कब तक करू सब्र के तुम आओगे
एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।
जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।
अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
मुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।
अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
ReplyDeleteमुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।
kya baat hai! nayab !!
कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
ReplyDeleteएक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं
अमित जी ,
बहुत सुन्दर शेर ! चित्र का संयोजन क्या कहना !
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
ReplyDeleteतर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।
ehsas ki sunder abhivaykti
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
ReplyDeleteतर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है...
बहुत ही सुन्दर !
कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
ReplyDeleteएक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं
बेहतरीन प्रस्तुति।
जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
ReplyDeleteइन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।
अच्छा लगा शेर , मुबारक हो
कब तक करूँ सब्र कि तुम आओगे
ReplyDeleteएक एक पल में यहाँ सदियाँ गुज़र जाती हैं
जेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
इन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।
bahut khoob.....likhte rahiye!
खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteकब तक करू सब्र के तुम आओगे
एक एक पल में यहॉ सदियॉ गुजर जाती है।
सलाम
किसी एक शेर की तारिफ क्या करू यहाँ तो सारे शेर ही बेहतरीन है
ReplyDeleteऔर हाँ आज फोटो भी बहुत अच्छा लगा
शुभकामनाये
bahut badhiyaa //
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivyakti .badhai.
ReplyDeletebeuttifule and touching lines......... so nice.
ReplyDeleteजेहन में ताजा है तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
ReplyDeleteइन ऑखों में कोई शै कहॉ जगह पाती है।
अच्छे ख़यालात...बेहतरीन ग़ज़ल।
.वाह, अच्छा लगी आपकी ये रचना.
ReplyDeletebadhiya rachna hai.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteसर!एक छोटा सा सुझाव दूँगा यदि आप उचित समझें तो अंत में उर्दू शब्दों के अर्थ भी दे दिया करें.वैसे तो समझ में आ जाता है पर ऐसे में थोडा ज्ञानवर्धन भी हो सकता है.
सादर
यशवंत जी आपकी सलाह के लिए शुक्रिया। आगे से इस बात का ख्याल रखुगॉ। धन्यवाद।
ReplyDeleteअदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
ReplyDeleteमुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है
ecxellent
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
ReplyDeleteतर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है
वाह..वाह, अच्छा लगी आपकी रचना.
अदावत क्या थी जो ये सजा दी तुमने
ReplyDeleteमुझसे ही प्यार और मुझसे ही पर्दादारी है।
वो विसाल-ए-खुशी और ये फ़िराक-ए-गम
तर्फ़ पर अश्कों की बुंदे झिलमिलाती है।
बहुत खूब .सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
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