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Monday, December 24, 2012

सचिन तुझे सलाम..........

चित्र गूगल साभार





सचिन के वनडे क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा ने चौंका दिया। हॉंलाकि ये सभी जानते थे और शायद इस बात की आशा भी थी कि पाकिस्तान और अस्ट्रेलिया के भारत दौरे के बाद वो सन्यास ले सकते थे। जब सचिन ने ये पहले ही दर्शा दिया था कि वो पाकिस्तान और अस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलेगें इसके बावजूद उनका चयन नही होना वाकई हैरतअंगेज था। हरेक खिलाड़ी को एक न एक दिन जाना होता है लेकिन एक बड़े खिलाड़ी और उससे भी ज्यादा एक अच्छे इंसान का मैदान के बाहर सन्यास लेना वाकई दुखदायी है। ये हमारे देश में ही सभंव है कि जिन दो खिलाड़ियों ने हमारे देश में क्रिकेट को एक नई दिशा दी उन्हें जलालत के साथ विदा होना पड़ा। कपिल देव और सचिन जैसे खिलाड़ियों के साथ ऐसा व्यवहार क्या उचित है? सचिन का भारतीय क्रिकेट में क्या स्थान था वो अजहर और गागंुली से बेहतर कौन जान सकता है। ये वो दौर था जब भारतीय क्रिकेट सचिन के इर्द-गिर्द घूमता था। उस वक्त सचिन के विकेट पर रहने का मतलब भारत मैच में रहता था और आउट होने का मतलब भारत मैच से बाहर। सही मायने में भारत में क्रिकेट का जोश और जुनून सचिन की ही देन है। सचिन ने वास्तव में एक दशक तक भारतीय क्रिकेट को अपने कंधे पर ढोया है। पुरे विश्व में सचिन ही एकमात्र ऐसे खिलाड़ी है जिसने इतने दबाव के बावजुद इतना लबां सफर तय किया। ऐसे महान खिलाड़ी के साथ व्यवहार वाकई शर्मनाक है। सवा करोड़ भारतीयों का क्रिकेट के भगवान को सलाम एवं नम ऑंखों से विदाई।

Saturday, December 15, 2012

ये शराब है............


चित्र गूगल साभार





कातिलाना रूप इसका हुस्न लाजवाब है
देख पैमाने में कैसे बलखाती ये शराब है।

दौर-ए-महफिल हो या हो गमों की बारिशें
तश्नालब की तिश्नगी मिटाती ये शराब है।

लगता है मयकदे में हुजूम शब-ओ-रोज
मयकशों को उंगलियों पर नचाती ये शराब है।

होश में रहने दे अब और न पिला साकी
राज दिलों के सारे खोलती ये शराब है।

Tuesday, December 4, 2012

फिर तेरी कहानी याद आई.......


चित्र गूगल साभार




फिर तेरी कहानी याद आई
बीते मौसम की रवानी याद आई।

गुजारे थे हमने जो साथ मिलकर
वो शाम सुहानी याद आई।

तेरी ऑखों का सुरूर और वो मदहोश आलम
टुटी हुई चुड़ीयों की कहानी याद आई।

गुंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
वो नज्म पुरानी याद आई।

लहरों के साथ जो बह गया ‘अमित’ 
रेत पर बनी वो निशानी याद आई।

Saturday, November 17, 2012

अतीत के पन्ने .........







अतीत के पन्ने
पलटते पलटते
बहुत दूर तक निकल आया था मैं।
तस्वीरें
अब धुधंली हो गई थी।
वक्त की बारिश ने
शब्दों से जैसे
उसकी चमक छीन ली थी।
पर
उन धुधंली तस्वीरों में
एक तस्वीर
तुम्हारी भी थी।
वही मासुमियत
साँवलें चेहरे पर
सुबह की खिलती
किरणों की तरह मुस्कान।
तुम्हारे साथ गुजरा हुआ
हर लम्हा
सबकुछ तो साफ साफ था।


