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Thursday, June 9, 2011

कितने गम छुपे है तेरे खजाने में.........


चित्र गुगल साभार



तेरी परस्तिश में घर से आ गये मयखाने में
देखें और कितने गम छुपे है तेरे खजाने में।

न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।

न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।

कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
बीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।

22 comments:

  1. न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
    उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।

    खूब कहा .....प्रभावित करती पंक्तियाँ

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  2. वाह! वाह!

    बहुत ही खूबसूरत गज़ल है, बेहतरीन एहसास!!!

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  3. कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
    बीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।

    Very touching lines , Indeed.

    Sorry for non regular visit.

    I am also on hunger strike for "Corruption Free India"

    Thanks !

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है सर!

    सादर

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  5. न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
    कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।...

    waah !...Excellent !

    .

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  6. वाह......साहब ......वाह.....हर शेर की दाद है.....खुबसूरत ग़ज़ल......ये शेर तो कमल का है -

    न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
    उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में।

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  7. न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
    कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।

    wah wah wah

    jitani tareef karon kam hai

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  8. न कर कोशीश कभी तुफानों का रूख मोड़ने की
    कश्तियॉ टुट जाती है समंदर को आजमाने में।
    वाह......बहुत खुबसूरत ग़ज़ल......

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  9. सही और बहुत खूब

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  10. बहुत बढ़िया गज़ल ...

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  11. बढ़िया...पसंद आई.

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  12. न काटो उन दरख्तों को जिस पर है परिंदों के घोसलें
    उम्र गुजर जाती है लोगों की एक आशियॉ बनाने में ...
    निहायत खूबसूरत शेर है .... बहुत डोर की बात कह दी इस एक शेर में ...

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  13. ...बेहतरीन एहसास....बहुत बढ़िया गज़ल ..

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  14. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 18 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

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  15. कितने इतंजार के बाद आई है ये वस्ल की रात
    बीत न जाए कही बस ये रूठने मनाने में।

    वाह ,क्या बात है.
    किसी का एक शेर याद आ रहा है,देखिये;-
    यार ने हमसे बेवफाई की.
    वस्ल की रात में लड़ाई की.

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  16. न कर कोशिश कभी तूफानों का रुख मोड़ने की
    कश्तियाँ टूट जाती हैं , समंदर को आजमाने में '

    ..............यथार्थ की भावभूमि
    ......................जानदार शेर

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  17. बेहतरीन, बहुत खूब
    अच्छा लिखा है।

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