इस ब्लाग की सभी रचनाओं का सर्वाधिकार सुरक्षित है। बिना आज्ञा के इसका इस्तेमाल कापीराईट एक्ट के तहत दडंनीय अपराध होगा।

Tuesday, April 5, 2011

इन्तजार

कुछ दिनों से बहुत व्यस्त हुॅ और शायद ये व्यस्तता कुछ दिन तक और रहेगी। इसलिए मै आप सभी की रचनाओं को समय नहीं दे पा रहा हुॅ। आशा है आपलोग अन्यथा नहीं लेगे और हमें माफ करेगें। जैसे ही व्यस्तता समाप्त होगी आपलोगों के समक्ष फिर से हाजिर हो जाउगॉं। तब तक के लिए एक पुरानी रचना जो पिछलें साल अगस्त महीनें में ब्लाग पर डाला था एक बार फिर वही दोबारा डाल रहा हुॅ। 





सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,

सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

यूं तो बहुत है गुल इस चमन में,
पर जिस पर नज़र गई,
वो किसी और का हमराज था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

उनकी हाथों का खंजर जो,
भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
मेरे उस जिगर को,
कभी उनसे ही प्यार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

12 comments:

  1. जब वो मिला मुझे तो पता चला,
    वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

    इस बात को इतने अच्छे से आपने प्रस्तुत किया कि जवाब नही

    हम आपका इंतजार करेंगें

    ReplyDelete
  2. सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,
    सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
    जब वो मिला मुझे तो पता चला,
    वो मेरी ही मौत का तलबगार था।
    नया हो पुराना मगर है तो सोना, बहुत खुबसूरत

    ReplyDelete
  3. अब जल्दी आईये..इन्तजार करते हैं. :)

    ReplyDelete
  4. उनकी हाथों का खंजर जो,
    भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
    मेरे उस जिगर को,
    कभी उनसे ही प्यार था।..bhut hi khubsurat panktiya...

    ReplyDelete
  5. बहुत गहरी बात कर दी आपने... बहुत खूब!

    ReplyDelete
  6. बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।

    ReplyDelete
  7. उनकी हाथों का खंजर जो,
    भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
    मेरे उस जिगर को,
    कभी उनसे ही प्यार था.

    uf, ye bewfaai.

    ReplyDelete
  8. Aksar log ye gunaah karte hain.. chahat ka yakeen dila kar tabaah karte hain :(

    ReplyDelete
  9. प्रिय बंधुवर अमित चन्द्र जी
    सस्नेहाभिवादन !

    सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,
    सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
    जब वो मिला मुझे तो पता चला,
    वो मेरी ही मौत का तलबगार था।


    अरे … ऐसी क्या बात रही ?
    :) हूंऽऽऽ … कविता की बात है !
    अच्छा काव्य-प्रयास है … लगे रहें , शुभकामनाएं हैं … !

    नवरात्रि की शुभकामनाएं !

    साथ ही…

    नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

    चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
    संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

    *नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  10. बेवफाई को अलग ही अंदाज़ में प्रस्तुत किया है आपने.

    ReplyDelete
  11. अमित जी ,

    रचना और चित्र (हथेली में दिल ) अन्दर तक झकझोर गए |

    ReplyDelete