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Saturday, April 30, 2011

दिल का दर्द.............



चित्र गुगल साभार




दिल के दर्द को जब हम संभाल न पाए
अश्क बन कर ये मेरी आखों में उतर आए।

मुस्कुराते हैं हम जमाने के सामने
कहीं मेरा प्यार रूसवा न हो जाए।

रेत पर लिखी तहरीरों को मिटाने से क्या फायदा
हाथ में बनी लकीरों को किस तरह मिटाए।

आना मेरी मजार पर इजाजत है तुम्हें
जब जिस्म से मेरी रूह फना हो जाए।

Friday, April 22, 2011

एक तमन्ना..............



चित्र गुगल साभार





मेरी दुनिया में आकर मत जा
तेरे बिना मैं जी नही पाउगॉ।
तेरी जुदाई का एहसास रूलाती है मुझे
तुझसे बिछड़कर मैं तो मर जाउगॉ।
तेरे लिए शायद मैं कुछ भी नही
कैसे कहुॅ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
मेरी इबादत भी तुम हो
और तुम ही मेरे खुदा हो।
चाहत नहीं मुझे तेरे जिस्म की
और ना ही कोई तमन्ना
कि मुझे गले से लगाओ।
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
अपनी नजरों से न हमें गिराओ।


Tuesday, April 12, 2011

क्या खत्म होगा भ्रष्टाचार ........

चित्र गुगल साभार

अन्ना हजारे का आंदोलन सफल रहा। सरकार झुक गई और सत्य की विजय हुई। जिस तरह से समस्त भारतवासियों ने उनका साथ दिया सचमुच देखने लायक था। इन सबों के बाद प्रश्न ये उठता है कि लोकपाल विधेयक को पारित करने के बाद क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ? हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। शायद नही। क्योकि इस भ्रष्टाचार के जन्मदाता ही हम है। हम ही उसे पालते पोसते है। आज देश का लगभग हर नागरिक भ्रष्ट है। भ्रष्टाचार का मतलब होता है भ्रष्ट आचरण। किसी भी गलत तरीके से सिर्फ धन अर्जित करना ही  भ्रष्टाचार नहीं कहलाता है बल्कि कानुन के विरूद्ध किया जाने वाला हर कार्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। क्या सिर्फ वे ही भ्रष्ट हैं जिन्होंने सियासत में रहते हुए लाखों करोड़ों का घपला किया। शायद नहीं। आज हम अपने चारो तरफ नजर दौड़ाए तो हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखाई पड़ेगा। पुलिस वालों की अवैध वसुली, पैसे लेकर किसी भी केस को कमजोर करना, राशन की दुकानों में मिलावट करना और कम तौलना, सरकारी कर्मियों द्वारा किसी भी काम के बदले पैसे लेना, गलत कामों को करवाने के लिए आम जनता द्वारा पैसे का भुगतान करना, आम जनता द्वारा टैक्स चोरी करना। कहॉ नही है भ्रष्टाचार। हम सभी लोग किसी न किसी तरह से भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डुबे हुए है। अगर लोकपाल विधेयक पारित हो भी गया तो क्या ये सब खत्म हो जायेगा। नही। क्योंकि हम कहते कुछ और हैं और कर कुछ और रहे है। हम भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्लाते तो है मगर उसे खत्म करने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। हमें दूसरों की गलतियॉ तो नजर आ जाती है पर अपनी खॉमियों को हम नजरअदंाज कर जाते है। हमारी सोच शायद इस आंदोलन के पहले भी वही थी और आज भी वही है कि हमारे बदलने से ही सिर्फ भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा या फिर एक के सही होने से देश में भला कौन सी क्रांति आ जाएगी। अन्ना हजारे जी के साथ अनशन करके या फिर इसके विरोध में मोमबत्तियॉ जलाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला जबतक हम अपने आप को पुरी तरह से नहीं बदलते। हमें किसी के विरूद्ध कुछ भी कहने का हक नहीं है जब तक हम पुरे पाक साफ न हो। हम में और उनमें फर्क सिर्फ इतना है कि कोई लाखों करोड़ो की हेरा फेरी कर रहा है और हम हजारों की। पर हेरा फेरी तो सभी कर रहे है। हमारा देश कई वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुआ। क्योंकि हमने पुरी इमानदारी और निष्ठा के साथ इसके विरूद्ध आवाज उठाई। लोगों के दिलों में बस एक ही जज्बा था आजादी। अगर वो लोग भी सिर्फ आजादी आजादी चिल्लाते और पुरी निष्ठा के साथ एक नहीं होते तो क्या हमें आजादी मिलती। शायद नही। इसी तरह से अगर हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति पानी है तो उसी निष्ठा और जज्बें के साथ हम सभी को बदलना होगा। तब जाकर हम एक भ्रष्ट मुक्त भारत की कल्पना कर सकते है और आने वाली पीढ़ी को एक भ्रष्ट मुक्त माहौल दे सकते है। अन्ना हजारे ने आवाज लगाई है एक रास्ता दिखाया है हमें ईमानदारी से उस रास्ते पर बढ़ना होगा। वरना कितने ही अन्ना हजारे क्यों न आ जाए भ्रष्टाचार कभी भी खत्म नहीं हो पाएगा। 

Friday, April 8, 2011

आज फिर एक गॉधी आया है........





ना चमकी तलवार कहीं
न उसने बंदुक चलाया है
भारत मॉ की लाज बचाने 
आज फिर एक गॉधी आया है।
चेहरे पर लेकर तेज वही
जन जन में विश्वास जगाया है
भारत मॉ की लाज बचाने 
आज फिर एक गॉधी आया है।
अनशन है हथियार उसका
अहिंसा की ज्योत जलाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।


उसकी एक पुकार पर देखो
जन सैलाब उमड़ कर आया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।
बहुत हुआ अब हम नही सहेगें
भ्रष्टाचार की जो काली छाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है।
खत्म करेगें खेल भ्रष्टों का
अन्ना ने कसम उठाया है
भारत मॉ की लाज बचाने
आज फिर एक गॉधी आया है। 



Tuesday, April 5, 2011

इन्तजार

कुछ दिनों से बहुत व्यस्त हुॅ और शायद ये व्यस्तता कुछ दिन तक और रहेगी। इसलिए मै आप सभी की रचनाओं को समय नहीं दे पा रहा हुॅ। आशा है आपलोग अन्यथा नहीं लेगे और हमें माफ करेगें। जैसे ही व्यस्तता समाप्त होगी आपलोगों के समक्ष फिर से हाजिर हो जाउगॉं। तब तक के लिए एक पुरानी रचना जो पिछलें साल अगस्त महीनें में ब्लाग पर डाला था एक बार फिर वही दोबारा डाल रहा हुॅ। 





सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,

सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

यूं तो बहुत है गुल इस चमन में,
पर जिस पर नज़र गई,
वो किसी और का हमराज था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

उनकी हाथों का खंजर जो,
भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
मेरे उस जिगर को,
कभी उनसे ही प्यार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।