कई कोशीशों के बाद जिंदगी को एक मकाम मिलता है
ये कलियुग है दोस्त शायद ही यहाॅ कोई राम मिलता है।
जज्ब-ए-दुआ-औ-खैर बन चुकी है किस्सा अतीत का
जुल्म-ओ-नफरत से भरा दिल यहाॅ सरेआम मिलता है।
ये कौन सा शहर है कोई बताए हमें
हर शख्स हमें यहाॅ बदनाम मिलता है।
लगता है हवाओं ने बदल दिया है रूख अपना
उनका अब कहाॅ कोई पैगाम मिलता है।
आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 19/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
कई कोशीशों के बाद जिंदगी को एक मकाम मिलता है
ReplyDeleteये कलियुग है दोस्त शायद ही यहाॅ कोई राम मिलता है। ..
बहुत खूब ... अच्छा शेर है ... पर अगर इन्सान मन से राम बन सके तो इस कलयुग में भी हर किसी को राम मिलेंगे ...
वाह बहुत खूब। ………।बदे दिनों बाद आपकी कोई पोस्ट नज़र आई है आपके फोटो को देख के लगता है कि डोले-शोले बनाने में बिजी थे :-))
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteसुंदर रचना!
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर.....
ReplyDeleteकई कोशीशों के बाद जिंदगी को एक मकाम मिलता है
ReplyDeleteये कलियुग है दोस्त शायद ही यहाॅ कोई राम मिलता है।
बहुत सुन्दर,राम खुद भी तो अब यहाँ कही नहीं रहना चाहता.
अपनी संस्कृति अपने संस्कार ही हम खो चुके, व न ही अब पारिवारिक आदर्शों में उनका कोई स्थान है खुद भी बदनामी के दामन से बचे रहेंगे,अच्छा है राम को परेशां न करो.
बहुत सुंदर
ReplyDelete