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Monday, September 27, 2010

सपनों से भी आगे





आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की भीनी-भीनी सी खुश्बू।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है समन्दर में
फूलों में चटख रही है
तेरे सुर्ख गुलाबी गालों की रंगत।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है गाना
तेरी पायल की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।

9 comments:

  1. वाह, खूबसूरत अनुभूति...उत्तम रचना..बधाई. कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.

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  2. अच्छी पंक्तिया लिखी है ........

    जाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
    काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....

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  3. कौन खुशनसीब है वह, शायर साहब !!!
    जिसके लिए इतने खूबसूरत अलफ़ाज़ मै आप लिख बैठे हैं:
    "आओ तुम्हे चाँद पर ले जाए.....
    एक नई दुनिया बसाए "

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  4. amit ji bahoot hi achchhe khyal hai.... bahoot sunder abhivayakti

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  5. बहुत ही सुन्दर कविता.

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  6. sanyog shringaar ki safal rachna
    dil se likha hai
    man ko chhoo gayee

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  7. एक गंभीर रचना!!! बहुत प्यारी !!!!!!
    कभी भटकते भटकते " आवारगी" पर भी नज़र -ऐ--इनायत करें.

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  8. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  9. हसीना मान जाएगी!!

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