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Monday, November 8, 2010

भ्रष्टाचार

अरविन्द जी का आज एक आलेख पढ़ा भ्रष्टाचार के बारे में। जिसमें उन्होंने एक बात का जिक्र किया है कि तुम पढ़े लिखे लोग कुए में डुब मरो पत्थर उपर से मैं डाल दुगॉ। बात भी सही है। हमारा देश आज भ्रष्टाचार के मामले में ‘शायद 87 वें नम्बर पर है। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे जैसे पढ़े लिखे लोग। क्योंकि सरकारी नौकरी में पढ़े लिखे लोग ही जाते है। जिन लोगो ने सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली समझ लिजिए उन्होंने भ्रष्टाचार का लाईसेंस ले लिया। आज सरकारी कार्यालय में एक चपरासी से लेकर अफसर तक सारे भ्रष्ट है। कोई पॉंच रूपये की चोरी कर रहा है तो कोई पचास हजार की। इनलोगों को सह मिलती है इनके उपर बैठे नेताओं से। ऐसे कितने नेता हैं जिन्होंने कुर्सी इस अरमान से सम्भाली है कि इन्हें देश या समाज की सेवा करनी है। वरना क्या वजह है कि कुर्सी मिलने से पहले जिनके पास रहने के लिए सही से अपना एक अदद मकान नहीं होता वो पॉंच साल बाद ही करोड़ो में खेलने लगते है, रहने के लिए एक अदद कोठी और घूमने के एक नहीं चार पॉच गाड़ियॉं हो जाती है।जिस तरह से एक बगुला नदी किनारे इस ताक में खड़ा रहता है कि कब कोई मछली दिखाई पड़े और उसे वो लपक ले। ठीक उसी तरह से अपने आप को जनता के सेवक बताने वाले ये नेता और अफसर भी इसी ताक में रहते है कि कब कोई योजना पारित हो और उसे दीमक की तरह चाट जाए। वैसे इस भ्रष्टाचार को फैलने में ये लोग ही नही आम जनता भी उतनी ही दोषी है जितने कि ये लोग। मैं बिहार राज्य का निवासी हुंं। भ्रष्टाचार तो यहॉं एक छुआछूत की बीमारी की तरह फैला हुआ है। बानगी देखिए- हाल ही में हुए शिक्षक बहाली में कई ऐसे लोग भी शिक्षक बने जिन्हे सही तरीके से ये भी नहीं पता कि हमारे देश का राष्ट्रपति कौन है। सोचिए जरा वे बच्चों को कैसी शिक्षा देगें। वैसे लोग अच्छी तरह से जानते है कि निम्न पदों के लिए वे उपयुक्त नहीं है। बाबजूद इसके पैसे दे कर ये लोग नौकरी पा जाते है और उपयुक्त लोग बाहर ही रह जाते है। भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है पैसा। क्योंकि हमारे समाज में पैसे से ही किसी इंसान की पहचान होती है। जिसके पास जितना पैसा होता है उसका रूतवा उतना ही बड़ा होता है। इसांनियत, ईमानदारी, सहिष्णुता ये सारी बातें किताबी और बीते दौर की हो चली है। आज के दौर में अगर गॉंधी जी होते तो ‘शायद उन्हें भी समाज के कटाक्ष और दुत्कार का सामना करना पड़ता। एक कहावत है बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रूपैया। आज के जमाने पर ये बिल्कुल फिट बैठती है।

3 comments:

  1. मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
    http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

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  2. Aaj bhi anek log aise hain jinka in chhijo se koi rishta nahi hai.Ise rokana hamara kartavya hai .I support your feelings. Good post.Please post acomment on my new post.Good Morning.

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  3. अपवाद स्वरुप जो थोड़े अच्छे भले लोग हैं, उन्ही कि बदौलत दुनिया चल रही है.

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