                                  चित्र गूगल साभार


ऐसा लगता है
जैसे
वक्त ने तुम्हे
छुआ ही न हो।
समय के
घूमते हुए चक्र से
तुम बहुत आगे
निकल गई हो।
अतीत की किताब के पन्ने
चाहे कितने भी
धुधंले क्यो न हो जाए
पर लगता है
तुम्हारा पन्ना ताउम्र
अनछुआ ही रहेगा।

Thursday, November 8, 2012

कोई यहॉ हिन्दु कोई मुसलमान रह गया


चित्र गूगल साभार





दिल में तेरी यादों का तुफान रह गया
बस्तियॉ लुट गई सारी खाली मकान रह गया।

जुल्म और नफरत से भर गई दुनिया
इन्सान अब कहॉ इन्सान रह गया।

ताउम्र ख्वाहिशों को ही जीता रहा मगर
दिल में बाकी फिर भी कुछ अरमान रह गया।

इन्सान अब रहा नहीं तेरी दुनिया में ऐ खुदा
कोई यहॉ हिन्दु कोई मुसलमान रह गया।

Monday, October 22, 2012

रावण और हम................

चित्र गूगल साभार



सुबह से ही घर में उधम मच रहा था। बच्चों ने मेला घूमने के लिए सारा घर सर पे उठा रखा था। मैं हैरान परेशान इधर-उधर घूम रहा था। सोच रहा था ‘‘इस महगॉई में ये पर्व त्योहार आखिर आते क्यों है? खैर, जैसे तैसे सबको विदा किया। 
शाम में अकेले-अकेले मैं भी टहलने निकल गया। 
थोड़ी दूर जाने पर मैनें अंधेरे में किसी को छिपते देखा। जब मैं वहॉं गया तो देखा रावण महाराज अपने दस सरों की वजह से छिपने की नाकाम कोशीश कर रहे थे। 
मैने पुछा- ये क्या महाराज! आप यहॉ क्या कर रहे हैं? आपको तो थोड़ी देर के बाद जलना है। 
वो लगभग रोते हुए बोले-भाई अब तो बस करो। सदियों से मुझे जलाते आ रहे हो। आखिर एक गलती की कितनी बार सजा दोगे। वैसे भी आजकल तुम्हारे देश में इतने रावण है कि मेरे कर्म छोटे पड़ जाए। उन्हें पकड़ो और उन्हे जलाओ। मुझे जलाने से तुम्हारा कुछ भला नहीं होगा। पर उन्हे जलाओगे तो तुम्हारे साथ-साथ पुरे देश का कल्याण हो जाएगा। एक सीता हरण का दडं तुमलोग मुझे त्रेता युग से कलियुग तक देते आ रहे हो। क्या ये उचित है? मुझे तो अपनी करनी का फल त्रेता युग में ही मिल गया था। पर तुम लोग हो कि-----। 
आज तो हर घर में, हर मोड़ पर, हर समाज में, हर इंसान में बुराई ही बुराई है। उन्हें खत्म करों और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाओ। पर तुमलोगों से ये तो होगा नही और खामखॉ हर साल मुझे बदनाम करते हुए अपनी कर्मो की सजा मुझे देते हो और खुद पाक-साफ हो जाते हो। 
तभी रामलीला वाले उन्हें ढुढॅंते हुए आए और पकड़कर ले गए खुले मैदान में। राम ने तीर में आग लगाई और चला दिया रावण की ओर। रावण धूॅ-धॅू कर जल उठा। मैदान में ठसाठस भरे हुए लोग खुश हो गए। जैसे रावण के साथ-साथ इस दुनिया की सारी बुराई जलकर राख हो गई हो। लोग वापस अपने-अपने घरों में लौट आए कल से फिर एक नया रावण बनने के लिए।

