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Tuesday, August 21, 2012

साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है........


चित्र गूगल साभार






हमें मालुम न था लोग इतने बदल जाते है
दर्द देकर औरो को कुछ लोग मुस्कुराते है।

ग़म-ए-जिन्दगानी का फ़लसफ़ा बहुत लबां है
थोड़ा सब्र करो हर्फ-दर-हर्फ सुनाते है।

कैद कर लो ऑसुओं को अपनी ऑखों में
बारीशों में नाले भी दरिया बन जाते हैं।

दोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है।


9 comments:

  1. कुछ लोग बदल जाते हैं पर कुछ कभी नहीं बदलते... बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देखने मिली...सुन्दर प्रस्तुति... शुभकामनाये

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  2. कुछ लोग होते है
    मुह में राम , बगल में छुरावाले
    :-)

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  3. bahut sahi likha hai apne.....kuch log aise hi hote hain.....

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  4. आपका बहुत बहुत शुक्रिया.

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  5. दोस्ती के मायने अब बदल गए हैं यहॉं
    साथ रहते भी है और दुश्मनी निभाते है

    ये बात सही कही सर!


    सादर

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  6. बहुत अच्छा लगा पढ कर....
    वक्त और हालत ने क्या कुछ ना बदल दिया, जो रहा गया बाकी वो तेरी बदलती नियत ने बदल दिया...

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  7. भावपूर्ण रचना, बधाई.

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