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Saturday, July 24, 2010

पैसा

पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाएंं।
पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तोें से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।
पैसा,
गढ़ता है
रिश्तोें की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झुठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।
पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगोेंं को कुछ नज़र नहीं आता।
पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते है।
पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि ‘शायद हम बदल चुके हैै
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।

7 comments:

  1. पैसा,
    काबिज है लोगों की सोच पर
    इस कदर जकड़ रखा है कि
    सिवा इसके
    लोगोेंं को कुछ नज़र नहीं आता।
    पैसा,
    जो चलायमान है
    कभी एक जगह नहीं रहता।
    फिर भी लोग
    इसके पीछे दिवानों की तरह
    सारी जिन्दगी भागते है।.................bahut sach likha hai aapne

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  2. क्यूँ पैसा पैसा करती है ....
    रच है इसीलिए कड़्वा भी है।

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  3. कल 30/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. प्यास मिटती है क्या..?

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  5. paisa , bhookh nahin, pyaas nahin,aur ye ruka kabhi kisi ke pas nahin...lekin iski laaalsa insaan ko insaan nahi rehne deti.

    http://neelamkahsaas.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

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  6. bikul sahi kaha sir aaj kal paisa hi sab kuch bana hua hai

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