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Monday, February 28, 2011

दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है


चित्र गुगल साभार



कब ढली शाम और कब हुई सहर
मुझे अपना भी कोई होश नहीं
और न जमाने की फिकर
हर लम्हा तेरी यादों में खोये रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
तपते हुए सहरा में हम
नंगे पॉव मीलों चलते है
जख्मों का असर अब होता नही
दर्द में भी मुस्कुराते रहते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।
अपने गिरेबॉं में झॉक कर देखो लोगों
जहॉ नफरतों के बीज पलते है
हाथ तो मिलते है सभी के यहॉ
पर लोगों के दिल कहॉ मिलते है
दुनिया वाले अब हमें पागल कहते है।

Tuesday, February 22, 2011

जिदंगी के रास्ते




है पुरख़तर (मुश्किल) जिदंगी के रास्ते
जरा सभंल कर चला किजिए।

बॉटिए अमृत सभी को 
और खुद गरल पिया किजिए।

भरते हैं जो नफरत दिलों में
उनके लिए ही दुआ किजिए।

प्यार ही प्यार होगा हर दिल में
दुश्मनों को भी गले लगा लिजिए।

न सोचिए क्या होगा अंजाम ए मोहब्बत
हर दिल में चराग ए इश्क जला दिजिए।

मिल जाएगी सारे जहॉ की खुशियॉ
गैरों के लिए खुद को मिटा दिजिए।

Thursday, February 17, 2011

अलविदा





नई दुनिया और नए लोग मुबारक हो तुम्हे
खुशियों की नई सुबह मुबारक हो तुम्हे।
ऑंसुओं के रूप कई तरह के होते है
हम खुश हैं इसलिए तो रोते है।
अश्कों से अपना नाता पुराना है
भरी-भरी आँखों के साथ हमें मुस्कुराना है।
गम और मैं बचपन से साथी है
खुशियाँ क्या है बस आती और जाती है।
कभी गमों का साया तेरे करीब न आए,
हर वक्त खुश रहे तू और सदा मुस्कुराए।
और क्या लिखँू ज्यादा लिख नही पाऊगाँ
बहुत देर से रोके बैठा हूँ अश्कों को
अब और नहीं रोक पाऊगाँ।
अश्क गिरे पन्नों पर तो अक्षर बिखर जाएगें
रोते हुए हम आपको अलविदा भी न कह पाएगें।

Thursday, February 10, 2011

कब तक करू सब्र के तुम आओगे







कब तक करू सब्र के तुम आओगे
एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।

जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।

Sunday, February 6, 2011

अधुरी ख्वाहिशे








चलते-चलते यूॅ ही मैंने
पीछे मुड़कर देखा
दूर दूर तक तुम
कहीं नही थी।
नजर आए भी तो
कुछ अधुरी ख्वाहिशे
और
कुछ कुचले हुए जज्बात।
तेरी बेवफाई के
पॉवों से घायल
वफा की राहों में
यहॉ वहॉ बिखरे हुए।

Thursday, February 3, 2011

जज्बा


कल जब मैने ये रचना डाली थी तो कुछ यांत्रिक गड़बड़ी के कारण कुछ लोगों के कम्प्युटर पर आ रही थी और कुछ लोगों के कम्प्युटर पर नहीं। इसलिए आज मैंने इसे फिर से पोस्ट किया है।



वो इन्सॉ ही क्या जिसमें
मुश्किलो से लड़ने का जज्बा न हो
लहरें फिर से वापस आती है
पत्थरों से टकराने के बाद।

कबतक रोकेगी रास्ता सच का
ये झुठ और फरेब की दीवारें
बड़े शान से निकलता है सुरज
हर घने कोहरे के बाद।

मंजिले भी सर झुकाती है
बुलदं इरादों के आगे ‘अमित’
रस्सीयॉ भी छोड़ जाती है निशान
पत्थरों पर आने जाने के बाद।