चित्र गूगल साभार
हमें मालुम न था लोग इतने बदल जाते है
दर्द देकर औरो को कुछ लोग मुस्कुराते है।
ग़म-ए-जिन्दगानी का फ़लसफ़ा बहुत लबां है
थोड़ा सब्र करो हर्फ-दर-हर्फ सुनाते है।
कैद कर लो ऑसुओं को अपनी ऑखों में
बारीशों में नाले भी दरिया बन जाते हैं।
दोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है।
कुछ लोग बदल जाते हैं पर कुछ कभी नहीं बदलते... बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देखने मिली...सुन्दर प्रस्तुति... शुभकामनाये
ReplyDeleteकुछ लोग होते है
ReplyDeleteमुह में राम , बगल में छुरावाले
:-)
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-08 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... मेरी पसंद .
आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
Deletebahut sahi likha hai apne.....kuch log aise hi hote hain.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete
ReplyDeleteदोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है
ये बात सही कही सर!
सादर
बहुत अच्छा लगा पढ कर....
ReplyDeleteवक्त और हालत ने क्या कुछ ना बदल दिया, जो रहा गया बाकी वो तेरी बदलती नियत ने बदल दिया...
waah behtareen..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDelete