चित्र गूगल साभार
फिर तेरी कहानी याद आई
बीते मौसम की रवानी याद आई।
गुजारे थे हमने जो साथ मिलकर
वो शाम सुहानी याद आई।
तेरी ऑखों का सुरूर और वो मदहोश आलम
टुटी हुई चुड़ीयों की कहानी याद आई।
गुंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
वो नज्म पुरानी याद आई।
लहरों के साथ जो बह गया ‘अमित’
रेत पर बनी वो निशानी याद आई।
very nice presentation of expression.
ReplyDeleteयाद आई है फिर, तेरी मेरी वही कहानी |
ReplyDeleteगुजरे हुए वो शाम सुहाने, रेत पे बनी निशानी ||
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
Deleteबहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletenice
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
साधू-साधू
ReplyDeleteबहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteबहुत प्यारी गज़ल...
ReplyDeleteगूंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
वो नज्म पुरानी याद आई।...
बहुत सुन्दर..
अनु
गूंजे थे कभी जो इन फिजाओं में
ReplyDeleteवो नज्म पुरानी याद आई।...
यादें कहाँ भुलाई जा सकती हैं, मन में बस जाती हैं हमेशा-हमेशा के लिए...बहुत सुन्दर...
वाह अमित जी क्या बात है हर एक पंक्ति अपने आप में लाजवाब हैं
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
अनुपम भाव संयोजन से सजी सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत खूब ... भावमय प्रस्तुति ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार ।
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