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Monday, September 27, 2010

सपनों से भी आगे





आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की भीनी-भीनी सी खुश्बू।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है समन्दर में
फूलों में चटख रही है
तेरे सुर्ख गुलाबी गालों की रंगत।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है गाना
तेरी पायल की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।

Monday, September 20, 2010

बचपन

मैंने देखा
देश के भविश्य को
कुपोशण से ग्रसित
भुख से रोता-बिलखता हुआ।
पेट की आग को
शान्त करने के लिए
कुड़े और कचरे के ढेर से
रोटियों के टुकड़े ढंुंढता हुआ।
अपनी छोटी मोटी जरूरतों को
पुरा करने के लिए
चोरियॉं करता हुआ।
बदलते मौसम के
थपेड़ों को सहकर
बेफिक्री से फुटपाथों पर
शनै शनै गुजरता हुआ बचपन।
छोटी छोटी खुिशयों में
अपने अस्तित्व को
तलाश करता हुआ बचपन।
चाय की दुकानों, रेहड़ियों पर
झुठे बर्तनों को
साफ करता हुआ बचपन।
जिसके लिए
पुस्तकों का कोई मतलब नहीं
और न ही
स्कूलों के कोई मायने है।
हर उस चीज के लिए
जिस पर उसका
संवैधानिक अधिकार है
तरसता हुआ बचपन।

Friday, September 10, 2010

दिल्लगी


तुमने की दिल्लगी, हमने तो तुम्हें दिल में बसाया है।
तुम्हें ना सही, तेरी यादों को अपना बनाया है।

आज भी ये निगाहें तेरी राह देखती है।
आने-जाने वालों से तेरा पता पूछती है।

इस दिले नादान को आज भी तेरा इन्तजार है।
झूठा ही सही एक बार तो कहा होता, हमें तुमसे प्यार है।

मैं कोई वक्त नहीं जिसे यूं ही भूल जाओगी तुम,
एक एहसास हूं मैं हर पल करीब पाओगी तुम।

