इस ब्लाग की सभी रचनाओं का सर्वाधिकार सुरक्षित है। बिना आज्ञा के इसका इस्तेमाल कापीराईट एक्ट के तहत दडंनीय अपराध होगा।

Sunday, October 10, 2010

रिश्ता


कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।

एक अन्जाना सा रिश्ता

एक नाजुक सा बंधन

गर समझ जाते तुम तो

मोहब्बत की तासीर से

बच नहीं पाते।

ये कैसी तिश्नगी है

क्या कहंु तुमसे

तसब्बुर में भी तेरे बगैर

हम रह नहीं पाते।

जी रहे हैं हम

नदी के दो किनारों की तरह

जो साथ तो चलते हैं मगर

एक-दूसरे से कभी मिल नहीं पाते।

कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।

12 comments:

  1. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

    ReplyDelete
  2. बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
    आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  3. संजय भास्कर जी एहसास पर टिप्पणी के लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  4. आपकी रचना अत्यन्त भाव्पूर्न है……………॥पध्कर अच्छ लगा ……लिखते रहिये

    ReplyDelete
  5. भावों एवं शब्दों का संयोजन अच्छा है।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी कविता है...यहां तक लाने के लिए शुक्रिया...मुझे इतनी भाई कि ब्लॉग फालो कर लिया है। आज आपकी पुरानी पोस्ट भी देखी..बहुत अच्छा लिखा है...बधाई

    ReplyDelete
  8. संगीता जी, वन्दना जी, उपन्द्र जी, महेन्द्र वर्मा जी, आशा जी, वीणा जी, एना जी
    आप सभी का हौसला अफजाई का ‘शुक्रिया।
    आप सभी को नवरात्री की ‘शुभकामनाएंं।

    ReplyDelete