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Thursday, February 10, 2011

कब तक करू सब्र के तुम आओगे







कब तक करू सब्र के तुम आओगे
एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।

जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।

20 comments:

  1. अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
    मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

    kya baat hai! nayab !!

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  2. कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
    एक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं
    अमित जी ,
    बहुत सुन्दर शेर ! चित्र का संयोजन क्या कहना !

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  3. वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
    तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।
    ehsas ki sunder abhivaykti

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  4. वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
    तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है...

    बहुत ही सुन्दर !

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  5. कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
    एक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं

    बेहतरीन प्रस्तुति।

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  6. जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
    इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

    अच्छा लगा शेर , मुबारक हो

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  7. कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
    एक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं

    जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
    इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

    bahut khoob.....likhte rahiye!

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  8. खूब लिखा है आपने.
    कब तक करू सब्र के तुम आओगे
    एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।
    सलाम

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  9. किसी एक शेर की तारिफ क्या करू यहाँ तो सारे शेर ही बेहतरीन है
    और हाँ आज फोटो भी बहुत अच्छा लगा
    शुभकामनाये

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  10. जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
    इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।

    अच्छे ख़यालात...बेहतरीन ग़ज़ल।

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  11. .वाह, अच्छा लगी आपकी ये रचना.

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  12. बहुत ही खूबसूरत रचना.

    सर!एक छोटा सा सुझाव दूँगा यदि आप उचित समझें तो अंत में उर्दू शब्दों के अर्थ भी दे दिया करें.वैसे तो समझ में आ जाता है पर ऐसे में थोडा ज्ञानवर्धन भी हो सकता है.

    सादर

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  13. यशवंत जी आपकी सलाह के लिए शुक्रिया। आगे से इस बात का ख्याल रखुगॉ। धन्यवाद।

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  14. अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
    मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

    वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
    तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है

    ecxellent

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  15. वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
    तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है

    वाह..वाह, अच्छा लगी आपकी रचना.

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  16. अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
    मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।

    वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
    तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।

    बहुत खूब .सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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