चित्र गूगल साभार
दे कोई दर्द मुझे के फिर कोई गजल लिखुँ
तेरी जुल्फ को घटा, तेरे हुस्न को कमल लिखुँ।
लुट गए ना जाने कितने मेरी फिर औकात क्या
तु बता, मैं नाम तेरे किसका-किसका कत्ल लिखुँ।
हारता रहा मैं हर बाजी जुनुन-ए-इश्क में
तुझको दाना समझुँ या खुद को मैं पागल लिखुँ।
है खलिश से भरी दास्तॉ मेरे इश्क की
वस्ल से शुरू करूँ या फिराक-ए-पल लिखुँ।
बड़ी दर्द भरी गजल ..
ReplyDelete:)
ReplyDeleteहै खलिश से भरी दास्तॉ मेरे इश्क की
ReplyDeleteवस्ल से शुरू करूँ या फिराक-ए-पल लिखुँ....beautiful
बहुत उम्दा ग़ज़ल १ धर्म संसद में हंगामा
ReplyDeleteक्या कहते हैं ये सपने ?
आपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteदे कोई दर्द मुझे--फिर कोई गज़ल लिखूं.
ReplyDeleteबहुत खूब
दे कोई दर्द मुझे के फिर कोई गजल लिखुँ.....वाकई
ReplyDeleteहैं सबसे मधुर वह गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं