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Monday, August 29, 2011

जिंदगी की भी अजीब दास्तान होती है........


चित्र गूगल साभार



जिन्दगी की भी अजीब दास्तान होती है
हर गुजरता लम्हा मौत का फरमान होती है।

वक्त भी गर दगा दे तो कोई क्या करे
बहारों में भी चमन वीरान होती है।

धोखा और फरेब ही फितरत है जिनकी
ऐसे लोगों पर ही जिन्दगी मेहरबान होती है।

कहते हैं लोग के हम हबीब है तेरे
बुरे वक्त में ही उनकी पहचान होती है।

क्योंकर भरोसा किया हमनें उनपर जिनके
हाथों में खंजर और चेहरे पे मुस्कान होती है।

Saturday, August 27, 2011

अतंतः लोकतंत्र जीत गया.............

चित्र गुगल साभार


और अतंतः लोकतंत्र जीत गया। आजादी के बाद ये पहली बार हुआ कि कोई क्रांति सफल हुई। इसके पहले हम बाबा रामदेव का हाल देख चुके थे। आजादी के बाद ये पहली क्रांति है जो बिना खुन खराबे के सफल हो गया और जनता की जीत हुई। हालाकि जेपी आंदोलन भी सफल हुआ था पर उसमें जो दमन चक्र चला वो किसी हैवानियत से कम नही था। शायद इसलिए ये सफलता और भी मायने रखती है। जैसा कि अन्ना हजारे ने कहा है कि ये जीत अभी अधुरी है। जाहिर है इस जीत के साथ हमें भी कसम उठानी होगी कि न तो हम भ्रष्टाचार करेगें और न ही किसी को करने देगें। वरना अन्ना हजारे जी का बारह दिनों का उपवास और असंख्य लोगो का दिन रात की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। कानुन अगर बनता है तो तोड़ने वाले भी पैदा होते है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पहले भी कानुन था उसके बावजुद भी हमारा देश उपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो गया। जिसको जैसे मिला वो बहती गंगा में हाथ धोता रहा। तो ये मान लेना भी मुर्खता होगी कि लोकपाल कानुन बन जाने के बाद भ्रष्टाचार पुरी तरह से समाप्त हो जाएगा। भ्रष्टाचार का दानव पुरी तरह से उस दिन अपने आप समाप्त हो जाएगा जिस दिन इस देश का प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वाहण पुरी इमानदारी से करेगा। 

चित्र गुगल साभार

Saturday, August 20, 2011

जन लोकपाल बिल ही सही है।



जब से अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन शुरू हुआ है ऐसा लगता है भारत दो टुकड़ों में बॅट गया है। एक टुकडे़ में रह रहे लोग मानते है कि जो हो रहा है सही हो रहा है और दुसरे वाले लोग उसे गलत मानते है। उनकी भी अपनी दलीलें हैं मसलन ये संसंद की अवमानना है, कोई एक इंसान किसी भी तरह का कानुन बनाने के लिए बाध्य नही कर सकता, कानुन बनाना संसंद का काम है इत्यादि, इत्यादि। कॉग्रेस के लोगों का भी कहना है कि जब जनता ने उन्हे चुन कर संसंद में भेजा है तो उन्हें अपना काम करने देना चाहिए और अगर किसी को ये गलत लगता है तो वो जनता के बीच जाय और चुनाव में जीत कर आए। मतलब ये कि अगर जनता ने आपकों चुन लिया तो आप पॉच सालों तक कुछ भी कर सकते हैं और जनता को कुछ भी कहने का हक नही है। ‘साहब’ ये जनतंत्र है और जनतंत्र में अगर जनता आपकों सर माथे पर रखती है तो आपको वहॉ से गिरा भी सकती है। जो लोग कुर्सी तक पहुॅच जाते है वो अपने आप को खुदा समझने लगते है। आपके खिलाफ वही लोग तो खड़े है जिन्होनें आपको संसंद में भेजा है। ये चुनाव ही तो है। फर्क सिर्फ इतना है कि चुनाव में लोगों का मत पेटियों या इलेक्ट्रानिक्स मशीनों में बंद होता है और यहॉ खुलेआम मत प्रयोग हो रहा है। संसंद जनता का ही प्रतिरूप है। जनता आपको अपना प्रतिनीधि बना कर भेजती है ताकि आप उसके परेशानियों और सहुलियतों का ख्याल रखें। आप ये हमेशा ख्याल रखें कि आप जो वहॉ बोलते है वो आप नही 125 करोड़ भारतीय जनता की आवाज होती है। अगर वही जनता खुलेआम अपना हक मॉग रही है तो आपकों तकलीफ क्यों हो रही है।

मैं भी मानता हुॅ कि भ्रष्टाचार को जड़ से नही मिटाया जा सकता है। लेकिन इसे कम तो किया जा सकता है और इसे कम करने के लिए एक सख्त कानुन की बेहद आवश्यकता है। अभी का कानुन या फिर सरकारी लोकपाल बिल इतना लचीला है कि कोई भी इसका माखौल उड़ाता नजर आता है। अगर ऐसा नही है तो जरा बताएॅ कि कितने ऐसे नेता है जिन्हें भ्रष्टाचार मामले में सजा हुई है। कानुन सबके लिए समान होता है आप भी इससे अछुते नही है। और फिर अगर आपका दामन पाक साफ है तो इससे डरते क्यों है। 
भ्रष्टाचार को काबु में करने के लिए जन लोकपाल बिल ही सही है सरकारी लोकपाल बिल नही। इसलिए सरकार को अन्ना हजारे टीम से बात करनी चाहिए और करोड़ों भारतीयों के आवाज का सम्मान करना चाहिए।


Thursday, August 18, 2011

तुम्हारी कमी सी है


चित्र गुगल साभार



सारा जहॉ साथ है मेरे
पर तुम्हारी कमी सी है
भीगा भीगा है समॉ
और ऑखों में नमी सी है।
खुशियों के बादल छॅट गए
गमों का खुला आसमान है
मिट गई जीने के ख्वाहिश
दिल की दुनिया वीरान है।
हैरॉ है मेरी ऑखे
और हम परेशान है
हम तुम्हें समझ न पाए
हम कितने नादान है।
जिन्दगी और मौत के
फासले सिमट गए
बस चंद सॉसे थमी सी है।
सारा जहॉ साथ है मेरे
पर तुम्हारी कमी सी है
भीगा भीगा है समॉ
और ऑखों में नमी सी है।

Sunday, August 14, 2011

क्या सही मायने में हम आजाद है।


चित्र गुगल साभार


15 अगस्त यानि देश की आजादी का दिन। 15 अगस्त 1947 ही वो दिन था जब सही मायने में एक देश का उदय हुआ जिसका नाम भारत है। वरना इससे पहले तो ये कई टुकड़ो में बटॉ हुआ था। ये देश ना जाने कितने खुनी दास्तानों को अपने अदंर समेटे हुए है। कई सौ सालों की गुलामी के बाद यहॉ के लोगों ने आजादी की हवा में सॉस ली। बहुत अच्छा लगता है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले के प्राचीर पर झडोंत्तोलन के बाद राष्ट्र को संबोधित करते है। जगह जगह सरकारी महकमों में राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जाती है। हम आजादी के उन वीर सपुतों को याद करते है जिन लोगों ने अपने जान की परवाह नही करते हुए हमें इस मुकाम तक पहुॅचाया है। 

      लेकिन क्या हमें ऐसा नही लगता कि ये एक नाटक से ज्यादा कुछ नही है। माफ किजिएगा मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुॅचाना या किसी बहस को जन्म देना नही है। एक आजाद देश के नागरिक होने के नाते कुछ बातें दिल में आई है जिसे मैं यहॉ लिख रहा हुॅ। आजादी क्या है और इसके क्या मायने है? हमसे ज्यादा आप सभी बुद्धिजीवी लोग इस बात को बेहतर समझते होगें और आशा करता हुॅ कि हमें भी इससे अवगत कराने का कष्ट करेगें। लेकिन जहॉ तक मैं समझता हुॅ कि ये अभी भी एक विचारणीय प्रश्न हो सकता है कि क्या वास्तव में हम आजाद है? क्या सिर्फ देश की सीमाओं को सुरक्षित रखना आजादी है, क्या सिर्फ अपने तरीके से जीवन जीना आजादी है, या फिर आजादी का मतलब एक ऐसे राष्ट्र निर्माण से है जहॉ लोग खुशी से अपनी जिदंगी बसर कर रहे हो, जहॉ कोई भुखे पेट नही सोता हो, हरेक हाथ को काम हो, जहॉ सभी को बराबर का दर्जा दिया जाता हो। जरा याद करने की कोशीश किजिए भगत सिंह ने कहा था कि हमें एक ऐसे राष्ट्र को निर्माण करना है जहॉ सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हो, अमीर वर्ग गरीब वर्ग का शोषण नही करे। कहीं ऐसा न हो कि हम आजाद तो हो लेकिन सत्ता गोरे लोगों की हाथों से निकल कर भुरे लोगों के हाथों में आ जाए। 

       हम आजाद तो हो गए लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया हम आजादी के मुल्यों को नजरअदांज करते गए। आजादी के वो दिवाने किस्से कहानियों तक सीमित होकर रह गए। उनका अस्तित्व सिर्फ दुसरों को उपदेश देने के लिए रह गया उस पर अमल करने के लिए नही। अब 15 अगस्त का दिन हमारे अदंर कोई जोश पैदा नही करता बल्कि ये हमारे लिए एक सार्वजनिक छुट्टी का दिन होता है। इस दिन को हम तिरंगा फहरा कर एवं उसे सलामी देकर हम सिर्फ खानापूर्ति करते है। जहॉ तक मुझे लगता है कि 15 अगस्त हम इसलिए नही मनाते है कि हम इसके द्वारा उन वीर सपुतों के प्रति आभार प्रकट करते है या उनके विचारों को अमल करने की शपथ लेते है या फिर देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वोे के निर्वहन हेतू दृढ़ सकंल्प होते है बल्कि इसे हम एक रूटीन की तरह पुरा करते है।

       आज जो इंसान देशभक्ति, आजादी, सच्चाई और ईमानदारी की बातें करता है वो बेवकुफ कहलाता है और जो रिश्वत, भ्रष्टाचार एवं पैसे की बात करता है वो चालाक। आज के इस उपभोक्तावादी समाज में सभी ये जानते है कि देशभक्ति के जज्बे, ईमानदारी और सच्चाई से उनके यहॉ टेलिविजन, फ्रिज, लंबी-लंबी गाड़िया और एयरकंडीशन नही आ सकते। उसके लिए चाहिए पैसा और ईमानदारी से आप दो वक्त की रोटी जुटा सकते है ये सारी वस्तुए नहीं। कितने लोग है जो सही मायने में देश के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते है। आज लोगों की सच्ची श्रद्धा पैसों के प्रति है चाहे वो आम आदमी हो या फिर ससंद में बैठे नेता। वरना क्या वजह है कि आरक्षण जैसी फिल्म पर तो ये लोग हो हल्ला मचाते है और इसके प्रदर्शन पर रोक लगाते है पर जब बात काले धन की वापसी का हो तो सभी लोगों को सॉप सुंघ जाता है।

