चित्र गुगल साभार
तेरी परस्तिश में घर से आ गये मयखाने में
देखें और कितने गम छुपे है तेरे खजाने में।
न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।
न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।
कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
बीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।
न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
ReplyDeleteउम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।
खूब कहा .....प्रभावित करती पंक्तियाँ
वाह! वाह!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गज़ल है, बेहतरीन एहसास!!!
कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
ReplyDeleteबीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।
Very touching lines , Indeed.
Sorry for non regular visit.
I am also on hunger strike for "Corruption Free India"
Thanks !
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
ReplyDeleteकश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।...
waah !...Excellent !
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वाह......साहब ......वाह.....हर शेर की दाद है.....खुबसूरत ग़ज़ल......ये शेर तो कमल का है -
ReplyDeleteन काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।
न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
ReplyDeleteकश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।
wah wah wah
jitani tareef karon kam hai
न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
ReplyDeleteकश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।
वाह......बहुत खुबसूरत ग़ज़ल......
सही और बहुत खूब
ReplyDeletebhut hi khubsurat gazal....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल ...
ReplyDeleteबढ़िया...पसंद आई.
ReplyDeletebahut khoob...........
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteन काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
ReplyDeleteउम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में ...
निहायत खूबसूरत शेर है .... बहुत डोर की बात कह दी इस एक शेर में ...
...बेहतरीन एहसास....बहुत बढ़िया गज़ल ..
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 18 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
ReplyDeleteबीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।
वाह ,क्या बात है.
किसी का एक शेर याद आ रहा है,देखिये;-
यार ने हमसे बेवफाई की.
वस्ल की रात में लड़ाई की.
न कर कोशिश कभी तूफानों का रुख मोड़ने की
ReplyDeleteकश्तियाँ टूट जाती हैं , समंदर को आजमाने में '
..............यथार्थ की भावभूमि
......................जानदार शेर
बेहतरीन, बहुत खूब
ReplyDeleteअच्छा लिखा है।
कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
ReplyDeleteआपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
so beautiful.
ReplyDeleteबहुत खूब ..सुन्दर गज़ल
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