चित्र गूगल साभार
अक्षरों से मिलकर
शब्द बनते हैं
शब्दों से मिलकर वाक्य।
वाक्यों से मिलकर
अहसास पुरे होते हैं और
अहसासों से मिलकर जज्बात।
जज्बातों से मिलकर
ख़्याल बनता है
और ख़्यालों से मिलकर
बनती है रचना।
जिन्हें हम कभी
कविता कहते है तो
कभी नज्म और
कभी गज़ल कहकर
पुकारते है तो कभी
छंद कहकर।
वास्तव में ये हमारी
सोच और ख़्याल का ही तो
प्रतिरूप है।
अक्स है
हमारी खुशी और ग़म का
हमारे अकेलेपन और
तन्हाईयों का।
दिल की गहराईयों में
दफ्न हो चुके
गुजरे हुए कल का।
हमारे आस-पास घटती
हर अच्छाई और
बुराई का।
जिन्हें हम
शब्दों की चाशनी में
लपेट कर
कोरे कागज की थाली में
परोस कर
आपके सामने रख देते हैं।
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकविता आइना ही तो है हमारे अंतर्मन का...
सभी कुछ मिलकर एक सुन्दर रचना बन गयी... जिसमे सभी कुछ है......
ReplyDelete" कविता केवल कविता नहीं होती है, हर कवि के मन का दर्पण होती है...सुन्दर रचना...
ReplyDeletesaudar bhaw....aabhar..yahi sach bhi he aur ese banti he kawita
ReplyDeleteअच्छे भाव... सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसत्य वचन ....
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteइस उम्दा रचना को पढ़वाने के लिए आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावमयी रचना...
ReplyDeleteबिकुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteये सोच हमेशा रहनी चाहिए ... भाव रहने चाहियें ... शब्द तो मिलते ही रहते हैं ... अच्छी लगी आपकी रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव| होली की शुभ कामनाएं|
ReplyDeleteजिन्हें हम
ReplyDeleteशब्दों की चाशनी में
लपेट कर
कोरे कागज की थाली में
परोस कर
आपके सामने रख देते हैं।
शब्दों की कारीगरी...यही तो कविकर्म है।
प्रभावी रचना।
होली की शुभकामनाएं।
ये सब बाहर की बातें हैं। वास्तव में जब व्यक्ति अपने अंदर उतरता है,शब्द धरे के धरे रह जाते हैं।
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