       गुलाम तो हम आज भी है अपनी ओछी मानसिकता के, अपने दब्बुपन के, लालच के। क्या फर्क है आज की आजादी और उस गुलामी में। देखा जाए तो ज्यादा कुछ नही। पहले अंग्रेजों ने इस देश को लूट कर खोखला किया और आज हम खुद ही इस देश को लुट रहे है। जिसकी जैसी सहुलियत वैसे ही लूटने में लगा हुआ है। पहले चंद गोरों ने इस देश पर राज किया आज चंद पैसे वाले इस देश पर राज कर रहे है। नियम, कायदा, कानुन पहले भी गरीबों के लिए थे और आज भी गरीबों के लिए ही है। अमीर और रसुख वाले लोग तो आज भी कानुन को अपने तरीके से ही इस्तेमाल करते है। जो रक्षक है वही भक्षक बना हुआ है। क्या हम अब भी यही कहेगें कि हम आजाद है।   

Friday, August 12, 2011

अपने हाथों युॅ न करों र्निवस्त्र मुझे......


चित्र गुगल साभार




रास्ते में मैने एक बुढ़िया को देखा बदहवास
ऑखों में था पानी और चेहरे से थी उदास।

पुछा कौन हो तुम और किसने किया तुम्हारा ये हाल
जिदंगी आगे और भी है जरा अपने आप को संभाल।

बोली - बेटा अपनी हालत तुमसे कैसे करू बयान
कैसे दिखाउॅ तुम्हे अपने बदन पे जख्मों के निशान।

मेरे चाहने वाले ही मेरी हालत के जिम्मेदार है
कैसे कहुॅ कि वो मेरे दुध के कर्जदार है।

मेरे बेटों ने ही मेरा ये हाल बनाया है
देखो किस तरह उन्होनें दुध का कर्ज चुकाया है।

मैने कहा चल मेरे साथ तेरा ये बेटा अभी जिदां है
पोछ ले तु ऑसु अपने क्यों खुद पे तु शर्मिदां है।

कहॉ ले जाओगे मुझे मैं एक लुटी हुई कारवॉ हुॅ
बेटा मै कोई और नही तेरी अपनी ही भारत मॉ हुॅ।

बख्श दो अब और न करो युॅ त्रस्त मुझे
अपने हाथों युॅ न करों र्निवस्त्र मुझे।  

Saturday, August 6, 2011

सच और झुठ


चित्र गुगल साभार



बहुत अजीब लगता है
जब लोग
जिदंगी की बात करते है।
जबकि
हर गुजरता लम्हा
हमें मौत के करीब
ले जाता है।
आखिर लोग
सच से इतना
दुर क्यों भागते है।
या फिर
सच सुनने की
हमें आदत ही नही है।
क्यों हम ख्वाब को
हकीकत समझ
उसपर विश्वास करते है।
हम क्यों
उसके ही करीब
रहना चाहते है जो
एक न एक दिन
हमें छोड़कर चला जाएगा।
शायद इसलिए ही
लोग कहते है कि
सच बहुत ही
कड़वा होता है और
झुठ मीठा।

Monday, August 1, 2011


कुछ दिनों पहले ये ग़ज़ल मेरे मेल पर आया हुआ था। ये रचना किसकी है मुझे नही मालुम। मैं उसे हु ब हु यहॉ दे रहा हुॅ।



तु अगर मेरा नही तो फिर ऐसा क्यूॅ है
मेरी ऑखों से तेरे ख्वाब का रिश्ता क्यूॅ है।

रास क्यूॅ आता नही मुझको खुशी का मौसम
गम का बादल मेरी आखों से बरसता क्यूॅ है।

गम के दरिया के उस पार है खुशी का साहिल
इश्क करता है तो रूसवाई से डरता क्यूॅ है।

बेवफाई का हुनर भी है वफादारी में
इक चेहरे पे तेरे दुसरा चेहरा क्यॅू है।

उम्र भर जिसकी मोहब्बत पे मुझे नाज रहा
सोचता हु कि वही आज पराया क्यूॅ है।