आजकल कुछ ज्यादा व्यस्त हुॅ। यही वजह है कि आप लोगों की रचना नहीं पढ़ पा रहा हुॅ। कुछ दिनों के बाद आप लोगों के साथ फिर से जुड़ता हुॅ तब तक के लिए अपनी एक पुरानी पोस्ट को आप लोगों के पास छोड़े जा रहा हॅु।
ऊँचे-ऊँचे बने हुए घरों और महलों के,
शहर में आकर न जाने कैसे खो गए हम।
मिल सका न हमसे एक घर,
इसलिए फुटपाथ पे ही सो गए हम।
आधी रात को एक गाड़ी आई और
उसमें से कुछ लोग निकल आए।
बोले हमसे, फुटपाथ पे सोते हो
कुछ ना कुछ तो लेंगे हम,
और वो सारा सामान लेकर चले गए
उन्हें खडे़ बस देखते रहे हम।
सुबह लोगांे की नजरों से बचता हुआ
चला जा रहा था स्टेशन की ओर,
कि कुछ पुलिस वाले आए और
पकड़ कर ले गए थाने।
बोले सर, आतंकवादी को
पकड़ कर ले आए हम।
इतना सब होने के बाद
बस एक ही है गम।
मैं क्यों गया उस ओर,
जहाँ कोई इन्सां रहता नहीं
चारों तरफ दहशतगर्दी और लूटमार है।
लोग गाँवों को कहते हैं,
मैं कहता हूँ ये शहर ही बेकार है।