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Thursday, November 25, 2010

अनजानी मंजिल की ओर





तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन पर
ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना।

तुम्हारी मरमरी बांहों में
बसाना चाहता था
अपनी एक अलग दुनिया।

पर शायद ये मुमकिन नहीं
क्योंकि जाग चुका हूं मैं
एक गहरी नीन्द से।

लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर।

एक पल को लगा था ऐसा
जैसे सिमट गई हो सारी दुनिया
मेरे आगोश में।

फिर से मैंने
अपने आप को पाया
बिलकुल तन्हा और अकेला।

मेरे पास बची थी कुछ यादें
मेरे उन सुनहरे ख्वाबों की।
उनको सम्भाले हुए अपने जेहन में
बढ़ चला एक अनजानी मंजील की ओर।

10 comments:

  1. वाह
    ये दिल से निकला है

    प्रेम एक सपना ही तो होता है
    बेहतरीन कविता

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  2. "मेरे पास बची थी कुछ यादें
    मेरे उन सुनहरे ख्वाबों की"

    शब्दातीत अभिव्यक्ति, सुन्दर रचना....साधुवाद

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  3. प्रेमानुभूति एवं अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर.दोबारा भी पढ़ने का मन किया

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  4. viyog shringaar ki umda rachna...
    bhav aur abhivyakti ki shaily dono sunder..

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  5. Bahut sundar.. bhai...
    umda rachana.. bade dino bad aisi rachna padne ko mili badhai..

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  6. guru ravindranath taigor said-"ekla chalo re".
    apni manjil ki taraf chalte rahiye.

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  7. अमित जी नमस्कार
    बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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