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Thursday, November 4, 2010

दिवाली

सभी को दिपावली की शुभकामनाएं





ना जाने इस बार ये
कैसी दिवाली आई है
कैसे खरीदे खील-बताशे
कमरतोड़ महगॉंई है।


दिवाली तो कुछ लोगों के लिए है
बाकी का निकला दिवाला है
कैसे सजाएं पुजा की थाली
मुंह से भी दूर निवाला है।

फुलझड़ियॉं, राकेट और पटाखे
कहॉं से ये सब लाउं मैं
राह देखते होगें बच्चे
कैसे अब घर जाउं मैं।

फिर भी दरवाजे पर मैंने
आशा का एक दीप जलाया है
आएगी अपने घर भी खुशियॉं
दिल को यही समझाया है।

8 comments:

  1. फिर भी दरवाजे पर मैंने
    आशा का एक दीप जलाया है
    आएगी अपने घर भी खुशियॉं
    दिल को यही समझाया है।

    बहुत सुंदर .....
    आज इस मंहगाई के दौर पे आपकी कविता बिलकुल सार्थक है ....
    मिठाई और पटाखों के लिए तो सोचना भी नामुमकिन है ....

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  2. आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ

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  3. अमित जी , बिलकुल सही कहा आप ने. उम्मीद जिंदा है . खुशियाँ जरूर दस्तक देती है.इस दीपावली के शुभ अवसर पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें

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  4. बहुत सुंदर रचना, दीपावली की शुभकामनाये
    sparkindians.blogspot.com

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  5. सुंदर रचना. आभार.

    इस ज्योति पर्व का उजास
    जगमगाता रहे आप में जीवन भर
    दीपमालिका की अनगिन पांती
    आलोकित करे पथ आपका पल पल
    मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
    सुख समृद्धि शांति उल्लास की
    आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर

    आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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  6. harkirat heer ji, aashish mishra ji, upendra ji, dimple sharma ji, sameer ji, dorothy ji, sangita puri ji aap sabhi ka dhanywad aur aap sabhi ko saparivar dipawali ki hardik shubhkamnaye.

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  7. फिर भी दरवाजे पर मैंने
    आशा का एक दीप जलाया है
    आएगी अपने घर भी खुशियॉं
    दिल को यही समझाया है।

    सुंदर रचना.बहुत शुभकामनाएं.

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