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Tuesday, July 27, 2010

शहर

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Saturday, July 24, 2010

पैसा

पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाएंं।
पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तोें से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।
पैसा,
गढ़ता है
रिश्तोें की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झुठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।
पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगोेंं को कुछ नज़र नहीं आता।
पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते है।
पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि ‘शायद हम बदल चुके हैै
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।