Monday, October 15, 2012


चित्र गूगल साभार





एक ही दुनिया एक है धरती एक ही है आकाश
फिर क्यों आपस में लड़कर हम खो रहे विश्वास।

मैं हिन्दु तुम मुस्लिम ये सिख वो ईसाई है
एक लहु बहता रगों में फिर कैसी जुदाई है।

ये कैसा अधर्म मचा है देखो चारो ओर
दौलत के पीछे सब अपना लगा रहे है जोर।

कौड़ी कौड़ी जमा किया पर सबकुछ छोड़ कर जाना है
रिश्ते-नाते, धन-दौलत जीने का फकत बहाना है

दुनिया में आए हो तो फिर कुछ ऐसा कर जाओ
गैरों के लिए जी लो या गैरो के लिए मर जाओ।

Tuesday, September 25, 2012

कॉग्रेस की दोरंगी नीति........

चित्र गूगल साभार





सुबह सुबह अखबार पढ़ते हुए एक खबर पर नजर जा कर टिक गई। लिखा था- अब गैस कनेक्शन लेने के लिए उपभोक्ताओं को एजेंसियों के चक्कर नही लगाने पड़ेगें। उपभोक्ता कनेक्शन के लिए सीधे कंपनी के पास ऑनलाईन आवेदन कर सकते है। पढ़कर खुशी हुई। नीचे लिखा था - फार्म में एक कॉलम बना रहेगा उनके लिए जिन्हें गैस पर सब्सीडी नही चाहिए वो यहॉं क्लिक कर बिना सब्सीडी के गैस सिलेंडर ले सकते है। बहुत अजीब लगा। अब आप ही बताईए ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जो सब्सीडी के तहत गैस लेना नही चाहेगा। हमारे देश में लगभग पचास प्रतिशत मध्यम वर्गीय परिवार होगें। ( मैं ऑकड़ों का सहारा नही ले रहा सिर्फ अनुमान है।) बाकी के पचास प्रतिशत में अमीर, गरीब एवं गरीबी रेखा से नीचे वाले लोग। हजार रूप्ये मध्यम वर्गीय परिवार के लिए काफी मायने रखता है। जहॉॅं पर कोई सामान अगर साढ़े चार सौ में मिल रहा है उसके लिए लगभग हजार रूप्ये कोई क्यों खर्च करना चाहेगा। मेरा मानना है कि सरकार ने जो तीन कड़े कदम उठाए है उनमें से सबसे ज्यादा जानलेवा सिलेंडर पर सब्सीडी को खत्म करने वाला है। सब्सीडी खत्म करने से बेहतर था कि सरकार प्रति सिलेंडर बीस से तीस रूप्ये दाम बढ़ा देती। डीजल मे पॉच रूप्ये की वृद्धी खतरनाक है। अगर सरकार इसे प्रति महीने के हिसाब से बढ़ाती तो शायद इसका असर उतना नहीं होता जितना की अभी हो रहा है। जबसे डीजल के दाम बढ़े है बस के किराये में बीस से पच्चीस फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई है। पॉच से दस किलोमीटर का सफर तय करने के लिए लोगों को प्रति किलोमीटर दुगुने रूप्ये देने पड़ रहे है। आम इंसान हलकान हो रहा है। जहॉ तक मैं समझता हुॅ एफ डी आई  के आने से बड़े शहरों में हो सकता है इसके व्यापक असर सामने आए पर छोटे शहरों, कस्बों और गॉवों में ये अपना असर नहीं छोड़ पाएगा। बिग बाजार, रिलायंस जैसी कंपनियॉ बड़े शहरों तक ही सीमित है। छोटे शहरो और गॉवों में लोगों का दुकानदार के पास उधार खाता चलता है जो बड़ी कंपनियों में संभव नही है। इसकी वजह से इन जगहों के लोग ऐसी कंपनियों को नकार देगें। रह गई बात सिलेडंरों पर सब्सीडी समाप्त करने की। तो सरकार एक और कड़े कदम उठाकर इसकी भरपाई कर सकती है और आम आदमी को राहत दे सकती है। सरकार एक ऐसा कानून बनाए जिसके तहत जितने भी केन्द्रीय और राज्य सरकार के मंत्री हैं उन्हें बिना सब्सीडी का सिलेडंर लेना होगा। इस दायरे में ‘‘ए‘‘ ग्रेड एवं ‘‘बी‘‘ ग्रेड के सरकारी नौकरशाहों और पुंजीपतियों को भी लाना होगा। जहॉ तक मैं समझता हु ऐसे लोगों की संख्या लगभग एक करोड़ के आसपास होगी। ये वो लोग हैं जो बाजार भाव में सिलेडंर लेने में सक्षम है। चार सौ रूप्ये के हिसाब से सरकार को लगभग चार सौ करोड़ रूप्ये की प्रति महीने सब्सीडी में बचत होगी। इन रूप्यों से उन लोगों को फायदा होगा जो सही मायने में इसके हकदार है। पर सरकार ऐसा करेगी नही। वो तो अभी से ही दोरंगी नीति अपना रही है। उसने तो अपने कानून के द्वारा भारत को दो टुकड़ों में बॉट दिया है। एक टुकड़ा वो जो कॉग्रेस शासित प्रदेश है और दुसरा टुकड़ा वो जो कॉग्रेस शासित प्रदेश नही है। हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए तो सिर्फ कॉग्रेस शासित राज्यों में ही भारतीय जनता रहती है। तभी तो उन्होनें उन राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए सब्सीडी वाले सिलेडंरों की संख्या छः से बढ़ाकर नौ कर दी है। बाकी राज्यों की जनता रोये या हॅसे इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता। ये कॉग्रेस सरकार का दोगलापन नही है तो और क्या है। क्या एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह का वर्ताव उचित है?  ये भारत देश की बदकिस्मती है कि ऐसे लोग हमारे नेता बने हुए है।

Friday, September 14, 2012

कॉग्रेस का हाथ किसके साथ........


चित्र गूगल साभार

बरसात की एक खुशनुमा शाम। अभी थोड़ी देर पहले ही तेज बारीश हुई जिसकी वजह से हवा में नमी आ गई और पुरे दिन की उमस भरी गर्मी से छुटकारा मिला। अब ऐसे मौसम मे भला किसका दिल रूमानियत से नही भरेगा। इसलिए मैं भी चल दिया ऐसे मौसम का मजा लेने। 
तभी पीछे से अचानक एक आवाज आई - कहॉ चल दिए चन्द्रा बाबु! 
इस आवाज को मैं अच्छी तरह से पहचानता था। मैं समझ गया ‘‘हो गया आज की शाम का बेड़ा गर्क‘‘। मैं पीछे पलटा। मेरे पीछे दुखिया 5 फीट 7 इंच के कैनवस में मुस्कुरा रहा था। 
मैंने पुछा - और बताओ भाई कैसे हो। चाय-वाय पी ली। 
उसने कहा - हॉ जी अभी अभी कलुआ की अम्मा ने नोकिया मोबाईल के साथ चाय पिलाई है। 
मैं हड़बड़ाया। मैने कहा - ये क्या बक रहे हो? अरे बिस्किट के साथ चाय तो सुना था ‘‘ये मोबाईल के साथ चाय‘‘ समझ में नहीं आया। 
आप भी न! जानकर अनजान बनते है चन्द्रा बाबु। 
वो कैसे? मैने कहा। 
उसने कहा- अरे सर जी! जब सरकार मुफ्त में लोगों को रोटी नही बल्कि मोबाईल बॉटेगी तो बिस्किट के साथ चाय कौन पियेगा। अब तो सुबह के नास्ता में सैमसंग, दोपहर के खाने में ब्लैक बेरी, शाम के चाय के साथ नोकिया और रात के खाने में एक अदद सोनी इरेक्सन। 
धड़ाम! ऐसा लगा जैसे मेरे सर पर ओला गिरा हो। 
मैं खामोश एकदम बुत की तरह और दुखिया राजधानी एक्सप्रेस बना हुआ था। 
अब देखिये हमारे एक नेता जिनका प्रमोशन कर गृह मंत्रालय से वित्त मंत्रालय भेज दिया गया  उन्होंने कहा था - यहॉ की जनता पन्द्रह रूप्ये का आईसक्रीम तो खा सकती है मगर गेहुॅ और चावल में दो रूप्ये की बढ़ोत्तरी बर्दाश्त नही कर सकती। अब भला उन्हे कौन समझाए कि हमलोग एक बार आईसक्रीम खा कर एक महीना गुजार सकते हैं लेकिन एक दिन रोटी खाकर एक महीना कैसे गुजारे। और अब ताजा खबर ये है कि डीजल की कीमत में पॉच रूप्ये की बढ़ोत्तरी हुई है। हमारी भारतीय जनता वैसे भी मॅहगाई की वजह से लंगोट पर जी रही है अब तो ये भी उतरने वाली है। कोढ़ में खाज वाली एक और बात सुनिये- पहले तो सरकार ने हमारी थाली सीमित कर दी अब उन्होने रसोई गैस भी सीमित कर दिया है। यानि की अब साल में सिर्फ छः सिलेडंर मिलेगे। वैसे भी भारत की आधी जनता में वो दम तो रहा नही कि महगांई की वजह से वो दो वक्त का सही से खाना खा सके। इसलिए सरकार ने सोचा कि भाई जब तुम दो वक्त का खाना खा नही सकते तो साल में इतने सिलेडंर ले कर क्या करोगे। इसलिए उन्होनें इसकी संख्या आधी कर दी। 
मैने उसे प्यार से समझाया-देखो सरकार के खजाने खाली है उसे भरने के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा न। सही बात है चन्द्रा बाबु! घोटाले करने के लिए सरकार के पास अरबों खरबों रूप्ये आ जाते है लेकिन जनता के नाम पर उनके खजाने खाली हो जाते है। 
वो एक ठंडी आह भरते हुए बोला- शुक्र है सरकार ने ऑक्सीजन सीमित नही किया है। 
मैने पुछा- क्या मतलब! 
मतलब ये कि अब तो डर लग रहा है कि सरकार कहीं ये न कह दे कि भाई वायु प्रदुषण की वजह से वायुमडंल में आक्सिजन की कमी हो रही है, इसलिए सभी व्यक्ति एक दिन में सिर्फ 100 बार ही सॉस लेगें और जो उससे ज्यादा सॉस लेगा उसे 50 रूप्ये प्रति सॉस की दर से सरकार को टैक्स देना होगा। आप तो कहते थे कि कॉंग्रेस का हाथ आप के साथ। अब खुद कॉग्रेस बताए ‘‘ कॉग्रेस का हाथ किसके साथ‘‘।

Wednesday, August 29, 2012

एक शायर इस जहॉं में गुमनाम रह गया......


चित्र गूगल साभार





मैं उसको ढुढॅंता उम्र-ए-तमाम रह गया
वो चला गया बस उसका नाम रह गया।

सोचता हु समेट लु हर शै को बॉहों में
कहीं अफसोस न हो बाकी कुछ काम रह गया।

जिदंगी को दॉव पर लगाता रहा मगर
हारता रहा मैं नाकाम रह गया।

ऐसा हुआ हश्र मेरी शायरी का बस
एक शायर इस जहॉं में गुमनाम रह गया।


Tuesday, August 21, 2012

साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है........


चित्र गूगल साभार






हमें मालुम न था लोग इतने बदल जाते है
दर्द देकर औरो को कुछ लोग मुस्कुराते है।

ग़म-ए-जिन्दगानी का फ़लसफ़ा बहुत लबां है
थोड़ा सब्र करो हर्फ-दर-हर्फ सुनाते है।

कैद कर लो ऑसुओं को अपनी ऑखों में
बारीशों में नाले भी दरिया बन जाते हैं।

दोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है।


Monday, April 2, 2012

तस्वीरें बोलती है .........



ये तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है.  इसे मैंने फेसबुक से लिया है.

Monday, March 26, 2012

कौन सच्चा और कौन झूठा ..............


सुबह सुबह घर में कलह हो गई और इसका बहुत बड़ा खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा। श्रीमति जी ने सबेरे-सबेरे चाय देने से मना कर दिया। अनमने ढंग से स्टेशन की ओर चल पड़ा। वहॉ चाय की चुस्कियों के साथ अखबार का जायका ले रहा था कि दूर से दुखिया आता दिखाई पड़ा। वो हमारे घर से थोड़ी ही दुरी पर अपने परिवार के साथ एक झोपड़े में रहता है। थोड़ा मुहफट है इसलिए मैं हमेशा उससे बचने की कोशीश करता हूँ। हमेशा की तरह उससे बचने के चक्कर में जल्दी-जल्दी चाय पीने लगा और अपना मुहँ जला बैठा। वो आते ही धमक पड़ा - ‘‘चन्द्रा बाबु आप एक नबंर के झुठे हैं‘‘।

मेरे तो होश उड़ गए। मैने कहा - ‘‘भईए‘‘ लक्ष्मी से भेंट नही और दरिद्र से झगड़ा। कई दिनों से हमारी मुलाकात नहीं हुई और तुम कहते हो कि मैने झुठ बोला।

उसने आवेश में बोला - अरे आप ही न कहते थे जी कि ‘‘लोकतंत्र में जनता राजा होती है और नेता एवं सरकारी अफसर जनता के सेवक‘‘।

मैने कहा - हॉ बात तो सोलह आने सही है फिर मैं झुठा कैसे हुआ।

दुखिया बोला - मतलब कि हम राजा है और वो सब हमारे नौकर। मैने कहा - हॉ एकदम सही। अब जाकर एकदम सही समझा।

क्या खाक सही समझा। वो तैश में बोला। मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैने उसे शांत करने की कोशीश की और कहा - आखिर क्या बात हो गई इतने गुस्से में क्यो हो। पर वो शांत होने के बजाय और भड़क गया और बोला - आपने कभी किसी राजा को इस हालात में देखा है न पहनने को कपड़ा और न खाने को रोटी। उस पर तुर्रा ये कि 39 रूप्ये रोज कमाने वाला इसांन गरीब नही कहलाएगा।

मैं काठ का उल्लु बना बस उसे देखता रहा। मुहँ से एक शब्द भी नही निकला। ऐसा लगा जैसे जबान को लकवा मार गया हो।

वो उसी तरह बोलता रहा। आप कहते हैं कि पुलिस हमारी रक्षा के लिए है। ठीक उसी तरह से जिस तरह से सैनिक राजा की रक्षा करते है। क्या खाक हमारी रक्षा करेगें उल्टे हमें उनके आगे हाथ जोड़कर खड़ा रहना पड़ता है और उनकी जेबें गरम करनी पड़ती है। वरना पता नहीं किस केस में अदंर कर दे।

मैं अजीब सी मुसीबत में फॅस गया। अपनी हालत तो सॉप छछुदंर वाली हो गई थी। न उगलते बन रहा था और न निगलते। पता नही आज सुबह सुबह किसका चेहरा देखा था कि घर में बीवी से झगड़ा हुआ और यहॉ ये मेरी जान खा रहा है।

वो फिर मुझ पर चढ़ बैठा।

उसने कहा - अभी कल की ही बात ले लिजिए। अन्ना हजारे के समर्थकों ने जरा सा कुछ कह क्या दिया सारी ससंद ही गरम हो गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने सभी नेताओं को गरम तवे पर बैठा दिया हो। वो सारे के सारे निदां प्रस्ताव की मॉग कर रहे है।

