आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की भीनी-भीनी सी खुश्बू।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है समन्दर में
फूलों में चटख रही है
तेरे सुर्ख गुलाबी गालों की रंगत।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है गाना
तेरी पायल की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
वाह, खूबसूरत अनुभूति...उत्तम रचना..बधाई. कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.
ReplyDeleteअच्छी पंक्तिया लिखी है ........
ReplyDeleteजाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....
कौन खुशनसीब है वह, शायर साहब !!!
ReplyDeleteजिसके लिए इतने खूबसूरत अलफ़ाज़ मै आप लिख बैठे हैं:
"आओ तुम्हे चाँद पर ले जाए.....
एक नई दुनिया बसाए "
amit ji bahoot hi achchhe khyal hai.... bahoot sunder abhivayakti
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता.
ReplyDeletesanyog shringaar ki safal rachna
ReplyDeletedil se likha hai
man ko chhoo gayee
एक गंभीर रचना!!! बहुत प्यारी !!!!!!
ReplyDeleteकभी भटकते भटकते " आवारगी" पर भी नज़र -ऐ--इनायत करें.
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteहसीना मान जाएगी!!
ReplyDelete