आज बेशक मेरे प्यार की जरूरत नहीं है तुम्हें,
एक दिन आएगा, तब बहुत पछताओगी तुम।

तलाश करोगी मुझे दर-ब-दर सहराओं में
फिर भी मेरे अक्स को छू नहीं पाओगी तुम।

खुदा की एक हंसी नेमत को तुने ठुकराया है,
कयामत तक भी कहीं सुकूं नहीं पाओगी तुम।

सभी को ईद की शुभकामनाएं।

Wednesday, September 8, 2010

चुनावी दस्तक

बिहार में एक बार फिर से रणभेरी बज चुकी है। सभी दलों ने अपनी तैयारियॉं शुरू कर दी है। एक बार फिर से वो वक्त आ गया है जब सारे नेता जनता की रहमो करम पे होते है। गरीबी, महगॉंई और बेबसी के बोझ तले दबी हुई जनता अचानक उन्हें भगवान दिखाई देने लगती है। पॉंच सालों तक जिस जनता को दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह दुत्कार दिया जाता है, वो एकदम से उन्हे अपना तारणहार दिखाई देने लगता है। खैर ये लोकतन्त्र है और लोकतन्त्र में ये सब तो चलता रहता है। परन्तु अब बात कुछ राजनीति की। चुनाव के वक्त सभी छुटभैये नेताओं से लेकर बड़े नेताओं तक में जिस चीज की मारा मारी होती है वो है टिकट हासिल करना। येन केन प्राकरेण चाहे धन बल द्वारा या बाहुबल के द्वारा। क्या हमे नही लगता संविधान में कुछ संशोधन करने की जरूरत है। जरा सोचिए, हमारे देश की राजनीति में कोई भी महिला या पुरूष चुनाव लड़ सकता है। बशर्ते वो मानसिक रूप से बीमार न हो, वह भारत का नागरिक हो तथा वह दिवालिया न हो और उसपर किसी तरह का कोई आरोप सिद्ध न हुआ हो। लेकिन इसके इतर भी कुछ चीजें है जिसपर हमें ध्यान देने की जरूरत है। जरा सोचिए, एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी को भी चपरासी पद पर कार्य करने के लिए कुछ आवश्यक अहर्ताओं को पुरा करना पड़ता है। मसलन शैक्षणिक योग्यता। एक चपरासी को आफिस में झाडु लगाने एवं चाय नास्ता करानेक की नौकरी पाने के लिए कम से कम आठंवी पास होना होता है और उस पद पर काम करने के लिए उसे एक परीक्षा पास करनी होती है। लेकिन हमारे नेताओं को जिनके हाथ में पुरे देश एवं राज्य की बागडोर होती है, उनके लिए ऐसा कोई भी नियम या कायदा कानुन नहीं है। एक अनपढ़ व्यक्ति भी हमारे राज्य का मुख्यमन्त्री या देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है और पढ़े लिखे आफिसर उन्हें सल्युट करते है। हमारे नेताओं की सेवा समाप्ति की भी कोई नििश्चत उम्र नहीं होती। जबतक उनकी मर्जी है तबतक वे राजनीति कर सकतें है अथवा किसी भी पद पर बने रह सकते है। जबकि सरकारी कार्यालयों एवं प्राईवेट संस्थानों में साठ सालों के बाद ये कह कर कि उम्र के इस पड़ाव पर कार्य करने की क्षमता चुकने लगती है, उनकी सेवा समाप्त कर दी जाती है। जब एक आम आदमी की काम करने की क्षमता साठ सालों के बाद खत्म होने लगती है तो जरा बताईये नेताओ ने ऐसा कौन सा अमृत पी रखा होता है जो मृत्यु तक वे राजनीति में दखल देते रहते है या किसी न किसी पद पर आसिन रहते है। जब साठ साल के बाद वे लोग एक आफिस का काम ठीक ढंग से नही कर सकते तो हमारे नेता पुरे देश अथवा पुरे राज्य का काम कैसे कर सकते है। ये लोकतन्त्र है और लोकतन्त्र ``जनता का जनता के लिए और जनता के द्वारा किया जाने वाला शासन होता है। नेता और सरकारी कर्मचारी जनता के सेवक होते है। कोई भी सरकारी सेवक किसी भी तरह के घोटाले या गलत आचरण में पकड़ा जाता है तो उसे तत्काल सेवा से विमुक्त कर दिया जाता है एवं उसके वेतन भुगतान पर रोक लगा दी जाती हैै, जबतक कि उसके उपर दायर किए गए मुकदमें का फैसला न हो जाए। लेेकिन हमारे नेताओं के साथ ऐसा नही होता। लाखों करोड़ो डकारने के बाद भी वो शान से घुमते हैं एवं उन्हें वो सारी सहुलियतें मिलती रहती है जो उन्हें हासिल होती है, जबतक कि वो आरोपी सिद्ध नहीं हो जाते। जिस तरह से इस लोकतन्त्र रूपी मकान को सही सलामत रखने के लिए सरकारी कर्मचारी रूपी खंभे की जरूरत होती है, उसी तरह हमारे नेता भी इस लोकतत्रं के मजबुत खंभे है। फिर इनके लिए दो अलग अलग नीति क्यों! 

Friday, September 3, 2010

जन्मदिन

आज मेरे दोस्त का जन्मदिन है इस ब्लाग के द्वारा आप लोग भी उसे बधाई दें। धन्यवाद


आज के दिन एक परी दुनिया में आई थी
किसी की बगिया में कली बनकर मुस्काई थी।
सॉंवली रंगत और ऑंखे उसकी बड़ी बड़ी थी
बहुत ही मासुम थी वो पर थोड़ी सी नकचढ़ी थी।
मम्मी पापा की लाडली और भाईयों की जान थी
थोड़ी शरारती थी पर सारे घर की शान थी।
समय गुजरता गया और वो निखरती गई
बचपन ने साथ छोड़ा और वो जवॉं हो गई।
जब मैंने देखा उसे तो मुझे कुछ हो गया
उसकी प्यारी सी मुस्कुराहट में मैं कही खो गया।
उसका वो शरमाना और नज़रें उठाकर धीरे से मुस्कुराना
पहले तो -झगड़ना और फिर मान जाना।
सच कहंु तो मुझे भा गई और
मुझे पता भी न चला
कब चोरी से मेरे दिल में आ गई।
अब तो हालात ये है कि
हर जगह वो ही नज़र आती है।
जागते हुए तो छोड़ो
सपने में भी सताती है।
इतना तो पता है कि उसको भी मुझसे प्यार है
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ
उस वक्त का इन्तजार हैै।

Wednesday, September 1, 2010

ऐतबार

वो और होंगे जिन्हें मौत आ गई होगी,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।
कभी अपनों ने रूलाया,
कभी दुनिया ने सताया,
हंसते-हंसते अश्कों को पिया है मैंने,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।
अपनी तो आदत है कि,
हर किसी को अपना मान लेते हैं।
बाद में वो लोग ही,
हमारी जान लेते हैं।
हर किसी पे खुद से ज्यादा
ऐतबार किया है मैनें,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।