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Monday, August 25, 2014

दे कोई दर्द मुझे के फिर कोई गजल लिखुँ......,....


चित्र गूगल साभार


दे कोई दर्द मुझे के फिर कोई गजल लिखुँ
तेरी जुल्फ को घटा, तेरे हुस्न को कमल लिखुँ।

लुट गए ना जाने कितने मेरी फिर औकात क्या
तु बता, मैं नाम तेरे किसका-किसका कत्ल लिखुँ।

हारता रहा मैं हर बाजी जुनुन-ए-इश्क में
तुझको दाना समझुँ या खुद को मैं पागल लिखुँ।

है खलिश से भरी दास्तॉ मेरे इश्क की
वस्ल से शुरू करूँ या फिराक-ए-पल लिखुँ।
                  

7 comments:

  1. है खलिश से भरी दास्तॉ मेरे इश्क की
    वस्ल से शुरू करूँ या फिराक-ए-पल लिखुँ....beautiful

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  2. आपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है

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  3. दे कोई दर्द मुझे--फिर कोई गज़ल लिखूं.
    बहुत खूब

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  4. दे कोई दर्द मुझे के फिर कोई गजल लिखुँ.....वाकई
    हैं सबसे मधुर वह गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं

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