चित्र गूगल साभार
कातिलाना रूप इसका हुस्न लाजवाब है
देख पैमाने में कैसे बलखाती ये शराब है।
दौर-ए-महफिल हो या हो गमों की बारिशें
तश्नालब की तिश्नगी मिटाती ये शराब है।
लगता है मयकदे में हुजूम शब-ओ-रोज
मयकशों को उंगलियों पर नचाती ये शराब है।
होश में रहने दे अब और न पिला साकी
राज दिलों के सारे खोलती ये शराब है।
बेहतर लेखन !!
ReplyDeleteसुभनअल्लह. बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढियां...
ReplyDelete:-)
behtreen....
ReplyDeleteवाह!बहुत सराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteहोश में रहने दे अब और न पिला साकी
ReplyDeleteराज दिलों के सारे खोलती ये शराब है।
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in akhiri panktiyon men sari sachchai sharab ki aa gayee.... behatarin
होश में रहने दे अब और न पिला साकी
ReplyDeleteराज दिलों के सारे खोलती ये शराब है ...
सच कहा है .. मदहोश जो कर देती है ... लाजवाब शेर ...
wahhh,,,,bahut umda..
ReplyDeleteराज दिलों के सारे खोलती ये शराब है।
http://ehsaasmere.blogspot.in/
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण,आभार है आपका
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
ये कैसी मोहब्बत है
idhar bahut din baad aai
ReplyDeletemagr aayee to aap ki " sharab" chakhe bina ja na saki
waaqayee badhiya hai