जख्म का क्या है कभी तो ये भर जाएगा
तेरे सितम का ऐ सितमगर निशाँ छोड़ जाएगा।
अश्क है, दर्द है और गम-ए-तन्हाई है
ईश्क है, देख अभी क्या-क्या गुल खिलाएगा।
अब्र का रिश्ता धरा से इस कदर है लिल्लाह
देखकर प्यासी उसे वो खुद ही बरस जाएगा।
बिक गया इन्साँ यहाँ कौड़ियों के दाम में
तेरे इस जहाँ में अब पत्थर ही पूजा जाएगा।
नींद और आँखों में अब दुश्मनी सी हो गई
ख्वाब इन आँखों में तेरे कौन अब सजाएगा।
अच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह।
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय अमित जी-
आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteअच्छी रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट काम अधुरा है
नींद का रिश्ता उनसे ऐसा है ... वो नहीं आते तो नींद नहीं आती ख्वाब नहीं आते ...
ReplyDeleteलजवाब शेर हैं सभी ...
वाह ! वाह ! बेहतरीन |
ReplyDeletevery nice mamaji
ReplyDeleteउत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी