तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन पर
ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना।
तुम्हारी मरमरी बांहों में
बसाना चाहता था
अपनी एक अलग दुनिया।
पर शायद ये मुमकिन नहीं
क्योंकि जाग चुका हूं मैं
एक गहरी नीन्द से।
लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर।
एक पल को लगा था ऐसा
जैसे सिमट गई हो सारी दुनिया
मेरे आगोश में।
फिर से मैंने
अपने आप को पाया
बिलकुल तन्हा और अकेला।
मेरे पास बची थी कुछ यादें
मेरे उन सुनहरे ख्वाबों की।
उनको सम्भाले हुए अपने जेहन में
बढ़ चला एक अनजानी मंजील की ओर।
वाह
ReplyDeleteये दिल से निकला है
प्रेम एक सपना ही तो होता है
बेहतरीन कविता
"मेरे पास बची थी कुछ यादें
ReplyDeleteमेरे उन सुनहरे ख्वाबों की"
शब्दातीत अभिव्यक्ति, सुन्दर रचना....साधुवाद
प्रेमानुभूति एवं अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर.दोबारा भी पढ़ने का मन किया
ReplyDeleteviyog shringaar ki umda rachna...
ReplyDeletebhav aur abhivyakti ki shaily dono sunder..
Bahut sundar.. bhai...
ReplyDeleteumda rachana.. bade dino bad aisi rachna padne ko mili badhai..
gahre jajbat hai. sunder kavita
ReplyDeletesunder bhaw.
ReplyDeleteguru ravindranath taigor said-"ekla chalo re".
ReplyDeleteapni manjil ki taraf chalte rahiye.
bahut khoobsurat..
ReplyDeleteअमित जी नमस्कार
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
thanks for this
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