कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं
जो हम कह नही पाते
और तुम समझ नहीं पाते।
एक अन्जाना सा रिश्ता
एक नाजुक सा बंधन
गर समझ जाते तुम तो
मोहब्बत की तासीर से
बच नहीं पाते।
ये कैसी तिश्नगी है
क्या कहंु तुमसे
तसब्बुर में भी तेरे बगैर
हम रह नहीं पाते।
जी रहे हैं हम
नदी के दो किनारों की तरह
जो साथ तो चलते हैं मगर
एक-दूसरे से कभी मिल नहीं पाते।
कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं
जो हम कह नही पाते
और तुम समझ नहीं पाते।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteबेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
ReplyDeleteआज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
संजय भास्कर जी एहसास पर टिप्पणी के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
sunder abhivyakti.............
ReplyDeleteआपकी रचना अत्यन्त भाव्पूर्न है……………॥पध्कर अच्छ लगा ……लिखते रहिये
ReplyDeleteभावों एवं शब्दों का संयोजन अच्छा है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति |बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत अच्छी कविता है...यहां तक लाने के लिए शुक्रिया...मुझे इतनी भाई कि ब्लॉग फालो कर लिया है। आज आपकी पुरानी पोस्ट भी देखी..बहुत अच्छा लिखा है...बधाई
ReplyDeleteसंगीता जी, वन्दना जी, उपन्द्र जी, महेन्द्र वर्मा जी, आशा जी, वीणा जी, एना जी
ReplyDeleteआप सभी का हौसला अफजाई का ‘शुक्रिया।
आप सभी को नवरात्री की ‘शुभकामनाएंं।
bahut khoob bhai..
ReplyDeletelajwab! Dil ko chhuti rachna...
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