चित्र गुगल साभार
तेरे वफा की कसमें खाते थे कभी हम
तेरी जफा से आज जार जार रो रहे है।
पत्थर की दुनिया में पत्थर के लोग होते है
पत्थरों के बुत में हम वफा खोज रहे है।
जब प्यार किया तुमसे तो समझ आया हमें
अपनी राहों में हम खुद ही कॉटें बो रहे है।
अब और न परेशॉ करो मेरी कब्र पे आकर
टुटे दिल को समेटकर हम आराम से सो रहे है।
वाह जी वाह.........बहुत खूब, सुन्दर रचना.....आभार
ReplyDeleteपत्थर की दुनिया में पत्थर के लोग होते है
ReplyDeleteपत्थरों के बुत में हम वफा खोज रहे है।
लाज़वाब..बहुत खूबसूरत..
अमित भाई सुन्दर रचना,
ReplyDeleteजब प्यार किया तुमसे तो समझ आया हमें
अपनी राहों में हम खुद ही कॉटें बो रहे है।
दिल मे उतर गयी
अच्छा प्रयास है ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteअमितजी ,
ReplyDeleteहर शेर जुदा-जुदा ......अपनी बात कहने में सक्षम |
kya baat! kya baat!! kya baat!!!
ReplyDeleteशानदार गजल!
ReplyDeleteलोहड़ी और उत्तरायणी की सभी को शुभकामनाएँ!
अब और न परेशॉ करो मेरी कब्र पे आकर
ReplyDeleteटुटे दिल को समेटकर हम आराम से सो रहे है।
लाज़वा,बहुत खूबसूरत......
dard ka ehsaas krati kavita.
ReplyDeleteतेरे वफा की कसमें खाते थे कभी हम
ReplyDeleteतेरी जफा से आज जार जार रो रहे है।
बेहतरीन ग़ज़ल... ज़बरदस्त!
तेरे वफा की कसमें खाते थे कभी हम
ReplyDeleteतेरी जफा से आज जार जार रो रहे है।
वाह वाह ,क्या बात है
गहरे एहसास है हर नज़्म में ...... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनये दशक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ?
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमन के भावों को चित्रित करती, सुंदर रचना।
ReplyDelete---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
शानदार अभिव्यक्ति ।
ReplyDelete@-जब प्यार किया तुमसे तो समझ आया हमें
ReplyDeleteअपनी राहों में हम खुद ही कॉटें बो रहे है..
अफ़सोस , अक्सर ऐसा ही होता है।
अब और न परेशॉ करो मेरी कब्र पे आकर
ReplyDeleteटूटे दिल को समेटकर हम आराम से सो रहे है।
बहुत वज़नदार शे‘र कहा है आपने।
इन दो पंक्तियों में आपने एक उपन्यास-सा लिख दिया है।
दिल से....
ReplyDeleteलाज़वाब..बहुत खूबसूरत| धन्यवाद|
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