माना कि जिन्दगी को
घोर निराशाओं ने घेरा है।
दूर क्षितिज की ओर देखो
आने वाला एक नया सवेरा है।
फैलने दो आशा की किरण को
जिन्दगी रूपी जमीं पर
तुम्हारे आस-पास ही कहीं
तुम्हारी खुशियों का बसेरा है।
क्यों निराश होते हो तुम
ये तो माया जाल है
चन्द दिनों की है ये दुनिया
फिर क्या तेरा और क्या मेरा है।
बहुत प्यारी लाइन है ...
ReplyDeleteक्यों निराश होते हो तुम
ये तो माया जाल है
चन्द दिनों की है ये दुनिया
फिर क्या तेरा और क्या मेरा है।
बहुत सुंदर कबिता. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteaasha se bhari hui kavita..jeewan ka sanchaar kar gayi..
ReplyDeletebehadd khoobsurat..
shukriya..
ये बात हम सभी जानते हैं ....
ReplyDeleteसब कुछ नश्वर है ....
यहाँ स्थाई रूप से किसी ने नहीं रहना .....
फिर भी तो मोह माया खत्म नहीं होती .....
हम कभी संतुष्ट नहीं होते .....
तभी तो ये उदासियाँ हैं .....!!
wahh ji!!!
ReplyDeletekamaal ka likhte hain aap!!
kabhi islaah kariye:
http://meourmeriaavaaragee.blogspot.com/
We all live with hope. !
ReplyDeleteकविता के स्वर आशावादी हैं...अच्छी सोच।
ReplyDeleteinspirng thaught! great words!!
ReplyDeleteमाना कि जिन्दगी को
ReplyDeleteघोर निराशाओं ने घेरा है।
दूर क्षितिज की ओर देखो
आने वाला एक नया सवेरा है।
सुन्दर शब्द .. आशा से भरी पूरी रचना ..
लिखते रहिये..
बस अब इतनी विनती करता हूँ "हे ईश्वर! अब कलाम ना छूटे" @http://prakashpankaj.wordpress.com
sundar rachna....
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