मैं कुछ बोलने ही जा रहा था कि उसने एक और फायर कर दिया।

अब आप ही बोलिए इस लोकतंत्र में जो राजा है उसे बोलने का कोई हक नही और जो नौकर है वो जब चाहे जैसे चाहे अनाप-शनाप बोलता रहे। उनकी बिरादरी वालों ने जब शहीद सैनिक और उनके परिजनों को अपमानित किया तो क्यों नही उन्हे उनके पद से हटा दिया गया। दिग्गी राजा जैसे लोग जब चाहे जैसे चाहे तब मुहँ रूपी तोप से दनादन गोले दागते रहे और हम सुनने के अलावा कुछ नहीं करे। ये सारे लोग हमारे ही कमाए रूप्ये से ऐश करते रहें और हम दाने दाने को मोहताज रहे। क्या इसे ही राजा कहते है।

बताईए आप ‘‘हैं कि नही एक नबंर के झुठे‘‘।

चाय वाले की तरफ पैसे लगभग फेंकते हुए मैनें वहॉ से जो दुड़की लगाई कि सीधे घर आकर ही दम लिया। पीछे दुखिया आवाज लगाता रहा - ‘‘अरे सर सुनिये तो कहॉ जा रहे हैं‘‘।
सोफे पर बैठा अपनी उखड़ी सॉसों को नियंत्रित करता हुआ मैं सोचने लगा कि क्या वास्तव में मैं झुठा हूँ और दुखिया सच्चा। आप सभी की क्या राय है।

Tuesday, March 13, 2012

हैं कितने कमाल के हम...........


चित्र गूगल साभार 




नेता जी] नेता जी एक बात बताईये
ये मामला क्या है जरा हमें भी समझाईये।

मंत्री बनने से पहले आपके घर में फॉके बरसते थे
धोती तो क्या आप लंगोट को भी तरसते थे।

ये कैसी आपने जादू की छड़ी घुमाई है
हम सभी को छोड़ लक्ष्मी आपके द्वार आई है।

हम तो अभी भी पैदल ही सफर करते है
आप तो अब जमीं पर पॉंव भी नही रखते है।

नेता जी बोले धत्त पगले क्यों मजाक करता है
हम शरीफों पर क्यों बेवजह दोष मढ़ता है।

हम तो जनता के सेवक है जनता का दिया खाते है
जो बच जाता है उसे दुसरे देश **स्वीस बैंक** भिजवाते है।

हम तो बसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते है
इसलिए तो देश की संपत्ति को अपना समझते है।

सादगी और सद्भावना की जिंदा मिसाल है हम
अब समझ में आया कि हैं कितने कमाल के हम।


Sunday, February 26, 2012

कुछ बेतुकी बातें ......................


चित्र गूगल साभार 


अक्षरों से मिलकर
शब्द बनते हैं
शब्दों से मिलकर वाक्य।
वाक्यों से मिलकर
अहसास पुरे होते हैं और
अहसासों से मिलकर जज्बात।
जज्बातों से मिलकर
ख़्याल बनता है
और ख़्यालों से मिलकर
बनती है रचना।
जिन्हें हम कभी
कविता कहते है तो
कभी नज्म और
कभी गज़ल कहकर
पुकारते है तो कभी
छंद कहकर।
वास्तव में ये हमारी
सोच और ख़्याल का ही तो
प्रतिरूप है।
अक्स है
हमारी खुशी और ग़म का
हमारे अकेलेपन और
तन्हाईयों का।
दिल की गहराईयों में
दफ्न हो चुके
गुजरे हुए कल का।
हमारे आस-पास घटती
हर अच्छाई और
बुराई का।
जिन्हें हम
शब्दों की चाशनी में
लपेट कर
कोरे कागज की थाली में
परोस कर
आपके सामने रख देते हैं।

Thursday, February 16, 2012

बड़े दिलफरेब होते है ये जमाने वाले.....


चित्र गूगल साभार 



बड़े दिलफरेब होते है ये जमाने वाले
हॅस हॅस के मिले हमसे हमको मिटाने वाले।


तेरा दिल न सही दश्त ए वीरानियॉ तो है
वहीं आशियॉं बनायेंगें दिल को लगाने वाले।


कोई क्यों भरोसा करे मोहब्बत के इख्लास पे
दिल मेरा तोड़ गए हमें अपना बनाने वाले।


आवाजें भी तारीखों में दफन हो जाती हैं ‘अमित’
रोके कहॉ रूकते हैं कभी छोड़ कर जाने वाले।

Friday, February 3, 2012

तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है......

चित्र गूगल साभार 




तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है
दिल के जख्मों को तुम्हें दिखाना है।

कुछ इस कदर बिखरा है वजूद मेरा
न कहीं ठौर और न कहीं ठिकाना है।

ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी
खंजर की नोक पे खड़ा आज जमाना है।

रिश्तों की अहमियत को वो क्या जाने ‘अमित’
दिलों से खेलना जिनका शौक पुराना है।

Wednesday, January 25, 2012

अपने हाथों यूँ न करो र्निवस्त्र मुझे..........


कुछ दिनों से व्यस्तता की वजह से ब्लॉग से दूर हूँ जिसकी वजह से आपलोगों की रचनाओं को नहीं पढ़ पा रहा हूँ. आप लोगों के पास अपनी एक पुरानी रचना छोड़े जा रहा हूँ. इसे मैंने अगस्त महीने में ब्लॉग पर डाला था. जैसे ही समय मिलता है आप लोगो के पास वापस आ जाऊंगा. तब तक के लिए आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.



चित्र गूगल साभार 




रास्ते में मैने एक बुढ़िया को देखा बदहवास
ऑखों में था पानी और चेहरे से थी उदास।

पुछा कौन हो तुम और किसने किया तुम्हारा ये हाल
जिदंगी आगे और भी है जरा अपने आप को सभांल।

बोली बेटा अपना दर्द कैसे करू तुमसे बयान
कैसे दिखाउॅ तुम्हें अपने बदन पे जख्मों के निशान।

मेरे चाहने वाले ही मेरी हालत के जिम्मेदार हैं
कैसे कहूँ कि वो मेरे दुध के कर्जदार हैं।

मेरे बेटों ने ही मेरा ये हाल बनाया है
देखो किस तरह उन्होंने दुध का कर्ज चुकाया है।

मैने कहा चल मेरे साथ तेरा ये बेटा अभी जिंदा है
पोछ ले तु ऑंसु अपने क्यों खुद पे तु शर्मिन्दा है।

कहॉ ले जाओगे मुझे मैं एक लुटी हुई कारवॉं हूँ 
बेटा मैं और  कोई  नहीं  तेरी अपनी  ही भारत मॉं हूँ।

बख्श दो अब और न करो त्रस्त मुझे
अपने हाथों यूँ  न करो र्निवस्त्र मुझे।

Saturday, January 14, 2012

अजनबी से मोहब्बत का इजहार कर बैठे............


चित्र गूगल साभार 




अजनबी से मोहब्बत का इजहार कर बैठे
सरे राह अपनी मौत का इकरार कर बैठे।

दोस्तों की हमें कोई खबर न थी
दुश्मनों से मिले और प्यार कर बैठे।

हुआ कुछ इस कदर ये इत्फाक देखिए
नबीं को भी हम इनकार कर बैठे।

खामोश जिदंगी और अफ़सुर्दा चौबारे हैं
तन्हाई को तेरी यादों से गुलजार कर बैठे।

Saturday, January 7, 2012

मेरी दुआओं में कुछ असर तो हो........


चित्र गूगल साभार 



मेरी दुआओं में कुछ असर तो हो
जिदंगी थोड़ी ही सही बसर तो हो।

किसी के रोके कहॉ रूकते है हम
रोक ले मुझको ऐसी कोई नजर तो हो।

कितनी मुश्किलें हैं मंजिल के सफर में
सर छुपाने के लिए कोई शजर तो हो।

दस्त-ए-तन्हाई को ऑसुओं से सवॉरा है मैने
मुस्कुराहटों से भरी कभी कोई सहर तो हो।