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Sunday, November 10, 2013

जख्म का क्या है कभी तो ये भर जाएगा...........


चित्र गूगल साभार






जख्म का क्या है कभी तो ये भर जाएगा
तेरे सितम का ऐ सितमगर निशाँ छोड़ जाएगा।

अश्क है, दर्द है और गम-ए-तन्हाई है
ईश्क है, देख अभी क्या-क्या गुल खिलाएगा।

अब्र का रिश्ता धरा से इस कदर है लिल्लाह
देखकर प्यासी उसे वो खुद ही बरस जाएगा।

बिक गया इन्साँ यहाँ कौड़ियों के दाम में
तेरे इस जहाँ में अब पत्थर ही पूजा जाएगा।

नींद और आँखों में अब दुश्मनी सी हो गई
ख्वाब इन आँखों में तेरे कौन अब सजाएगा।

Friday, October 25, 2013

एक औरत हुँ मैं........

चित्र गूगल साभार




रचयिता हुँ मैं
तुम्हारी जिदंगी की।
मेरी कोख में ही तुम्हारी
नई कोपलें सृजित होती है।
सींचती हुँ  उन्हें
मैं अपने रूधिर से।
रंग भरती हुँ  मैं
तुम्हारी बेरंग जिन्दगी में।
कभी मॉं बनकर
तुम्हें दुलारती हुँ
कभी बहन बनकर
तुम्हें सवॉंरती हुँ ।
तो कभी बेटी बनकर
तुम्हारी जिदंगी को परिपूर्ण करती हुँ ।
फिर भी
जन्म-जन्मातंर तुम्हारे हाथों
प्रताड़ित हुई हुँ  मैं।
आखिर क्यों
क्षणिक आवेश में आकर
हैवानियत से भरा
कुकर्म करते हो।
कभी जन्म से पहले ही
हमारा कत्ल करते हो।
तो कभी
हमारी अस्मत और
संवेदनाओं को
तार-तार करते हो।
कभी दहेज के नाम पर
हमें जिंदा जलाते हो।
कभी अपनी हवस की खातिर
हमारा व्यापार करते हो।
शायद तुम्हें नही पता
तुम अपने हाथों ही
अपनी जड़ें काट रहे हो।
अगर मैं ना रही
तो बिखर जाओगे।
फिर मॉं, बहन, बेटी
और पत्नी
कहॉं से पाओगे।
आखिर कबतक समझोगे तुम
देवी हुँ 
सवर्दा पूजनीय हुँ  मैं
हॉं, एक औरत हुँ  मैं।

Tuesday, September 17, 2013

हर शख्स हमें यहाॅ बदनाम मिलता है।











कई कोशीशों के बाद जिंदगी को एक मकाम मिलता है
ये कलियुग है दोस्त शायद ही यहाॅ कोई राम मिलता है। 

जज्ब-ए-दुआ-औ-खैर बन चुकी है किस्सा अतीत का
जुल्म-ओ-नफरत से भरा दिल यहाॅ सरेआम मिलता है।

ये कौन सा शहर है कोई बताए हमें
हर शख्स हमें यहाॅ बदनाम मिलता है।

लगता है हवाओं ने बदल दिया है रूख अपना
उनका अब कहाॅ कोई पैगाम मिलता है।