जाती हैं हमेशा-हमेशा के लिए...बहुत सुन्दर...

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  7. वाह अमित जी क्या बात है हर एक पंक्ति अपने आप में लाजवाब हैं
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  8. अनुपम भाव संयोजन से सजी सुंदर रचना...

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  9. बहुत खूब ... भावमय प्रस्तुति ...

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