चित्र गुगल साभार
इश्क करना गर गुनाह है
तो बेशक मैं गुनहगार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।
तेरा प्यार जन्नत है मेरा
तेरे प्यार पर मैं दोनों जहाँ वार दूँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।
तलाश करती है जिसे तेरी निगाहें
गौर से देखो मैं वही बहार हुँ।
आशिक हुँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हुँ।
तुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
तेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
आशिक हूँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।
बहुत खूब ... अमित जी.... दिल के भावों को बहुत शशक्त बयान किया है आपने ...
ReplyDeleteगहरे जज्बात के साथ बेहतरीन कविता...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
तलाश करती है जिसे तेरी निगाहें
ReplyDeleteगौर से देखो मैं वही बहार हुँ।
बहुत खूब, दिल छु लिया इन पंक्तियों ने
बेहतरीन अभिव्यक्ति .....आभार !
ReplyDeleteतुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
ReplyDeleteतेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
............kash wo ye samajh paaye........bahut khoobsurat.
वाह क्या बात है, खुबसूरत शेर से सजी गज़ल, मुबारक हो .....
ReplyDeletekhoob
ReplyDeleteतुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
ReplyDeleteतेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
.....बहुत खूब !
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteटाइपिंग में जरा-सी चूक हो गई है इसलिए ठीक नहीं लग रहा...
जन्नत है मेरा, में मेरी कर लीजिए....
बहुत खूब ... इश्क तो एक पूजा है .. गुनाह नही ...
ReplyDeleteगहरे जज्बात के साथ बेहतरीन कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteman ke bhavon ko aap ne bakhubi kah diya hai.........sunder prastuti.
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली रचना है एक एक पंक्ति दिल की तह तक जाती है..बेहतरीन
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteदिल को छू रही है आपकी रचना .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखते हैं आप
इश्क करना गर गुनाह है
ReplyDeleteतो बेशक मैं गुनहगार हूं ।
इससे उत्तम तो कोई गुनाह है ही नही ।
बहुत खूब ।
bahut badhiya...
ReplyDeleteकृपया मेरी भी कविता पढ़ें और अपनी राय दें..
www.pradip13m.blogspot.com
तुम लाख करो कोशिश मुझसे नजरे चुराने की
ReplyDeleteतेरे दिल को जो सुकून दे मैं वो करार हुँ।
आशिक हूँ मैं
तेरी मोहब्बत का तलबगार हूँ।
bahut bahut bahut khub likha hai aapne
pyar or tadap ka ehsas...waha