चित्र गुगल साभार
जानता हुॅ मैं
तुम मुझसे प्यार नहीं करती।
उस दिन से ही
जब तुम
मेरी जिदंगी में आई थी।
इशारों ही इशारों में
कई बार
तुमने कोशीश भी की
मुझे बताने की।
बावजुद इसके
मैं तुमसे बेइन्तहॉ
मोहब्बत करता हॅु।
उस परवाने की तरह
जो जानता है कि
शमॉ की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
उस परवाने की तरह
ReplyDeleteजो जानता है कि
शमॉ की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
kya baat hai ! aamin !!
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteहोली की सपरिवार रंगविरंगी शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
शमांकी किस्मत ही कुछ ऐसी है अच्छी लगी, धन्यवाद
ReplyDeleteमेरी जिदंगी में आई थी।
ReplyDeleteइशारों ही इशारों में
कई बार
तुमने कोशीश भी की
मुझे बताने की।
समर्पित प्यार की भावना को बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है ...आपका आभार
यही है मोहब्बत। जानकर भी अनजान रहना। अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteसच्ची मोहब्बत को बड़े ही खूबसूरत लफ्ज दियें हैं आपने. आभार.
ReplyDeleteयही तो प्यार होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
तू करे ना करे तुझे प्यार करता रहूँगा
चाहे तू ना भी आये इंतजार करता रहूँगा
हार्दिक शगुन पर आपका स्वागत है
हार्दिक शगुन
क्या बात है सर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
सादर
उस परवाने की तरह
ReplyDeleteजो जानता है कि
शमॉ की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
यही तो प्यार होता है... सब कुछ जानकर भी अनजाना सा..
बहुत सुन्दर .......
'मैं तुमसे बेइन्तहां
ReplyDeleteमोहब्बत करता हूँ
उस परवाने की तरह
जो जानता है कि
शमा कि आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिंदगी की
आखिरी शाम हो जाएगी'
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बहुत सुन्दर अमित जी , यही तो शाश्वत सच्चा प्रेम है !
प्यार अक्सर एक तरफ़ा ही होता है...
ReplyDeleteBahut sundar.
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
bhut hi khubsurat rachna hai...
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteमुहब्बत की पाकीज़गी एक तरफ़ा होने में ही है.
सलाम.
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteदिल को पढने की भाषा जानते है आप ...
उस परवाने की तरह
ReplyDeleteजो जानता है कि
शमॉ की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
बहुत सुन्दर..सच्चा प्यार परिणाम की कहाँ चिंता करता है..बहुत भावपूर्ण
बस यही तो है प्यार करनेवाले की असली पहचान.
ReplyDeletebaat bilkul sahi kaha aapne
ReplyDeletepyar me ye ek sachchai hai
parwane kya jane
"shamaa ke fitrat ko"
use to pyar aata hai
wo to bas pyar hin jane.
शमॉ की आगोश में
ReplyDeleteसिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
अरे ऐसा नहीं है अमित जी.चलिए किसी का बड़ा मौजूं एक शेर आपको सुनाते हैं:-
शमां ने आग रखी सर पे क़सम खाने को.
बाखुदा मैंने जलाया नहीं परवाने को.
उस परवाने की तरह
ReplyDeleteजो जानता है कि
शमा की आगोश में
सिमटते ही
उसकी जिदंगी की
आखरी शाम हो जाएगी।
कविता बहुत प्रभावशाली है।
शुभकामनाएं।