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Monday, March 26, 2012

कौन सच्चा और कौन झूठा ..............


सुबह सुबह घर में कलह हो गई और इसका बहुत बड़ा खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा। श्रीमति जी ने सबेरे-सबेरे चाय देने से मना कर दिया। अनमने ढंग से स्टेशन की ओर चल पड़ा। वहॉ चाय की चुस्कियों के साथ अखबार का जायका ले रहा था कि दूर से दुखिया आता दिखाई पड़ा। वो हमारे घर से थोड़ी ही दुरी पर अपने परिवार के साथ एक झोपड़े में रहता है। थोड़ा मुहफट है इसलिए मैं हमेशा उससे बचने की कोशीश करता हूँ। हमेशा की तरह उससे बचने के चक्कर में जल्दी-जल्दी चाय पीने लगा और अपना मुहँ जला बैठा। वो आते ही धमक पड़ा - ‘‘चन्द्रा बाबु आप एक नबंर के झुठे हैं‘‘।

मेरे तो होश उड़ गए। मैने कहा - ‘‘भईए‘‘ लक्ष्मी से भेंट नही और दरिद्र से झगड़ा। कई दिनों से हमारी मुलाकात नहीं हुई और तुम कहते हो कि मैने झुठ बोला।

उसने आवेश में बोला - अरे आप ही न कहते थे जी कि ‘‘लोकतंत्र में जनता राजा होती है और नेता एवं सरकारी अफसर जनता के सेवक‘‘।

मैने कहा - हॉ बात तो सोलह आने सही है फिर मैं झुठा कैसे हुआ।

दुखिया बोला - मतलब कि हम राजा है और वो सब हमारे नौकर। मैने कहा - हॉ एकदम सही। अब जाकर एकदम सही समझा।

क्या खाक सही समझा। वो तैश में बोला। मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैने उसे शांत करने की कोशीश की और कहा - आखिर क्या बात हो गई इतने गुस्से में क्यो हो। पर वो शांत होने के बजाय और भड़क गया और बोला - आपने कभी किसी राजा को इस हालात में देखा है न पहनने को कपड़ा और न खाने को रोटी। उस पर तुर्रा ये कि 39 रूप्ये रोज कमाने वाला इसांन गरीब नही कहलाएगा।

मैं काठ का उल्लु बना बस उसे देखता रहा। मुहँ से एक शब्द भी नही निकला। ऐसा लगा जैसे जबान को लकवा मार गया हो।

वो उसी तरह बोलता रहा। आप कहते हैं कि पुलिस हमारी रक्षा के लिए है। ठीक उसी तरह से जिस तरह से सैनिक राजा की रक्षा करते है। क्या खाक हमारी रक्षा करेगें उल्टे हमें उनके आगे हाथ जोड़कर खड़ा रहना पड़ता है और उनकी जेबें गरम करनी पड़ती है। वरना पता नहीं किस केस में अदंर कर दे।

मैं अजीब सी मुसीबत में फॅस गया। अपनी हालत तो सॉप छछुदंर वाली हो गई थी। न उगलते बन रहा था और न निगलते। पता नही आज सुबह सुबह किसका चेहरा देखा था कि घर में बीवी से झगड़ा हुआ और यहॉ ये मेरी जान खा रहा है।

वो फिर मुझ पर चढ़ बैठा।

उसने कहा - अभी कल की ही बात ले लिजिए। अन्ना हजारे के समर्थकों ने जरा सा कुछ कह क्या दिया सारी ससंद ही गरम हो गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने सभी नेताओं को गरम तवे पर बैठा दिया हो। वो सारे के सारे निदां प्रस्ताव की मॉग कर रहे है।

मैं कुछ बोलने ही जा रहा था कि उसने एक और फायर कर दिया।

अब आप ही बोलिए इस लोकतंत्र में जो राजा है उसे बोलने का कोई हक नही और जो नौकर है वो जब चाहे जैसे चाहे अनाप-शनाप बोलता रहे। उनकी बिरादरी वालों ने जब शहीद सैनिक और उनके परिजनों को अपमानित किया तो क्यों नही उन्हे उनके पद से हटा दिया गया। दिग्गी राजा जैसे लोग जब चाहे जैसे चाहे तब मुहँ रूपी तोप से दनादन गोले दागते रहे और हम सुनने के अलावा कुछ नहीं करे। ये सारे लोग हमारे ही कमाए रूप्ये से ऐश करते रहें और हम दाने दाने को मोहताज रहे। क्या इसे ही राजा कहते है।

बताईए आप ‘‘हैं कि नही एक नबंर के झुठे‘‘।

चाय वाले की तरफ पैसे लगभग फेंकते हुए मैनें वहॉ से जो दुड़की लगाई कि सीधे घर आकर ही दम लिया। पीछे दुखिया आवाज लगाता रहा - ‘‘अरे सर सुनिये तो कहॉ जा रहे हैं‘‘।
सोफे पर बैठा अपनी उखड़ी सॉसों को नियंत्रित करता हुआ मैं सोचने लगा कि क्या वास्तव में मैं झुठा हूँ और दुखिया सच्चा। आप सभी की क्या राय है।

Tuesday, March 13, 2012

हैं कितने कमाल के हम...........


चित्र गूगल साभार 




नेता जी] नेता जी एक बात बताईये
ये मामला क्या है जरा हमें भी समझाईये।

मंत्री बनने से पहले आपके घर में फॉके बरसते थे
धोती तो क्या आप लंगोट को भी तरसते थे।

ये कैसी आपने जादू की छड़ी घुमाई है
हम सभी को छोड़ लक्ष्मी आपके द्वार आई है।

हम तो अभी भी पैदल ही सफर करते है
आप तो अब जमीं पर पॉंव भी नही रखते है।

नेता जी बोले धत्त पगले क्यों मजाक करता है
हम शरीफों पर क्यों बेवजह दोष मढ़ता है।

हम तो जनता के सेवक है जनता का दिया खाते है
जो बच जाता है उसे दुसरे देश **स्वीस बैंक** भिजवाते है।

हम तो बसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते है
इसलिए तो देश की संपत्ति को अपना समझते है।

सादगी और सद्भावना की जिंदा मिसाल है हम
अब समझ में आया कि हैं कितने कमाल के हम।