चित्र गूगल साभार
एक ही दुनिया एक है धरती एक ही है आकाश
फिर क्यों आपस में लड़कर हम खो रहे विश्वास।
मैं हिन्दु तुम मुस्लिम ये सिख वो ईसाई है
एक लहु बहता रगों में फिर कैसी जुदाई है।
ये कैसा अधर्म मचा है देखो चारो ओर
दौलत के पीछे सब अपना लगा रहे है जोर।
कौड़ी कौड़ी जमा किया पर सबकुछ छोड़ कर जाना है
रिश्ते-नाते, धन-दौलत जीने का फकत बहाना है
दुनिया में आए हो तो फिर कुछ ऐसा कर जाओ
गैरों के लिए जी लो या गैरो के लिए मर जाओ।
सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव....
ReplyDeleteकुंवर जी,
बहुत सुन्दर रचना. देखिये जानते सब हैं की जाना तो खाली हाथ ही है, मगर फिर भी हम बंटते आये हैं. हमें कभी दौलत ने बाटा है तो कभी किसी ने.
ReplyDeletebahut sundar sarthak bhav liye rachana..
ReplyDelete:-)
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |
ReplyDeleteअच्छे और सच्चे विचार !
ReplyDeleteसार्थक सोच लिये बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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