चित्र गूगल साभार
इतने ही शरीफ है तो हम्माम में नंगे क्यों हैं
इंसाँ बसते हैं इस बस्ती में तो फिर दंगे क्यों हैं।
वो कहता था, चेहरा इंसान का आईना होता हैं
फिर, इस महफिल में सबके चेहरे रंगे क्यों हैं।
हक बराबर का है सबका तेरी दुनिया में ऐ खुदा
दैर ‘ओ‘ हरम की सीढ़ियों पर इतने भूखे-नंगे क्यों हैं।
सागर भी तड़पता है साहिल से मिलने के लिए
वरना, उसके सीने में उठती इतनी तरंगें क्यों है।
दो गज जमीन है इख्तियार में सभी के ‘अमित‘
ना जाने फिर दुनिया में इतनी जंगें क्यों है।
हक बराबर का है सबका तेरी दुनिया में ऐ खुदा
ReplyDeleteदैर ‘ओ‘ हरम की सीढ़ियों पर इतने भूखे-नंगे क्यों हैं।
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल ..
काफी अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर
ReplyDeleteअच्छा ब्लॉग है आपका !
आपका ब्लॉग फॉलो कर रहा हूँ
आपसे अनुरोध करता हूँ की मेरे ब्लॉग पर आये
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